प्राणप्रतिष्ठा के मुहूर्त को लेकर शंकराचार्यों और नेताओं द्वारा की गयी टिप्पणियों से जनमानस में कुछ शंकायें उत्पन्न हो गयी हैं । जब विद्वानों द्वारा किसी विषय पर प्रतिकूल टिप्पणियाँ की जाने लगें तो आमजन का सशंकित होना स्वाभाविक है । हमने इस विषय पर मोतीहारी वाले मिसिर जी से चर्चा की जो मुहूर्त से होकर आगे बढ़ती हुयी प्राणप्रतिष्ठा के भौतिक शास्त्र तक पहुँच गयी । इस चर्चा में हुये प्रश्नोत्तरों के कुछ महत्वपूर्ण अंशों को हम यहाँ यथावत् प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं ।
प्रश्न – एक संत ने चेतावनी दी है कि प्राणप्रतिष्ठा की प्रक्रिया में
सही विधान का पालन नहीं किया जा रहा है, मुहूर्त भी शुभ नहीं है, यदि अमुहूर्त में प्राणप्रतिष्ठा की जायेगी तो मंदिर के चारों
ओर नकारात्मक सूक्ष्मशक्तियाँ एकत्र होने लगेगीं जिसके दुष्परिणाम भोगने के लिए
सभी को तैयार रहना होगा । क्या सचमुच अयोध्या का मंदिर भारत के लिए अभिषाप बनने जा
रहा है?
उत्तर – मंदिर कभी अभिषाप नहीं होते । नकारात्मक सूक्ष्म शक्तियों के
एकत्र होने की बात भयादोहन है, ऐसा कुछ नहीं होता । दिव्यशक्तियों के आह्वान और आराधना के लिये
हर क्षण मुहूर्त होता है । दिक् और काल की सृष्टि करने वाले ईश्वर ने अपने आह्वान
और आराधना के लिए कोई भी क्षण ऐसा नहीं बनाया जो अ-मुहूर्त हो ।
प्रश्न – मूर्ति में
प्राणप्रतिष्ठा आवश्यक क्यों है ?
उत्तर – यदि मूर्ति में
प्राणप्रतिष्ठा नहीं की जायेगी तो मंदिर पर्यटन के केंद्र बनकर रह जायेंगे, शक्ति के केंद्र नहीं बन सकेंगे । प्राणप्रतिष्ठा की प्रक्रिया ध्वनिविज्ञान
पर आधारित है । पूरी प्रक्रिया एक जटिल फ़ोर्टीफिकेशन की तरह होती है जिसे कई
प्रकार की प्रोसेज़ से होकर गुजरना होता है । फ़ोर्टीफ़िकेशन के बाद कोई भी
फ़ोर्टीफ़ाइड उत्पाद गुणकारी, शक्तिशाली और जनसामान्य के
उपयोग के लिए उपयुक्त हो जाता है ।
सुपात्र साधकों द्वारा विधिवत
किये गये वैदिक मंत्रोच्चारण से जो ध्वनि ऊर्जा उत्पन्न होती है उसे मूर्ति में
पोटेंशियल एनर्जी के रूप में स्थापित किया जाता है । कोई भी साधारण मूर्ति केवल
पांचभौतिक तत्वों का पुञ्ज भर होती है । किसी अनगढ़ पत्थर को मूर्ति का आकार देने
वाला मूर्तिकार सामान्य लोगों की अपेक्षा महान होता है किंतु जब मंत्रजनित सात्विक
पोटेंशियल एनर्जी से उसी मूर्ति को अनुप्राणित किया जाता है तो वह मूर्ति अपने
निर्माता मूर्तिकार से शक्तिशाली हो जाती है । मूर्तिकार मनुष्य ही रह जाता है
किंतु उसकी बनायी हुयी मूर्ति दिव्य हो जाती है । परमाणु बम बनाने वाला वैज्ञानिक
मनुष्य ही रहता है पर उसका बनाया हुआ बम शक्ति का महापुञ्ज हो जाता है ।
प्रश्न – प्रसिद्ध मंदिरों में
नित्य पूजन-अर्चन किया जाता है, वहीं कई मंदिर ऐसे भी हैं जहाँ
महीनों कोई जाता ही नहीं । क्या इससे मूर्ति के दिव्यत्व पर कोई प्रभाव पड़ सकता है?
