देकर पता
वो
अन्धी
गली का,
कहते हैं
मुझसे
ज़रूर
आइयेगा ।
पहुँचने
से पहले
द्वारे
पे उनके,
है पूछा
उन्होंने
कि कब
जाइएगा ।
वादों के
व्यञ्जन
चोटों की
चटनी
लिए
पूछते हैं
क्या
खाइएगा ।
इतनी
बदहाली दी
इतनी दीं
ज़िल्लतें
इनसे भी
बदतर
क्या
दीजिएगा ।
परिभाषा
पिटारों
में क़ैद उनके,
अब
शब्दकोषों में
क्या
पाइएगा ।
मिले
झोपड़ी में
महामात्य
कोई,
नेक
सम्राट कोई
तभी
पाइएगा ।
बहुत खूब :)
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और शबरी के बेर मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
डॉक्टर भैया, यही असलियत है!! और हमारी नियति भी!!
जवाब देंहटाएंवाह.....कमाल की कविता...
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
वादों के व्यञ्जन
जवाब देंहटाएंचोटों की चटनी
लिए पूछते हैं
क्या खाइएगा ।
Waah! bahut khoob sir :-)
सभी काव्य जौहरियों को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंप्रकाश जी ! हसे जुड़ने के लिए आभार !
देकर पता वो
अन्धी गली का,
कहते हैं मुझसे
ज़रूर आइयेगा
वाह !
:)
देखिए आदरणीय कौशलेन्द्र जी
महबूब के हाथों धोखा खाने में भी कुछ लुत्फ़ है...
:))
सादर
शुभकामनाओं सहित...