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शनिवार, 21 नवंबर 2020

काश! कोई जिन्ना यहाँ भी होता...

कल गोरखपुर वाले ओझा जी और मोतीहारी वाले मिसिर जी में अच्छी-ख़ासी नोक-झोंक हो गयी । मामला गरम होने लगा तो बीच में अपर्णा जी भाया टाटानगर को बीच में लाना पड़ा । बात मोहम्मद अली जिन्ना की थी । ओझा जी मोहम्मद अली जिन्ना की क़ौमी सोच का सैद्धांतिक समर्थन कर रहे थे जबकि मिसिर जी मोहम्मद अली जिन्ना को अखण्ड भारत का शत्रु मान रहे थे ।

ओझा जी का मानना था कि अपने समुदाय के प्रति जिन्ना के जुझारू समर्पण से हिंदुओं को सीख लेने की आवश्यकता है । हमें उनकी व्यक्तिगत ज़िंदगी और आचरण पर नुक्ताचीनी करने की न तो आवश्यकता है और न अधिकार, आप तो यह सोचिये कि जिन्ना अपने समाज के लिये कितने काम के आदमी थे । जिन्ना को हिंदू ऑब्ज़रवर की दृष्टि से नहीं एक मुस्लिम ऑब्ज़रवर की दृष्टि से देखिये फिर बताइये क्या आपको हिंदू समाज में एक जिन्ना की कमी नहीं खलती ? क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि काश! कोई जिन्ना यहाँ भी होता ? जिन्ना के पासंग में नेहरू कहाँ ठहरते हैं जो जन्म से भारतीय किंतु विचार और आचरण से अंग्रेज़ माने जाते थे ? जिन्ना ने जो किया वह अपनी क़ौम के लिये किया और वे अपने समुदाय के आदर्श बन गये, क्या उनका ऐसा करना अपराध था ? यदि कोई जननायक हिंदुओं के लिये जिन्ना जैसा जुझारू होता तो क्या उसका ऐसा करना अपराध होता ?   

मिसिर जी ने प्रतिवाद किया – जिन्ना यदि मुसलमानों के हितैषी होते तो पाकिस्तान बनाने की ज़िद नहीं करते । जिन्ना की सोच के अनुसार यदि अखण्ड भारत मुसलमानों के लिये असुरक्षित था तो आख़िर विभाजन के बाद भारत में रह गये मुसलमानों के हित की बात मुस्लिम नेता जिन्ना ने क्यों नहीं सोची? शराबनोशी और वर्ज्यमांस से परहेज न करने वाले जिन्ना क्या वास्तव में इस्लाम या मुसलमानों के लिये कुछ भी कर सके? यदि धर्माधारित विभाजन न होता तो दोनों देशों में इतना धार्मिक ध्रुवीकरण भी न होता, न आज पाकिस्तान इतना निर्धन देश होता और न एशिया में इतनी अशांति और आतंक होता । सच यह है कि जिन्ना ने जो किया वह न तो इस्लाम के लिये किया और न मुसलमानों के लिए बल्कि केवल अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए किया । अब बात आती है जिन्ना के इस्लाम प्रेम की, तो यह समझना होगा कि क्या उन्होंने इस्लाम को पतवार की तरह स्तेमाल नहीं किया ?  

        अंत में अपर्णा जी भाया टाटानगर की मध्यस्थता के बाद ओझा जी यह स्वीकार करने के लिए तैयार हो गये कि भारत के विभाजन में इस्लामिक समुदाय के हित की कल्पना करने वाले क़ायदे आज़म जिन्ना ने मुसलमानों को तो ख़ुश कर दिया किंतु भारत के भविष्य की घोर उपेक्षा की जिससे धार्मिक ध्रुवीकरण की जड़ों को पर्याप्त खाद-पानी मिलने लगा और दोनों देशों में धार्मिक उन्माद सदा के लिये स्थापित हो गया । देश के विभाजन से इस्लाम को क्या लाभ हुआ यह तो नहीं पता किंतु हिंदुओं और मुसलमानों के विकास में ढेरों बाधायें ख़ूब उत्पन्न हुयीं और अखण्ड भारत विश्व की महाशक्ति बनने से चूक गया ।     

गुरुवार, 15 अक्टूबर 2020

गांधी जी की आत्मा के नाम एक खुला पत्र...

हे स्वर्गीय मोहनदास करमचंद गांधी जी !

खेद है कि मैं आपको नमस्ते या राम-राम नहीं लिख सकूँगा क्योंकि भारत में अभिवादन के ये शब्द भगवावाद और फासीवाद के प्रतीक हो गये हैं किंतु अस्सलाम वालेकुम या सलाम जैसे शब्द भी नहीं लिख सकूँगा क्योंकि हमारी भाषा में अभिवादन के भावसमृद्ध शब्दों का लेश भी अभाव नहीं है । अस्तु, मैं सीधे-सीधे अपनी बात लिख रहा हूँ, बुरा मत मानियेगा ।

यह सच है कि हमारी पीढ़ी ने उस समय तक जन्म न होने के कारण स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान नहीं दिया किंतु उस समय बोई गयी व्यवस्थायें पल्लवित-पुष्पित होकर आज हमें यह सोचने के लिए विवश करने लगी हैं कि किसी नागरिक के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में स्वतंत्रता का औचित्य क्या है ?

