शायद पिछले वर्ष की ही बात है, एक दिन जगदलपुर में देखा कि आवारा कुत्तों को पकड़ने वाली गाड़ी आयी और शहर के बहुत सारे आवारा कुत्तों को बोरे में भर कर ले गयी. लोगों ने कहा कि नागालैंड की फ़ोर्स के लिए भोजन की व्यवस्था की जा रही है. बस्तर में नक्सलियों से निपटने के लिए पूरे हिन्दुस्तान से फौज आती रहती है...फिर कुछ महीनों बाद अपने कुछ साथियों को खोकर ...शरीर और मन पर कभी न मिटने वाले घाव लेकर वापस चली जाती है .......पर उनके जाने से पहले आ जाती है एक और नयी बटालियन .....फिर अपने कुछ साथियों को खोने और अपने शरीर के कुछ अंगों को खोने की अलिखित शर्त पर.
मैं कुत्तों की बात कर रहा था ....आवारा कुत्तों की बात ....राष्ट्रीय कुत्तों की बात नहीं. राष्ट्रीय कुत्ते ! आप नहीं जानते ? अरे वही दो पैर से चलने वाले दोपाये ....देश को रसातल में ले जाने वाले.
हाँ ! तो जगदलपुर के आवारा कुत्ते एक बड़े से बोरे में बंदी बनाकर ले जाए जा रहे थे .....उन्हें मालुम था कि अब उनके जीवन का अंत निकट ही है. बंदी भूरे कुत्ते का एक रिश्तेदार नागालैंड में है उसी ने भूरे को कभी यह बात बतायी थी कि वहाँ के लोगों को कुत्तों का मांस अधिक प्रिय है ...भूरे ने अगले दिन अपने सभी आवारा साथियों को बता दिया कि हम बस्तर के कुत्ते अधिक भाग्यशाली हैं ....पर उन्हें क्या पता कि एक दिन उनकी भी वही दुर्दशा होने वाली है. बोरे में बंदी कुत्तों के हलक सूख गए थे ...घिग्घी बंध गयी थी ...रोज बिना बात के यूं ही भौंकते रहने वाले कुत्ते अपनी आगत मृत्यु को सन्निकट जानकर भी चुप थे जैसे कि उन्होंने इसे अपनी नियत मानकर स्वीकार कर लिया हो. महाबदमाश कुत्ता मोती भी आज चुप था.....उसे अपने लिए नहीं वरन रहरह कर केवल झबरू के लिए दुःख हो रहा था. मात्र सात महीने का झबरू सबका प्यारा था. वह आवारा ज़रूर था पर बहुत ही सात्विक विचारों का था. उसे कभी किसी ने झगड़ते नहीं देखा था. आवारा किन्तु आदर्श कुत्ता झबरू ..........मोती की आँखें डबडबा आयीं .....अपने जीवन में पहली बार किसी के लिए आंसू बहाने वाला बदमाश मोती आज गंभीर था. कुत्ता कुल का दीपक झबरू आज हम लोगों के साथ अपना भी जीवन खोने जा रहा है. बीमार खजहे कुत्ते ने मोती की आँखों में आंसू देखे तो रहा नहीं गया ......दल के दादा की आँखों में करुणा और विवशता के आँसू.....खजहे ने अपना पंजा दादा की पीठ पर रखा -' क्या है दादा ?' खजहे की शक्ल से चिढ़ने वाले मोती ने आज कोई प्रतिवाद नहीं किया. धीरे से बोला -' सब भाग्य का खेल है. हमीं आवारे नहीं हैं. अम्बाला कैंट के टीन शेड पर पीढ़ियों से अड्डा जमाये पूरे प्लेटफ़ार्म को संडास बना देने वाले आवारा कबूतर और अनाज के बोरे के बोरे चट कर जाने वाले दादर रेलवे स्टेशन के आवारा मोटे चूहे भी तो हैं ...पर नहीं ...इन्हें तो आवारा के नाम पर सिर्फ हमीं नज़र आते हैं. ..अरे ! हम आवारा हैं तो क्या हमें जीने का हक़ नहीं है ? '......मोती फूट पड़ा.....उसकी आँखों से अविरल अश्रुधार बह चली. पूरा माहौल ग़मगीन हो गया.
अचानक गाड़ी के ड्राइवर ने ब्रेक लगाई , झटके से रुकने के कारण सारे कुत्ते बोरे के अन्दर ही एक दूसरे के ऊपर लुढ़क गए. खजहा तो एकदम ही मोती के ऊपर जा गिरा. एक क्षण में मोती ने एक फैसला कर लिया. उसने सबके कान में कुछ कहा. सारे आवारा कुत्तों में अभूतपूर्व एकता का सूत्र निर्मित हो गया. गाड़ी का डल्ला खोला गया. एक दोपाये ने बोरे को खींच कर ज़मीन पर डाल दिया. झबरू की चीख निकल गयी. शायद उसे कहीं चोट लग गयी थी. झबरू की चीख ने मोती के गुस्से में घी का काम किया. अब उसने और प्रतीक्षा नहीं की ..गुप्त संकेत किया और पल भर में सारे आवारों ने मज़बूत बोरे के टुकड़े-टुकड़े कर दिए. जैसे ही बोरे का बंदी गृह टूटा मोती ने झबरू को भागने का आदेश दिया. पर वह अपने नेता को छोड़ कर जाने के पक्ष में नहीं था. इधर दोपायों में अफरा-तफरी मच गयी, वे लाठियां लेने दौड़े इस बीच मोती ने सबको भागने का हुक्म दिया.....सारे कुत्ते भाग खड़े हुए . सबसे पीछे मोती था ...जैसे कि सबको हाँक रहा हो. तभी पीछे से एक दोपाये ने लाठी के भरपूर वार में अपनी सारी खीझ उड़ेल दी ..... और पहले वार में ही मोती ढ़ेर हो गया...एक हृदयविदारक चीख के साथ मोती लुढ़क गया. पर मरते समय उसे संतोष था कि उसने अपने सारे साथियों को बचा लिया.
दोपाये खुश हो गए ...आज के भोजन की व्यवस्था हो गयी थी.