गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

लावा

“लाल सलाम का इस्लाम”

  मुगलिया सल्तनत की राह पर
बढ़ते हुए आगे
ताजपोशी की वकालत करने लगा है
एक आदमी
जो कभी बजा-बजा कर साम्यवादी ढपली
माँगा करता था चन्दा
चीन के लिए,
कोसता रहता था दिन-रात
दासप्रथा और आर्थिक पूँजीवाद को
करता रहता था
सर्वहारा के लिए
चिंतित होने का स्वांग ।
आज वही आदमी 
लोकतंत्र की नहीं
राजतंत्र की बात करने लगा है ।
कमाल है
भारत में बीड़ा उठा लिया है
राजतंत्र को पुनर्स्थापित करने का
एक साम्यवादी ने । 

 “समस्या”

चुनाव के मौसम में
लुप्त हो गए
जनसरोकार के विषय,
लुप्त हो गया युग
लोकलुभावन झूठे वादों का भी,
अब तो आ गया है
आते ही छा गया है
युग
नीचा दिखाने
और कीचड़ उछालने का ।
आज की ज्वलंत समस्या है
“उसका कीचड़
मेरे कीचड़ से अधिक बद्बूदार क्यों”?

 “राजपथ”  

आरोप है
कि जातियों ने खोद डाली थीं खाइयाँ
खाइयाँ ने उगाई थीं असमानता की फसलें
इसीलिए होने लगी ब्राह्मणों पर बौछार
गालियों की
अपमानित किया जाने लगा मनु को
और दे दी गई संज्ञा सेतु की
आरक्षण की उस परिखा को
खोदी गई थी जो
खाइयों को पाटने के लिए ।
भरे जाते रहे परिखा में
घृणा के विचार,
प्रवाह की रोक दी गई परम्परा,
सड़ांध ने दुश्वार कर दिया जीना ।
चुनावों में बिछाई जाने लगीं
जाति की बिसातें,
खाइयाँ और गहरी होती गईं ।
और अब
कोई भी नहीं चाहता ख़त्म करना
इन खाइयों को,
राजमहल का रास्ता
इन्हीं खाइयों से होकर जाता है ।

 “बेहतर”

एक है भेड़िया
घात में रहता है ।
एक है गधा
धूल में लोटता है ।
दोनों का दावा है
कि जंगल के राजकाज के लिए
नहीं है कोई
उनसे बेहतर ।
जंगल के लोग दीवाने हैं
कुछ भेड़िए के
कुछ गधे के ।
चीकू खरगोश ने
जब यह वक्तव्य दिया, कि 
“इस जंगल में
अब नहीं पैदा होता
कोई शेर”
तो लोग ख़फ़ा हो गए । 
सुना है
आजकल पागलखाने में भरती है
चीकू खरगोश ।

‘भय’

राजनीति के केन्द्र में
और ‘धन’
सत्ता के केन्द्र में ।
बस !
इतना ही तो सार है
इस असार संसार का !
यही रहस्य है
और यही है धर्म
कलियुग का !

"इबारत"

राजप्रासादों में है
पंक ही पंक ।
वही...
जिसका वे प्रयोग करते हैं
रात-दिन ।
यही पंक
एक दिन बदल जाएगा
हाइड्रोजन बम में
और तब
एक और हड़प्पा संस्कृति
दर्ज़ हो जाएगी
पुरातात्विक इतिहास में ।
किंतु
लिखनी हो जिन्हें
इबारत
एक और
नई सभ्यता की
जाना होगा उन्हें जंगल में
उतार कर अपने कपड़े

मेरी तरह । 

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