उत्तर – प्राणप्रतिष्ठित
मूर्ति की नित्य पूजा-अर्चना आवश्यक है । धरती के भीतर दबा हुआ यूरेनियम किसी को
हानि नहीं पहुँचाता, सोडियम जब तक खनिज के रूप में
है तब तक शांत रहता है किंतु एक बार रासायनिक शोधन प्रक्रिया सम्पन्न हो जाने के
बाद यूरेनियम हो या सोडियम उनका रखरखाव आसान नहीं होता । बम का रखरखाव साइंटिफिक
श्रद्धा के साथ किया जाना अपरिहार्य है अन्यथा शक्ति का वह महापुञ्ज किसी दुर्घटना
का कारण भी बन सकता है । यदि आप चाहते हैं कि न्यूक्लियर रिएक्टर का रचनात्मक
उपयोग किया जाय, विध्वंसक नहीं तो उसका सम्मान
करना होगा । विज्ञान की भाषा में सम्मान और श्रद्धा जैसे शब्द साइंटिफिक नॉर्म्स
के विधिवत अनुपालन की अपेक्षा करते हैं । आप जानते हैं, न्यूक्लियर रिएक्टर को हैवी-वाटर अर्पित करना ही होगा अन्यथा वह
कुपित जायेगा ।
प्रश्न – दिव्य मूर्तियों को
विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा खंडित और अपमानित किये जाते रहने के इतिहास से पूरा
विश्व परिचित है । हिन्दुत्वविरोधियों और नास्तिकों द्वारा प्रायः यह पूछा जाता है
कि शक्तिकेंद्र माने जाने वाले मंदिरों की मूर्तियाँ मूर्तिभंजकों के प्रहार से
अपनी रक्षा क्यों नहीं कर सकीं?
उत्तर – मूर्तियों द्वारा की
जाने वाली प्रतिक्रियाओं की एक सुनिश्चित् वैज्ञानिक प्रक्रिया होती है, उनसे तलवार लेकर युद्ध करने की अपेक्षा अनुचित है । उनकी
प्राभाविकता “देने” वाली होती है, “लेने” वाली नहीं, वे जीवन की शक्ति दे सकती हैं, किसी का जीवन ले नहीं सकतीं, इसीलिये वे दिव्य हैं अन्यथा किसी का जीवन लेने के लिए तो
मनुष्य है ही । मूर्तियाँ प्रतिहिंसा नहीं करतीं । निश्चित ही प्राणप्रतिष्ठित
दिव्यमूर्तियाँ शक्तिशाली होती हैं किंतु उनका शक्तिपात केवल रचनात्मक कार्यों के
लिए ही होता है । आशीर्वाद देने वाली मूर्तियाँ हिंसक प्रतिक्रिया कैसे कर सकती
हैं! यही कारण है कि सोमनाथ जैसे कई मंदिरों को विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा
बार-बार नष्ट किया जाता रहा ।
प्रश्न – लोग मंदिर जाते हैं, किसी कामना की पूर्ति के लिए देवी-देवता से आशीर्वाद लेते हैं
परंतु आवश्यक नहीं कि याचक को सफलता मिल ही जाय । दिव्यमूर्ति का आशीर्वाद निष्फल
कैसे हो जाता है ?
उत्तर – एक ही लैबोरेटरी में
काम करने वाले सभी वैज्ञानिकों को सफलता नहीं मिल पाती । आवश्यक नहीं कि हर
वैज्ञानिक का आविष्कार सफल, उपादेय और सर्वकल्याणकारी हो ।
एक वैज्ञानिक बुहान की लैब में काम करता है तो जेनेटिकली मोडीफ़ाइड कोरोना वायरस
तैयार करता है, एक अन्य वैज्ञानिक
भारत-बायोटेक की लैब में काम करता है तो कोरोना को-वैक्सीन का आविष्कार करता है ।
याचक की क्षमता और शुचिता पर निर्भर है कि किसी मंदिर में जाकर वह वहाँ से क्या और
कितना प्राप्त कर पाता है ।
प्रश्न – प्रधानमंत्री मोदी कल
सुबह रामलला की प्राणप्रतिष्ठा में भाग लेने वाले हैं, कुछ साधु-संतों ने इसे विधिविरुद्ध बताया है । क्या मोदी का
यजमान होना विधिविरुद्ध है?
उत्तर – ऐसे महत्वपूर्ण
कार्यों के लिए सुपात्रता की आवश्यकता तो होती ही है । मोदी इसके लिए सुपात्र हैं
या नहीं इसका निर्धारण कौन करेगा और इसकी इलेजिबिलिटी परीक्षा कैसे की जाय! मोदी
जी साधारण व्यक्ति होकर भी पिछले कई दिनों से सुपात्रता की साधना कर रहे हैं, वहीं कई साधुसंत क्रोधित हैं और मोदी को कोस रहे हैं । मुझे
लगता है कि ऐसे साधु-संतों की अपेक्षा मोदी जी प्राणप्रतिष्ठा के लिये कहीं अधिक
सुपात्र व्यक्ति हैं ।
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