मंगलवार, 23 जनवरी 2024

बार-बार राष्ट्रद्रोह

अयोध्या में श्रीरामलला मंदिर का इतिहास भारत का इतिहास है जो हमें त्रेतायुग के आदर्श मानवमूल्यों में ले जाता है । जो लोग इस इतिहास से घृणा करते हैं और इसे स्वीकार नहीं करना चाहते उन्हें हम भारत के प्रति निष्ठावान कैसे मान सकते हैं! ऐसे लोगों का भारत के विकास में क्या योगदान हो सकता है सिवाय विध्वंस के!

...और अब जबकि हमने सन् 1528 में हुये अपने पराभव के उस कलंक को 9 नवम्बर 2019 को मिटाकर अपने प्राचीन गौरवमयी इतिहास को पुनः स्थापित कर दिया है तो एक बार फिर शोएब जमई और ओवैसी जैसे विषाक्त विचारधारा वाले लोग फुफकारने लगे हैं । आश्चर्य है, इन विषाक्त लोगों पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं होती, इन्हें निरंकुश क्यों रहने दिया गया है?

कल अयोध्या में प्राणप्रतिष्ठा हुयी, पूरे देश में दीपावली मनायी गयी, मुम्बई में उत्साही लोगों ने जय श्रीराम का उद्घोष करते हुये मीरारोड-भायंदर से होते हुये एक शोभायात्रा निकाली जिसपर राष्ट्रद्रोहियों की हिंसक प्रतिक्रिया देखने को मिली । भारत में हर बार ऐसा क्यों होता है ? बात-बात में संविधान की दुहाई देने वाले धूर्त कहाँ हैं?  

समाचार है कि कल भायंदर में शोभायात्रा पर पथराव किया गया, गाड़ियों को आग लगा दी गयी और विष्णु जायसवाल के गाल पर चाकू से आक्रमण किया गया । अभी तक तेरह लोगों को बंदी बना लिया गया है जिनमें चार किशोरवय भी हैं । किशोरों और लड़कियों को आगे करके विध्वंस करने की इस दुष्टनीति को रोकने के लिए हमारी केंद्रीय और राज्य सरकारें कब तक भीरु बनी रहेंगी?  

पाकिस्तान में वहाँ के अल्पसंख्यकों द्वारा इस तरह की घटना की कल्पना भी नहीं की जा सकती । प्रश्न उठता है कि इतनी जघन्यता और राष्ट्र को बारबार चुनौती देने वाली घटनायें भारत में ही क्यों होती हैं ? सन् 1946 से 1948 तक का इतिहास बताता है कि भारत के कम्यूनल दुर्भाग्य का बीजारोपण तत्कालीन दो महान लोगों द्वारा किया गया और बाद में मनमोहन सरकार द्वारा लिये गये कुछ निर्णयों ने इसे पल्लवित-पुष्पित करने का काम किया ।

दुष्टों के दुस्साहस और शोएब जमई एवं ओवेसी जैसे कुछ लोगों की विध्वंसक चेतावनी को देखते हुये अयोध्या जाने वाले दर्शनार्थियों को धैर्य से काम लेना होगा । ध्यान रखिए, फ़िदायीन आक्रमणकारी भीड़ का दुरुपयोग कर सकते हैं ।

 

*मंदिरों का बँटवारा*

मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या में श्रीराम कारसेवकों पर गोली चलवाकर इतिहास रच दिया था । मुलायमपुत्र अखिलेश यादव ने राजनीतिक कारणों से रामलला की प्राणप्रतिष्ठा का बहिष्कार किया और इससे होने वाली राजनीतिक क्षतिपूर्ति को कम करने के लिए सैफई में श्रीकृष्ण का भव्यमंदिर निर्माण किये जाने के समाचार उनके समर्थकों द्वारा प्रसारित किये जाने लगे हैं । अयोध्या में निर्मित श्रीरामलला के मंदिर से भी अधिक बड़ा और भव्य मंदिर बनवाना चाहते हैं अखिलेश । अखिलेश यादव को बधाई! ...किंतु अयोध्या के साथ श्रीरामलला का जो सम्बंध है वैसा सम्बंध श्रीकृष्ण जी का सैफई से कैसे स्थापित कर सकेंगे आप? प्रतिस्पर्धा करते समय सम्बंधों, प्रतीकों और प्रभावों को भी ध्यान में रख जाना चाहिये महोदय जी!  

श्रीराम के विरोधी मुलायमपुत्र श्रीकृष्ण का मंदिर क्यों बनवाना चाहते हैं? क्या हमारे आदर्शों का भी राजनीतिक बँटवारा कर लिया गया है? सूर्यवंशी राम से शत्रुता और चंद्रवंशी श्रीकृष्ण से निकटता! धार्मिक प्रतीकों और सामाजिक एवं राजनीतिक मूल्यों को लेकर इस तरह का बँटवारा देश के लिये बहुत घातक है ...और समाज को तोड़ने वाला भी । हम इस तरह की दूषित मानसिकता का विरोध करते हैं । भारत की आम जनता श्रीराम और श्रीकृष्ण के जीवनमूल्यों को अपना आदर्श मानती रही है और उनमें किसी भी तरह का विभेद या विद्वेष स्वीकार नहीं कर सकती । मंदिर निर्माण का उद्देश्य यदि सात्विक और पवित्र न होकर स्वार्थपूर्ण हो तो ऐसे मंदिर कभी लोककल्याण नहीं कर सकते ।

आश्चर्यजनक बात तो यह है कि मंदिर का निर्माण राजसत्ताओं द्वारा किया जाता रहा है लेकिन मंदिरों को लेकर गालियाँ ब्राह्मणों को दी जाती रही हैं । राजनीति की इस प्रमेय को बूझना सरल नहीं है ।

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