बिन पानी वारिश
मानसून तो आ चुका है बस्तर में भी पर आज कल पता नहीं क्यों वह कुछ रूठा-रूठा सा रहता है
और लोगों की गुस्ताख़ी तो देखिये कि कोई उसे मनाने की कोशिश भी नहीं कर रहा
ये है छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा महानदी
मौसम है वारिश का जो कि आवारा हो चुका है
और नदी कितनी प्यासी है ये दर्द इस रेत के सिवाय और कौन जान पा रहा है ?
लो जी! मिल ही गया इत्ता पानी ....इज़्ज़त बच गयी नदी की
अब मत कहना कि नदी सूखी है
लीजिये ! और करीब से दर्शन कर लीजिये महानदी की जलराशि के
मायूस मत होइये ......इस अमराई को तो देखिये
और किनारे-किनारे ये झाड़ हैं रतनजोत के। किसी ज़माने में इससे बायो डीज़ल बनाने का अभियान शुरू किया गया था ...बड़े जोर-शोर से।
करोड़ों रुपये की मुद्रा स्वाहा करने के बाद यह अभियान अभी आई.सी.यू में है ...बड़े जोर-शोर से.....
और ये है काज़ू का जंगल
यकीन मानिये इनमें काजू लगते भी हैं
काजू का जंगल हो सूनसान सड़क हो पास में साइकल हो ....
तो मज़ा ही मज़ा है।
सरकार ने कन्यायों को भेंट में दी हैं साइकलें ताकि दूरदराज़ की कन्यायें शाला जा सकें .....अपना भविष्य बना सकें
लो ! फिर हो गया कत्ल .........एक पेड़ का
अब तो देख लिया न! किस तरह निगला है बस्तियों ने जंगल को ..
ए ! इंसान कहीं के ! तुम फिर आ गये हमारे जंगल में ?
देख भाई ! ये मेरा घर है ...इस पेड़ को मत काटना ...
चलो ! अब लौट चलें
वाह! सुंदर तश्वीरों को बेहतरीन ढंग से दिखाया है आपने। प्रकृति से छेड़छाड़ अलग कहानी कहती है।
जवाब देंहटाएंआपके पोस्ट का सजीव नज़ारा मनभावन है ... लगा जैसे हकीकत में मैं वहीँ हूँ .... आभार .... !!
जवाब देंहटाएंapke sath sath maine bhi safar kar liye aur kayi dardnak hadso ki main bhi saakshi hun. prabhaavshali chitran.
जवाब देंहटाएंअपने घर के लिए हम, देते उन्हें उजाड़ |
जवाब देंहटाएंठोकर लग जाये तनिक, देते मिटा पहाड़ |
देते मिटा पहाड़, स्वार्थ में होकर अंधे |
रहे धरा नभ फाड़, चलाते जाते धंधे |
रतनजोत का तेल, साइकिल काजू सपने |
महानदी छिपकली, बचाते जीवन अपने ||
इस सचित्र प्रस्तुति के लिए आभार
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