घटनाओं की पुनरावृत्ति ब्रह्माण्डीय घटनाक्रम का
परिणाम है इसीलिये तो इतिहास भी ख़ुद को दोहराता रहता है । किंतु आज हम बीते हुये इतिहास
की नहीं, भविष्य के इतिहास की बात करेंगे...
उस इतिहास की बात..., जिसकी भूमिका बहुत कुछ रची जा चुकी है ।
घटनायें, जो होने वाली हैं उनका पूर्वानुमान अब कठिन नहीं रह
गया । चलिये, कुछ उड़ान भी भर ली जाय जिससे घटित होने वाला इतिहास
ठीक-ठीक देखा जा सके ।
हुआ यह कि बेशुमार प्रदूषण ने अंततः एक दिन चेतावनी
दे दी कि बस ! अब और नहीं, तुम्हें
अपने लिये एक नया आशियाना खोजना ही होगा । अन्न-जल-हवा... सब कुछ विषाक्त हो गया,
लोग विचित्र बीमारियों से ग्रस्त होकर मरने लगे । भारत के राजाओं को
पहले तो लगा कि यह सब आम जनता के लिये है, हमारे लिये तो अभी
भी सब कुछ पूर्ण शुद्ध रूप में सेवकों द्वारा उपलब्ध करवाया जाता रहेगा ...सदा की तरह
.. किंतु ऐसा हुआ नहीं । कुछ राजा भी तड़प-तड़प कर मर गये तो बाकी राजाओं के कान खड़े
हुये । उन्हें वैज्ञानिकों की बात माननी पड़ी ।
तय हुआ कि शीघ्र ही किसी दूसरे ग्रह की खोज की
जाय । कारिंदों की तरह वैज्ञानिकों ने हुक़्म की तामील की । भाग-दौड़ शुरू हो गयी । वैज्ञानिकों
ने मंगल ग्रह को उपयुक्त पाया और वहाँ नयी बस्तियाँ बसानी शुरू कर दी गयीं । ममता, मायावती, उमा भारती,
राहुल, सोनिया, वाड्रावंश,
अब्दुल्लावंश, मुफ़्तीवंश, मुलायमवंश, लालूवंश, आज़म ख़ान,
योगी, मोदी,...जैसे सभी राजाओं
ने मंगल ग्रह पर जाकर अपने-अपने लिये सुरक्षित इलाके खोज लिये । आडवाणी जैसे लोगों
को धरती पर ही छोड़ दिया गया, नये ग्रह पर उनकी कोई भूमिका किसी
को नज़र नहीं आयी । ज़रूरत के कुछ वैज्ञानिकों, सेवकों और चमचों
को भी दरबार सजाने के लिये मंगल पर बुला लिया गया ।
यह वह समय था जब राजा तो थे किंतु उनके राज्य नहीं
थे, राज्यों की सीमायें नहीं थीं,
प्रजा नहीं थी । सभी राजा शासन करने की प्रचण्ड इच्छा से लबालब भरे हुये
थे । शेष लोग उनकी भक्ति के लिये स्वयं को तैयार कर चुके थे, उन्हें धरती की तरह यहाँ भी शासित ही रहना था । इसी बीच पता चला कि ब्रह्माण्डीय
डार्क मैटर के वेश में कन्हैया, उमर ख़ालिद, शबनम लोन, उमर अब्दुल्ला आदि भी मंगल ग्रह पर पहुँच गये
हैं ।
हुकूमत के मौलिक अधिकार को लेकर प्रारम्भ हुयी
वैचारिक सुगबुगाहट शीघ्र ही एक सैद्धांतिक युद्ध में बदल गयी । हमेशा आपस में लड़ते
रहने वाले राजवंश के लोग एक मंच पर आ गये और उन्होंने तय किया कि राजवंशों में नये
लोगों को प्रवेश नहीं दिया जाना चाहिये ।
शबनम लोन ने ख़िलाफत में मोर्चा खोल दिया कि मंगल
ग्रह किसी की बपौती नहीं है, अपनी-अपनी
दमखम के आधार पर कोई भी व्यक्ति अपने लिये एक नया मुल्क बना सकता है, उसकी सीमायें तय कर सकता है और सुल्तान बन सकता है । मोदी और उनके साथ के लाइक
माइण्डेड राजाओं ने कहा – “हमारे पूर्वजों ने तो पहले ही कह दिया
था ...वीर भोग्या वसुंधरा”।
