सोमवार, 30 जुलाई 2012

प्रकृति के ये अद्भुत चितेरे

हैं तो ये अद्भुत चितेरे, पर किसी कला महाविद्यालय में जाकर इन्होंने कभी कुछ नहीं सीखा। सीखें भी क्यों ? इन्हें तो प्रकृति ने पहले से ही सब कुछ सिखा कर भेजा है यहाँ। तनिक आप भी देखिये इनके बनाये चित्र...  

इन्हें अपने चित्र बालू पर ही बनाने का शौक है।



यूँ ही नहीं बन जाते ये चित्र। जान जोख़िम में डालनी पड़ती है.... पर जाने दीजिये...
आप तो कलाकारी देखिये।

इस चित्र को देखिये... लगता है जैसे किसी फ़ॉसिल का चित्र हो।

ये चित्र हमेशा ही मुझे आकर्षित करते रहे हैं। 

रेत पर रेत बिखेर कर बनाये गये ये चित्र किसे नहीं आकर्षित करते होंगे।

कुछ बने कुछ अधबने चित्र ....

एक-दो नहीं ...असंख्य चित्र ...


न-न.... ,गिनने का प्रयास व्यर्थ है, क्योंकि थक जायेंगे आप और गिनती पूरी नहीं हो सकेगी।

आप यह जानने के लिये उत्सुक हो रहे होंगे कि आख़िर ये चित्र लिये कहाँ से हैं मैंने ! इस चित्र को ध्यान से देखिये, शायद कुछ अनुमान लगा सकें आप। पीछे की ओर पतली श्वेत रेखा एक लहर है। शेष विवरण नीचे देखिये ....   


ये चित्र जहाँ से लिये गये हैं वह है मुम्बई का ख़ूबसूरत गोराई बीच...यानी मुम्बई में मेरी पसन्दीदा जगहों में से पहले क्रम पर। और ये चितेरा है एक समुद्री कीट जो तटीय बालू पर ऐसे चित्र बनाता रहता है। यह अपना काम बहुत ज़ल्दी-ज़ल्दी करता है फिर भी यदि तनिक सी असावधानी हुई और काले कौवे की दृष्टि इन पर पड़ी तो इन्हें कौवे का निवाला बनते देर नहीं लगती। तो अगली बार आप जब भी मुम्बई जायें तो गोराई बीच जाकर इन चितेरों से मिलना मत भूलियेगा। पर ध्यान रहे, कृष्णपक्ष में ही जाइयेगा अन्यथा समुद्र का गुस्सा झेलने के लिये तैयार रहियेगा।     

3 टिप्‍पणियां:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.