अपने घर के लिए हम, देते उन्हें उजाड़ | ठोकर लग जाये तनिक, देते मिटा पहाड़ | देते मिटा पहाड़, स्वार्थ में होकर अंधे | रहे धरा नभ फाड़, चलाते जाते धंधे | रतनजोत का तेल, साइकिल काजू सपने | महानदी छिपकली, बचाते जीवन अपने ||
टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.
वाह! सुंदर तश्वीरों को बेहतरीन ढंग से दिखाया है आपने। प्रकृति से छेड़छाड़ अलग कहानी कहती है।
जवाब देंहटाएंआपके पोस्ट का सजीव नज़ारा मनभावन है ... लगा जैसे हकीकत में मैं वहीँ हूँ .... आभार .... !!
जवाब देंहटाएंapke sath sath maine bhi safar kar liye aur kayi dardnak hadso ki main bhi saakshi hun. prabhaavshali chitran.
जवाब देंहटाएंअपने घर के लिए हम, देते उन्हें उजाड़ |
जवाब देंहटाएंठोकर लग जाये तनिक, देते मिटा पहाड़ |
देते मिटा पहाड़, स्वार्थ में होकर अंधे |
रहे धरा नभ फाड़, चलाते जाते धंधे |
रतनजोत का तेल, साइकिल काजू सपने |
महानदी छिपकली, बचाते जीवन अपने ||
इस सचित्र प्रस्तुति के लिए आभार
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