कन्हैया ने देखा कि यहाँ तो युद्ध जैसे हालात उत्पन्न
हो रहे हैं किंतु गनीमत यह थी कि आयुधों के अभाव में मल्लयुद्ध के अतिरिक्त और कुछ
सम्भावना फ़िलहाल वहाँ नहीं थी । कन्हैया को पृथ्वी ग्रह पर अपने हिरासत वाले दिनों
का ख़ौफ़ ताज़ा हो आया तो उसने अरेबिक हिक़मत से व्यूह रचना शुरू कर दी ।
जिस समय मोदी आदि अपने-अपने राज्यों के लिये प्राकृतिक
सम्पदा सम्पन्न किसी भूभाग की खोज में लगे हुये थे उस समय उमर अब्दुल्ला और कन्हैया
जैसे लोग मंगल पर आराम कर रहे थे । उन्हें राज्य के लिये किसी भूभाग को खोजने की कोई
ज़ल्दी नहीं थी ...और न कोई चिंता । ये लोग बचपन में मोहम्मद बिन क़ासिम के किस्सों के
साथ-साथ कौवा और गिलहरी वाली कहानी पढ़ चुके थे । कन्हैया ने मौज में आकर गुनगुनाया
- "तू चल मैं आता हूँ ...चुपड़ी रोटी खाता हूँ ..हरी डाल पर बैठा हूँ
..."
इधर गिलहरी की तरह बड़े परिश्रम से मोदी आदि राजाओं
ने अपने-अपने लिये भूभागों की खोज कर ली और अपने-अपने राज्य स्थापित कर लिये । राज्य
स्थापित होते ही मायावती ने मूलनिवासी होने का दावा करते हुये स्वयं को पूरे मंगल ग्रह
की एकमात्र स्वामिनी घोषित कर दिया । संयोग से मंगल पर राष्ट्रवाद जैसी अवधारणाओं का
अभी तक उदय नहीं हो सका था ।
अतिक्रमण सम्प्रदाय के पुरोधा उमर अब्दुल्ला ने
अपने लोगों के साथ एक रात मोदी के राज्य पर चढ़ाई कर दी और एक बड़ा हिस्सा हथिया लिया
। वीरभोग्या वसुंधरा का सिद्धांत फलीभूत हो गया, मोदी जैसे राजागण चिचियाते रह गये ...उनकी सुनने वाला कोई नहीं था ।
नये ग्रह पर मायावती नामक अतिमहत्वाकांक्षी स्त्री
मूलनिवासी की बहस छेड़ चुकी थी और मोदी आदि राजाओं को अपदस्थ कर अपनी दावेदारी के लिये
हाथ-पाँव मार रही थी । मूलनिवासी की बहस के खण्डन-मण्डन में हर कोई कूद पड़ा । मोदी
आदि राजाओं ने कहा – “हम सभी
धरती से आकर यहाँ बसे हुये हैं, कोई भी समुदाय यहाँ के मूलनिवासी
की दावेदारी कैसे कर सकता है “?
कन्हैया और शबनम लोन ने देखा तो एक दिन उन्होंने
भी आपस में मंत्रणा की – मंगल किसी
की बपौती नहीं है । यहाँ कौन हुक़ूमत करेगा यह मोदी कैसे तय कर सकते हैं ! हममे से हर
किसी को मंगल पर हुकूमत करने का अधिकार है । हमें मोदी के हजार टुकड़े कर देना चाहिये
और उनके राज्य पर अपनी हुकूमत क़ायम कर लेनी चाहिये । वीरभोग्या वसुंधरा का सिद्धांत
हमारे लिये भी लागू होता है ।
शीघ्र ही पूरे मंगल पर “हुक़ूमत का अधिकार” विषय पर
ग्रहव्यापी बहस छिड़ गयी ।
जिस समय भारतीय राजा बहस में लगे हुये थे ठीक उसी
समय शी जिन पिंग नामक छोटी-छोटी आँखों वाला एक महाकाइयाँ आदमी चुपचाप मंगल की ज़मीन
पर खूँटे गाड़ता हुआ अपने राज्य की सीमा निर्धारित करने में लगा हुआ था । शी जिन पिंग
निरंतर खूँटे गाड़ता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था उसे रोकने वाला वहाँ कोई भी नहीं था ।
आभार मिश्र जी !
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