1-
चिंतित
हैं पच्चीस सिपाहियों की
वे
पच्चीस विधवायें
जिनके
पति मार दिये गये
चिंतागुफा
में घात लगाकर ।
चिंतित
हैं बिलखती विधवायें
कि क्या
बतायेंगी
जब बड़े
होकर पूछेंगे बच्चे
माँ !
किस देश
की सरहद पर मारे गये मेरे पिता ?
किस
शत्रु देश के योद्धाओं ने मारा मेरे पिता को ?
तब देश
के भीतर खिचीं
कितनी
सरहदों का नाम लेंगी वे ?
2-
हमें
नहीं मालुम
गृह
युद्ध की परिभाषा
हम तो
इतना जानते हैं
कि चलती
हैं गोलियाँ
सरहद के
भीतर भी
फटते
हैं बम
होती
हैं मुठभेड़ें
और मार
दिये जाते हैं देश के जवान
देश के
भीतर ही ।
लोकतंत्र
यदि यही है
तो नहीं
चाहिये तुम्हारा यह तोहफ़ा
इससे
पहले
कि कोई
गोली चीर दे तुम्हारा भी सीना
बन्द
करदो लोकतंत्र के साथ
अब और
छल करना ।
3-
कोई
नहीं जानता
कितनी
पुरानी है यह हवेली
जिसमें
रहते हैं हम ।
पीढ़ियाँ
निकल गयीं
इस
जर्जर हवेली में रहते
न जाने
कब से मरम्मत नहीं हुयी ।
सचमुच
रहना
बड़ा कष्टदायक है इसमें, इसीलिये
एक दिन
छोड़ कर चले गये तुम
मैं
नहीं गया
जाऊँगा
भी नहीं
मरम्मत
जो करनी है इस हवेली की ।
बस !
यही
फ़र्क़ है
मुझमें
और वाम पंथ में ।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 97वीं पुण्यतिथि - श्रीनिवास अयंगर रामानुजन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबन्द करदो लोकतंत्र के साथ
जवाब देंहटाएंअब और छल करना। बहुत सुंदर पक्ति.
वीरों का शत शत नमन...