पृष्ठभूमि
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बस्तर
संभाग की विषम भौगोलिक एवं उग्रवादजन्य विकासप्रतिकूल स्थितियों ने बस्तर के विकास
को अवरुद्ध ही नहीं किया प्रत्युत छिन्न-भिन्न
कर दिया है जिससे विकास कार्यों में लगायी जाने वाली पूँजी का एक बड़ा भाग
अवरोध निवारक उपायों की ओर प्रतिस्थापित करना पड़ा है । अस्तु, बस्तर की युवानीति
बस्तर की परिस्थितियों के अनुरूप निरूपित की जानी चाहिये और ऐसा करते समय हमें
जनजातीय परम्पराओं के साथ-साथ उनके सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का भी सम्मान
करना होगा जिसमें जनजातीय कला प्रमुख है । हमें यह सत्य भी स्वीकार करना होगा कि
बस्तर की लोकसंस्कृति को साथ लिये बिना बस्तर के विकास की कोई भी अवधारणा सफल नहीं
हो सकेगी ।
बस्तर
के युवाओं की समस्यायें –
1- शिक्षा
का स्वरूप, शिक्षा की सुविधायें और शिक्षा का स्तर ।
2- स्वास्थ्यगत्
समस्यायें और कुपोषण ।
3- किशोरी
स्वास्थ्य ।
4- आजीविका
के संसाधनों में तकनीकी ज्ञान, कौशल और प्रतिस्पर्धाजन्य अल्पता ।
5- प्रोत्साहन
के अभाव में पारम्परिक कुटीर उद्योगों में दक्षता का अभाव ।
6- उग्रवाद
और तद्जन्य विचलन तथा मुख्यधारा में आने के लिये मानसिक एवं भौतिक पुनर्वास ।
7- संस्कृतिक
पतन एवं यौन हिंसा की घटनाओं में वृद्धि ।
बस्तर
के युवाओं की सहज एवं प्रकृतिप्रदत्त क्षमतायें –
1- हॉकी
एवं फ़ुटवाल खेलने तथा तीव्रधावन के लिये पैरों की प्रकृतिप्रदत्त उपयुक्त
शारीररचना ।
2- प्रतिकूल
स्थितियों में भी उपयुक्त अनुकूलन की क्षमता एवं शारीरिक सहनशीलता ।
3- हस्तशिल्प
एवं कलाओं में अभिरुचि ।
बस्तर
की अन्य प्राकृतिक विशेषतायें –
1- बस्तर की
भूमि कृषिउद्यानिकी के लिये उपयुक्त है जहाँ फलों की खेती को प्रोत्साहित किया जा
सकता है ।
2- बस्तर
की भूमि सब्जियों, दालों एवं तिलहन के लिये उपयुक्त है जिसे प्रोत्साहित किया जाना
चाहिये ।
3- बस्तर
के जंगलों में काली मिर्च, इलायची एवं दालचीनी की खेती के लिये उपयुक्त उर्वरता
एवं वातावरण है ।
4- बस्तर
में अनानास, स्ट्राबेरी, प्लम, कीवी, चीकू और लीची की कृषि की अच्छी सम्भावनायें
हैं ।
कुटीर
उद्योगों की सम्भावनायें –
1- फल एवं
उद्यानिकी ।
2- खाद्य
एवं वनौषधि प्रसंस्करण ।
3- रेशम
पालन एवं रेशम उद्योग ।
4- पशुपालन
एवं दुग्ध उद्योग ।
बस्तर
के लिये शैक्षणिक आवश्यकताओं का चिन्हांकन और निर्धारण – किसी भी
समाज की शैक्षणिक आवश्यकतायें देश, काल और परिस्थितियों के अनुरूप अपना आकार ग्रहण
करती हैं । ग्रामीण, नगरीय, पर्वतीय, सीमांत और औद्योगिक क्षेत्रों की अपनी
विशिष्ट समस्यायें होती हैं जिनके कारण उन क्षेत्रों की आवश्यकतायें भी
भिन्न-भिन्न होती हैं । भारत के शैक्षणिक मानचित्र को इन पाँच विशिष्ट क्षेत्रों
में विभाजित करते हुये समस्याओं के चिन्हांकन और तदनुरूप आवश्यकताओं के उपयुक्त
निर्धारण पर गम्भीरता से कार्य कियेजाने की स्वीकार्यता से दक्षता आधारित शिक्षा
सुनिश्चित की जा सकती है । अस्तु, इस क्रम में बस्तर की परिस्थितियों एवं
आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुये लाइवलीहुड कॉलेज को और अधिक सक्षम एवं उन्नत
किये जाने की आवश्यकता पर विचार किया जाना चाहिये ।
बस्तर
की स्थितियों के लिये फ़िनलैण्ड के शिक्षा प्रादर्श पर विचार करते हुये हमें एक नये
प्रारूप का निर्माण करना होगा जिसमें भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली के भी समावेश
किये जाने की आवश्यकता है । ब्रिटिश शासन के पूर्व तक भारत की प्राचीन शिक्षा
प्रणाली सूचनाप्रधान न होकर औद्योगिक दक्षता प्रधान हुआ करती थी जिसका हस्तांतरण
नयी पीढ़ी को परम्परागत तरीके से किया जाता था । यह कहीं अधिक सक्षम और व्यावहारिक
प्रणाली है जिसे पुनर्जीवित किये जाने की आवश्यकता है । इस सन्दर्भ में केरल की
कन्नाड़ी का उदाहरण देना ही पर्याप्त होगा जिसे तमाम तकनीकी उन्नति के बाद भी अभी
तक कोई बनाना नहीं जान सका है और यह पारम्परिक तकनीक अभी भी मात्र कुछ परिवारों तक
ही सीमित है । हमें इस प्रकार के उद्योगों को प्रोत्साहित करने के उपयुक्त अवसरों
को निर्मित करना होगा ।
प्रकल्पों का
चिन्हांकन –
क्र.सं.
