रविवार, 24 जनवरी 2016

गिद्धत्व धर्म निभाने ...

इस बार नहीं आया कोई गिद्ध अपना गिद्धत्व धर्म निभाने ...

भारत के हिन्दू समुदाय के संदर्भ में देखा जाय तो शोषण और उत्पीड़न अपने शिकार की जाति नहीं देखा करते, जाति देखने वाले तो दर्द के सौदागर हुआ करते हैं गोया गिद्ध हों जो लाश को देखते ही अपना पेट भरने वहाँ चले आते हैं । रोहित के पिता ने प्रमाणित किया है कि रोहित दलित नहीं था किंतु जिन्हें अपने गिद्धत्व धर्म का पालन करना था वे लोग ज़िद पर अड़े रहे (अभी भी अड़े हैं) कि रोहित दलित था और दलित का दर्द ब्राह्मण के दर्द से अलग होता है । आजकल देश का वातावरण विषाक्त होता जा रहा है जिसके प्रभाव से तथाकथित बुद्धिजीवी, समाजसुधारक. साहित्यकार, प्रगतिशील, कलाकार, फ़िल्मकार, मानवतावादी और धर्मनिरपेक्षी जैसे स्वयम्भू ठेकेदार गिद्धत्व धर्म में सहभागी होने लगे हैं । ऐसे में राजनेता प्रजाति के लोग ही क्यों पीछे रहते, वे तो ऐसे ही अवसरों की तलाश में रहते हैं ।

इस बीच तमिलनाडु में “योगा मेडिकल कॉलेज” की तीन छात्राओं ने आत्महत्या कर ली किंतु इस बार कोई गिद्ध नहीं आया क्योंकि वे दलित नहीं थीं । गिद्धों को केवल दलितों के शव ही अच्छे लगते हैं । 

आत्महत्या की परिस्थितियाँ कमोबेश एक जैसी ही होती हैं, उसकी इटियोलॉजी से लेकर मृत्युपूर्व अनुभूति तक सब कुछ एक जैसा होता है ... इस बात से निरपेक्ष कि उनकी जाति क्या है । किंतु “मूलनिवासी” नामक प्राणियों का अटल विश्वास है कि दलितेतर लोगों की आत्महत्या चिंतन-मंथन का विषय है ही नहीं क्योंकि उन्हें तो मर ही जाना चाहिये बल्कि उन सबको हाराकिरी कर लेनी चाहिये । उनकी पीड़ायें कारुणिक नहीं होतीं क्योंकि वे मनुवादी हैं और मनुवादियों को जीने का कोई अधिकार नहीं होता ।
यह कैसी विडम्बना है कि “मूलनिवासी” ब्राह्मणों की बेटियों से विवाह करने के लिये तो लालायित होते हैं, आरक्षणजन्य शिथिलता की कृपा पर ही निरंतर जीते रहना चाहते हैं, स्वयं को शोषित बनाये रखना चाहते हैं किंतु पुरुषार्थ के लिये तैयार नहीं होना चाहते जिससे कि वे भी स्वयं को गर्व से जीने के योग्य बना सकें । वे जानते हैं कि “बेचारगी” से उबरना एक घाटे का सौदा है, ब्राह्मणों को गरियाने और सुविधायें पाने का अधिकार वे खोना नहीं चाहते । ब्राह्मणों को गरियाने और कोसने में जो आनन्द है वह तो स्वर्ग के सुख में भी असम्भव है ।    


भारतीय समाज में विभिन्न समाजों और वर्गों को लेकर यह एक बढ़ती हुयी खाई है । यहाँ समझने की बात यह है कि यह खाई कौन खोद रहा है ? क्यों खोद रहा है ? और इस खाई का परिणाम क्या होगा ? वे लोग झूठे और षड्यंत्रकारी हैं जो वर्तमान आरक्षण को सामाजिक न्याय बताते हैं । वे नहीं चाहते कि उनके सामने कुछ और प्रतिस्पर्धी आयें इसलिये वे एक वर्ग को हमेशा बैसाखियों पर चलते हुये ही देखना चाहते हैं । जो गर्व से जीना चाहते हैं उन्हें यह षड्यंत्र समझना होगा ।       

1 टिप्पणी:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.