आज तक कभी नहीं पूछा गया
किसी प्रश्न-पत्र में
कि क्या है भीख मांगते
या होटल में थाली धोते बच्चों का भविष्य.
कैसी होती है
आत्मदाह से पूर्व के क्षणों में
अंतर्दाह की पीड़ा.
क्यों खाती है चाबुक
तांगे की मरियल सी घोड़ी.
किसने देखे हैं
काँधे पर ठहरी पीड़ा धोते
बूढ़े बैलों की आँखों में ठहरे आंसू.
क्यों निर्धन हैं मूल्य
और क्यों नहीं बना कोई न्यायालय
जहां कह सकता बेचारा न्याय
अपने मन की पीड़ा.
नहीं पूछे गए
और भी न जाने कितने प्रश्न
जो अब पहाड़ हो गये हैं.
कोई पर्वतारोही नहीं आता इस ओर
क्यों आये ?
शौक के लिए हिमालय जो है.
किसी प्रश्न-पत्र में
कि क्या है भीख मांगते
या होटल में थाली धोते बच्चों का भविष्य.
कैसी होती है
आत्मदाह से पूर्व के क्षणों में
अंतर्दाह की पीड़ा.
क्यों खाती है चाबुक
तांगे की मरियल सी घोड़ी.
किसने देखे हैं
काँधे पर ठहरी पीड़ा धोते
बूढ़े बैलों की आँखों में ठहरे आंसू.
क्यों निर्धन हैं मूल्य
और क्यों नहीं बना कोई न्यायालय
जहां कह सकता बेचारा न्याय
अपने मन की पीड़ा.
नहीं पूछे गए
और भी न जाने कितने प्रश्न
जो अब पहाड़ हो गये हैं.
कोई पर्वतारोही नहीं आता इस ओर
क्यों आये ?
शौक के लिए हिमालय जो है.
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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.