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बस्तर
के सर्वाङ्गीण विकास की दिशा में
युवा
नीति के उद्देश्य
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पूर्ति
का माध्यम
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विभागीय
दायित्व
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1
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वैश्विकग्रामजन्य
प्रतिस्पर्धा में सम्पोषणीय व्यक्तिगत् सहभागिता एवं व्यक्तित्व विकास
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न्यूनतम
अनिवार्य शिक्षा, के साथ राष्ट्रीय एवं नैतिक शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा,
सैद्धांतिक शिक्षा- न्यूनतम एवं उच्चस्तरीय (Natural
and Social sciences)
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शिक्षा
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2
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सन्मार्ग
विचलन रोकने के लिये सामाजिक एवं
राष्ट्रीय मूल्य संवर्द्धन । जनजातीय जीवनदर्शन की जड़ों की ओर पुनरावर्तन ।
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कला
एवं संस्कृति के माध्यम से सामाजिक, राष्ट्रीय एवं मानवीय मूल्यों का संवर्द्धन और
तदाशयिक उपयुक्त वातावरण का निर्माण ।
संस्कारघोटुलों की मूलरूप में पुनर्स्थापना ।
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संस्कृति
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3
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विचलित
हुये लोगों को मुख्य धारा में लाने के लिये मानसिक एवं भौतिक पुनर्वास ।
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मानसिक
पुनर्वास हेतु B.C.C. एवं
भौतिक पुनर्वास हेतु I.E.C. तथा
कुटीर उद्योग की व्यवस्था ।
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आयुष
एवं ग्राम विकास
|
3
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स्वस्थ
युवाओं का स्वस्थ समाज निर्माण एवं शालेयखिलाड़ी
स्वास्थ्य (School athlete health) का
उन्नयन
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जीवनशैली
में सुधार के लिये I.E.C./B.C.C. के
माध्यम से लोक-स्वास्थ्य
जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन । किशोरावस्थाजन्य समस्यायों के निराकरण हेतु
आयुष अभियान । किशोरी आयुष स्वास्थ्य अभियान । शालेयखिलाड़ी आयुष स्वास्थ्य
कार्यक्रम ।
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आयुष एवं
क्रीड़ा विभाग
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4
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आजीविका
के सुअवसरों की उपलब्धता के साथ आत्मनिर्भरता एवं उद्यमिता निर्माण
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परम्परागत्
व्यवसाय एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण की पुनर्स्थापना । आधुनिक तकनीकी कौशल विकास
एवं क्षमता वर्द्धन ।
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परिवार,
लाइवलीहुड कॉलेज, तकनीकी संस्थान
|
5
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सामुदायिक
सहभागिता
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कुटीरउद्योगग्रामों की स्थापना
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ग्राम
विकास
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6
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विकास
की अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण
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विभिन्न
प्रणालियों में समन्वयात्मक सम्बन्ध शैली का विकास
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प्रशासन
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युवानीति
के क्रियान्वयन में आयुष(आयुर्वेद) विभाग की भूमिका –
कार्यकलाप
का उद्देश्य
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आयुष
कार्यकलाप
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कार्ययोजना
का स्वरूप
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वैयक्तिक विकास
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स्वच्छता
सम्बन्धी आदतों में परिवर्तन ।
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Health awareness through BCC
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स्वस्थ
जीवनशैली का विकास (Cultivation
of healthy life style through health awareness programs and practice of exercise, Yogasan
and games etc.)
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Health awareness through IEC
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नशीली
वस्तुओं के सेवन के प्रति अरुचि उपन्न करने का प्रयास ।
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Health awareness through BCC
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मानव विकास
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बच्चों,
किशोरियों, गर्भिणियों एवं स्तनपान कराने वाली माताओं के पोषण स्तर में उन्नयन
हेतु सुपोषण योजना ।
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Awareness; preventive and curative
treatment
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शाला स्तर
पर एथलीट बच्चों की स्वास्थ्य सम्बन्धी काउंसलिंग ।
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Awareness; counseling
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किशोरावस्था
की मनोदैहिक समस्याओं सम्बन्धी काउंसलिंग ।
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Awareness; counseling
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गृहवाटिका
प्रोत्साहन अभियान-(मुनगा,पपीता,केला,नीबू,आँवला)
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Awareness and promotion
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स्वास्थ्य
की दृष्टि से गोधन संवर्द्धन हेतु प्रोत्साहन ।
|
Awareness and promotion
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भौतिक विकास
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वनौषधि
कृषि प्रोत्साहन एवं प्रसंस्करण
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IEC
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मानसिक विकास
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व्यक्तित्व
विकास एवं मानसिक पुनर्वास
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Workshop ; counseling and BCC
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