बुधवार, 18 अगस्त 2010

पार्थेनियम को नष्ट करें , धान को बचाएं .




सबके हे बड़ बैरी, बैरी ये गाजर घास.
अमरीकी गोहूँ साथे, आइसे गाजर घास.
येती-ओती चारो कोती  , ये ही उगे हे आज
केतना प्रजाती खागे, बैरी ये गाजर घास.
राह-बाट, जंगल-झाड़ी, गाँव-गाँव, बाड़ी-बाड़ी.
खेत-खार, आस-पास, उगे हे गाजर घास.
खेती के जो बैरी हावे, करे धान के जो नास.
ओहिच्चे बिदेसी भैया, कहाथे  गाजर घास.
माटी होगे बंजर, उड़ा गे गंध भात के. 
टूरा-टूरी रोथे , उड़ा गे नींद रात के.
करे रोग चमड़ी के, औ उबा सांसी हो.
ये ही के जराबो होरी, आज भैया दीदी हो.
संगी चल साथी चल, केहू के न कर आस.
सब्बो जन जराबो आज, बांची न गाजर घास.

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर पोस्ट, छत्तीसगढ मीडिया क्लब में आपका स्वागत है.

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  2. Dhanyavaad C.G.M.C.! Main brij-bhaashi hun.Chhattisagadhi me likhne ka pratham baar saahas kiyaa hai. Aapko sundar lagaa, jaankar achhaa lagaa.Pusadkar ji ko namaskar.

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.