आपने अपने युग में हुये धार्मिक दंगों में नृशंस हिंसा का तांडव देखा है, हम अपने युग में होने वाले धार्मिक दंगों की हिंसा से उत्पीड़ित हो रहे हैं । यह एक सुस्थापित तथ्य है कि विदेशी आक्रमणकारी शासक बनकर भारत की सनातन संस्कृति को नष्ट करने के हर तरह के उपाय करते रहे हैं किंतु स्वतंत्रता के बाद भी इस प्रक्रिया पर विराम नहीं लग सका । उन्हीं विदेशी आक्रमणकारियों के वंशजों द्वारा भारत की सनातन संस्कृति को नष्ट करने और भारत की रही सही डेमोग्राफ़ी को पूरी तरह बदल देने के षड्यंत्र भारत में आज भी फलीभूत हो रहे हैं ।

हे गांधी जी की आत्मा जी ! हम आपको सूचित करना चाहते हैं कि आज की पीढ़ी को विरासत में जो भारत मिला है वहाँ (असम में) सरकारी सहयोग से चलने वाले दीनी तालीम वाले मदरसों को सामान्य स्कूलों में रूपांतरित किए जाने, क़ाफ़िर की लड़की को प्रेमजाल में फाँसकर धर्मांतरण किये जाने की घटनाओं का विरोध किये जाने और मुस्लिम शासन में मंदिरों को ढहा कर उनके स्थान पर बनायी गयी मस्ज़िदों को पूर्ववत सनातनी आराधना स्थल बनाये जाने की माँग करने से भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब और सेक्युलरिज़्म के संकटग्रस्त हो जाने के हो-हल्ला से परेशान होकर मुझे प्रायः आपकी याद आती रहती है । भारत में इस्लामिक हुक़ूमत लाने, पूरे भारत को धर्मांतरित करने और क़ाफ़िरों को काटकर फेक देने जैसी भयभीत करने वाली इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर खुलेआम मिलने वाली धमकियों ने हमारा जीना दुर्लभ कर दिया है ।

हे गांधी जी की आत्मा जी ! यशपाल की मानें तो साल 1947 में बँटवारे के समय लाहौर में सिखों की लड़कियों के साथ होने वाले दुष्कर्मों की घटनाओं पर दिल्ली में शरणार्थी शिविरों के सिख प्रतिनिधि मण्डल को दी गयी आपकी सलाह मुझे भयभीत करती है इसलिए हम आपसे यह नहीं पूछेंगे कि भारत के सनातनी लोगों को अपनी प्राणरक्षा और सम्मान को बचाने के लिए क्या करना होगा ।

सम्प्रति, हम सनातनी लोग इस्लामिक स्कॉलर्स, मौलवियों, इस्लामिक एक्टिविस्ट्स और भारत विरोधी राजनेताओं द्वारा अपने ऊपर थोपे गये जिन विचारों और व्यवस्थाओं को मानने और स्वीकार करने के लिए विवश किये जा रहे हैं उनके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं – 

-      भारतीय मदरसों में दीनी तालीम दिया जाना सेक्युलरिज़्म है किंतु भारत में कुम्भ का आयोजन भगवावाद, संघवाद, फासीवाद और हिटलरशाही है ।

-      मुस्लिम युवक का किसी क़ाफ़िर को दुश्मन मानना किंतु उसकी लड़की से प्रेम करके उसका धर्मांतरण करना और उससे निक़ाह करना शरीयत के अनुसार ज़ायज़ है किंतु किसी हिंदू युवक का किसी मुसलमान की लड़के से प्रेम करना सेक्युलरिज़्म के ख़िलाफ़ है ।

-      भारत में हजारों मंदिरों को ध्वस्त कर उनके ऊपर मस्ज़िद का निर्माण ज़ायज़ है जबकि इस तरह की मस्ज़िदों को पूर्ववत् मंदिर में रूपांतरित करने की माँग़ करना सेक्युलरिज़्म के ख़िलाफ़ है ।

यदि सेक्युलरिज़्म और गंगा-जमुनी तहज़ीब का यही अर्थ और उद्देश्य है तो निस्संदेह भारत की संस्कृति और सभ्यता को बचाये रख पाना असम्भव है, और हम इस तरह की किसी व्यवस्था के विरुद्ध वैचारिक क्रांति करने के लिए बाध्य हैं ।

स्वाधीन भारत में संविधान और क़ानून की धज्जियाँ उड़ाते वक्तव्य...

इण्डिया में इण्डियन पीनल कोड की धारा 124-ए के विरुद्ध खुलेआम सार्वजनिक वक्तव्यों पर आमजनता, प्रबुद्धजनता, नेता, अभिनेता, साहित्यकार, अतिबुद्धिजीवियों और माननीय सुप्रीम कोर्ट की अद्भुत् ख़ामोशी मुझे हैरान नहीं, परेशान करती है । मुझे नहीं मालुम, इन वक्तव्यों पर आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी –

1-   “चीन के सहयोग से लद्दाख को भारत से खाली करवाया जाय”। – दिनांक 15.10.2020 को जी.न्यूज़ कार्यक्रम में पीडीपी के नेता मोहित भान का आह्वान ।

2-   “जम्मू-कश्मीर में धारा 370 फिर से बहाल करने के लिए चीन से सहयोग लेना चाहिये” । - दिनांक 12.10.2020 को जी.न्यूज़ के एक कार्यक्रम में डॉ. फ़ारुख़ अब्दुल्ला का वीडियो संदेश ।

 

-      हम हैं स्वतंत्र भारत के भयभीत सनातनी नागरिक