लो फिर छला है रात भर, मेरे चाँद ने हमें.
नादां है दिल ये फिर भी, भूलता नहीं उन्हें.
सपनों में हम सदा ही, ढूंढा किये उन्हें.
वो भूल से ही सही, कभी दिखते तो हमें.
हम भी मगर तलाश में, चलते रहे यूँ ही.
छालों ने तो थी की खबर, थे बेखबर हमीं.
जलता रहा दिया ये, रात-रात भर यूँ ही.
वो मुस्कुरा के चल दिए, बोले - 'अभी नहीं'.
वो क्या है जो जला रहा, वो क्या है जो लुभा रहा.
वो क्या है जो चाहत बनी, वो क्या है जो बुझती नहीं.
वो प्यास है, हाँ ! प्यास ही, दिखती नहीं हमें .
लो फिर छला है रात भर, मेरे चाँद ने हमें.
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बड़ी प्यारी और मीठी सी रचना है कौशलेन्द्र जी......वैसे कहीं डायरी का कोई पुराना पन्ना तो यहाँ आकर नहीं चिपक गया ना?....अरे ठीक वैसे ही जैसे होली पर आकर चिपक गया था....आपकी रचना पढकर मुझे मेरी एक गजल के कुछ शेर ताजा हो गये......
जवाब देंहटाएंचाँद होता रहा ये जवाँ हर पहर
और मचलती रही चाँदनी रात भर
इस हृदय पे ये ढाया है कैसा क़हर
साँस यूँ ही उखड़ती रही रात भर
वो न जाने कहाँ खो गए बेखबर
राह तकते रहे उनकी हम रात भर
sunder bhaw.....bahut achchi lagi.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना ...
जवाब देंहटाएंवो क्या है जो जला रहा, वो क्या है जो लुभा रहा.
जवाब देंहटाएंवो क्या है जो चाहत बनी, वो क्या है जो बुझती नहीं.
hmmmm
Mrigtrishnaa.....hmmmm shayad yahii he....hmm..yahi he naa.......main bhi nhi samjh paayi aajtak...wo kyaa he.....
baba.....hmmmm....bahuttt khoobsurat .....[:)]
हमारे जंगल में आने का समय निकालने के लिए सभी लोगों को धन्यवाद . मालिनी जी ! आपके अनुमान की दाद देना चाहूंगा ...आपने बिलकुल ठीक पकड़ा ..यह रचना बहुत पुरानी है....पुरानी डायरी के कुछ फटे पुराने पन्ने उड़कर जंगल के किसी झाड़ से आकर चिपक जाते हैं तो फिर मैं उन्हें पोस्ट कर देता हूँ. आप लोगों को मेरी पुरानी और कच्ची रचनाओं में भी कुछ भाव नज़र आ जाते हैं तो यह आप लोगों का बड़प्पन ही है और मेरे प्रति अनुराग भी.
जवाब देंहटाएंरानी बेटी जी ! मनुष्य कितना भी ज्ञानी क्यों न हो जाय ...मृगतृष्णा उसका पीछा नहीं छोड़ती. और मज़े की बात यह क़ि हम मृगतृष्णा को मृगतृष्णा स्वीकार करने के लिए तैयार भी नहीं होते.
हम भी मगर तलाश में, चलते रहे यूँ ही.
जवाब देंहटाएंछालों ने तो थी की खबर, थे बेखबर हमीं.
जलता रहा दिया ये, रात-रात भर यूँ ही.
वो मुस्कुरा के चल दिए, कहा- 'अभी नहीं'.
बहुत खूब...लाजवाब ग़ज़ल...
वो प्यास है, हाँ ! प्यास ही, दिखती नहीं हमें .
जवाब देंहटाएंलो फिर छला है रात भर, मेरे चाँद ने हमें.
:))