शनिवार, 26 अप्रैल 2014

क्या पाइएगा


देकर पता वो
अन्धी गली का,
कहते हैं मुझसे
ज़रूर आइयेगा ।
पहुँचने से पहले
द्वारे पे उनके,
है पूछा उन्होंने
कि कब जाइएगा । 

वादों के व्यञ्जन
चोटों की चटनी
लिए पूछते हैं
क्या खाइएगा ।
इतनी बदहाली दी
इतनी दीं ज़िल्लतें
इनसे भी बदतर
क्या दीजिएगा ।   
 

परिभाषा
पिटारों में क़ैद उनके,
अब शब्दकोषों में
क्या पाइएगा ।
मिले झोपड़ी में
महामात्य कोई,
नेक सम्राट कोई
तभी पाइएगा । 

7 टिप्‍पणियां:


  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और शबरी के बेर मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  2. डॉक्टर भैया, यही असलियत है!! और हमारी नियति भी!!

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह.....कमाल की कविता...

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  4. वादों के व्यञ्जन
    चोटों की चटनी
    लिए पूछते हैं
    क्या खाइएगा ।

    Waah! bahut khoob sir :-)

    जवाब देंहटाएं
  5. सभी काव्य जौहरियों को धन्यवाद !

    प्रकाश जी ! हसे जुड़ने के लिए आभार !

    जवाब देंहटाएं


  6. देकर पता वो
    अन्धी गली का,
    कहते हैं मुझसे
    ज़रूर आइयेगा

    वाह !
    :)

    देखिए आदरणीय कौशलेन्द्र जी
    महबूब के हाथों धोखा खाने में भी कुछ लुत्फ़ है...
    :))

    सादर
    शुभकामनाओं सहित...

    जवाब देंहटाएं

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.