यह प्रतिध्वनि है उन समसामयिक घटनाओं की जो प्रायः अनसुनी रह जाती है । आज के भारत पर तीक्ष्ण दृष्टि और घटनाओं का विश्लेषण । इसमें उस इतिहास को सहेजने का प्रयास किया गया है जो महत्वपूर्ण होते हुये भी शीघ्र ही विस्मृत कर दिया जाता है । भविष्य के निर्माण के लिए हमें अपने पदचिन्हों का विश्लेषण करना ही होगा ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.