रविवार, 20 अक्तूबर 2019

हिमालय


थुनेर की नमकीन चाय
तिमूर के साथ भाँग के बीजों की चटनी
मडुवा की रोटी
छीपी के तड़के वाली
भट की दाल  
और
छोटी सी तिपायी पर
रिंगाल की टोकरी में रखे
बुराँस के सुर्ख फूल
अक्सर बुलाते हैं मुझे ।
मैं भाग जाना चाहता हूँ
एक दिन
तोड़ कर सारी जंजीरें
देवदार के जंगलों में ।

नैना देवी से
मिलम के मार्ग पर
वहाँ
बैठकर उस चोटी के एक किनारे
बजाना चाहता हूँ बाँसुरी
देखना चाहता हूँ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड
बंद कर अपनी आँखें ।
हिमालय की दिव्यता
बाँधती है मुझे
अपने सम्मोहन में
किंतु
डरती है पत्नी
हिमालय के खिसकने से
बादलों के फटने से
रास्तों के अवरुद्ध हो जाने से...
मौत से भयभीत पत्नी 
नहीं जाना चाहती मुंसियारी
नहीं जाना चाहती बागेश्वर ।
डरती है पत्नी
जैसे डरते हैं और भी बहुत से लोग
भाग जाना चाहते हैं मैदानों की ओर
लेकर अपना परिवार ।

मैं
चढ़ जाना चाहता हूँ
दुर्गम चोटियों पर
डरते हैं जिनसे लोग
मुझे आकर्षित करती हैं
हिमालय की वे ही हलचलें
सहम जाते हैं जिनसे लोग ।

हिमालय की मुश्किलों से
दोस्ती नहीं कर सकी पत्नी
किंतु मेरे प्राण तो रखे हैं गिरवीं
वहीं कहीं
ढूँढने जाना है मुझे
एक दिन उन्हें ।

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