मंच के ठीक सामने वाले मंचपट पर मध्य में तथागत बुद्ध का
नीलवर्णी धम्मचक्र..और उसके ठीक पास ही बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर का छाया चित्र।
मंच पर दो सुसज्जित आसन थे, वर वधू के आने की प्रतीक्षा की जा रही थी। समारोह में
आयी भीड़ अधीर हो रही थी। तभी मंच पर श्वेत परिधान में वर-वधू ने प्रवेश किया।
समारोह प्रारम्भ हुआ, वैवाहिक संस्कार की बौद्ध परम्परा देखने का यह प्रथम अवसर था
मेरे लिए। संस्कार प्रारम्भ हुआ, वर वधू ने धम्मचक्र और बाबा साहेब को बारी-बारी
से हाथ जोड़कर प्रणाम किया।
मैने अपने पास बैठे व्यक्ति से पूछा कि धम्मचक्र तो ठीक है पर
विवाह समारोह में बाबा साहब का छवि चित्र ? उसने कहा, “जिस प्रकार आपलोग अपने
अवतारी देवी-देवताओं को अपने समारोहों में पूजते हैं उसी तरह हम भी बाबा साहब को
पूजते हैं। हमारे लिये वे अवतारी देव हैं।“
जिन बाबा साहब ने व्यक्तिपूजा को समाज के लिये घातक बताया था वे
ही बाबा साहब अपने अनुयायियों द्वारा अवतारी घोषित किये जाकर वैवाहिक समारोहों में
पूज्य हो गये हैं। निमिष मात्र में मेरी समझ में आ गया कि हमारे देश में तैंतीस
कोटि देवता क्यों हैं। आने वाले समय में स्वर्गीय कांशीराम और बहन मायावती जी भी अवतार के रूप में
स्वीकृत हो वैवाहिक समारोहों में पूज्य होंगे इसमें कोई संशय नहीं है। कवि
तुलसीदास और अखिलविश्व गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा से लेकर मोहनदास
करमचन्द गाँधी और जवाहरलाल नेहरू तक सब “अवतार श्रेणी” की स्वीकृति की पंक्ति में
हैं। बल्कि तुलसीदास तो अवतार स्वीकृत हो गये हैं शेष लोगों में आचार्य शर्मा अपनी
सहधर्मिणी के साथ इस पंक्ति में सबसे आगे हैं और उनके नाम पर भी स्वीकृति की लगभग
मोहर लग चुकी है। घर के देवी-देवताओं वाले प्रकोष्ठ में वे स्थान पा चुके हैं। अवतारों
में दो नाम तो विस्मृत ही हो गये, साईं बाबा और श्री सत्य साईं बाबा के। यूँ
मन्दिर में मूर्ति बनकर प्रतिष्ठित तो अमिताभबच्चन भी हो गये हैं। पर मायावती जी
को दुनिया पर भरोसा थोड़ा कम है इसलिये उन्होंने कोई रिस्क न लेते हुये अपनी आदमकद
मूर्तियाँ अपने जीते जी प्रतिष्ठित करवा दीं। मृत्यु के बाद भी पूज्य बने रहने की
अदम्य लालसा का यह उत्कृष्ट उदाहरण है।
अनुमान हैकि आगामी दो हज़ार वर्षों में ये सभी लोग ईश्वर के
अवतार के रूप में निश्चित ही प्रतिष्ठित व सर्वमान्य हो जायेंगे। यह सब सोचते हुये
मेरे मन में दो बातें उठ रही हैं, पहली यह कि क्या राम-सीता, हनुमान, कृष्ण-राधा,
महावीर, बुद्ध, जीसस और मोहम्मद साहब भी इसी प्रक्रिया से होते हुये ईश्वर के
अवतार रूप में प्रतिष्ठित हुये होंगे? दूसरी बात यह कि अवतार माना जाना इतना
अनिवार्य क्यों है?
कदाचित इसलिये कि हम साधारण मनुष्य हैं, चमत्कारों से आकर्षित
होते हैं और प्रशंसा से भावविभोर हो जाते हैं। हम इनके बिना अपने जीवन में आनन्द
और दुःखहर्ता की कल्पना नहीं कर सकते। अवतार हमें चमत्कारों की दुनिया में ले जाते
हैं और एक दुःखहर्ता या विघ्नहर्ता के रूप में हमारी समस्याओं के निवारण को
सुनिश्चित करते हैं। हम इन महान लोगों की शिक्षाओं के अनुकरण की अपेक्षा दीपक
जलाकर इनकी प्रशंसा में आरती गाना अधिक सहज और समस्या निवारण के लिये अचूक उपाय
मानते हैं।
व्यक्तिगत रूप से बात की जाय तो उक्त सभी अवतारों के प्रति मेरे
मन में सम्मान है किंतु कृष्ण मुझे सर्वाधिक प्रभावित करते हैं, अद्वितीय हैं वे......
इस अर्थ में कि श्रीमद्भगवद्गीता में उन्होंने जो भी उपदेश दिये हैं वे अद्भुत हैं
और व्यक्तिगत समस्याओं से लेकर अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं तक के समाधान का निर्दुष्ट
उपाय प्रस्तुत करते हैं। कृष्ण की यह विलक्षणता किसी को भी आकर्षित कर सकती है और हृदय स्वतः ही उनके प्रति श्रद्धावनत
हो जाता है।
मैं चमत्कारों और प्रशंसा की बात कह रहा था। जब हम किसी के
प्रशंसक होते हैं तो प्रशंसा की सारी सीमायें तोड़ देते हैं। उदाहरण हैं वर्तमान
बाबाओं की लम्बी श्रंखला और हमारे नेतागण। बाबाओं के भक्त बिना चमत्कारों का विवरण
दिये अपनी बात की शुरुआत ही नहीं करते। नेताओं के मुसाहिब अपने नेता के ऐसे-ऐसे
किस्से सुनाते हैं कि श्रोता को विश्वास हो जाता हैकि ये नेता जी सच्चे तारनहार,
एकमात्र ईमानदार और चरित्रवान हैं बाकी सब ठग हैं।
लोगों को लगता हैकि जनता का विश्वास जीतने के लिये चमत्कारी
व्यक्तित्व की बात करना अनिवार्य है..... प्रशंसा के पुल पर पुल बाँधे चले जाना ही
लोगों को सम्मोहित कर सकेगा। जो है ही नहीं वह भी प्रदर्शित करना हमारा स्वभाव है...
अभी से नहीं ...आदिम युग से है। विज्ञापन का भी यही मनोविज्ञान है। अपने घटिया
उत्पाद को बेचने के लिये ऐसा विज्ञापन दिया जाता है जो या तो चमत्कार होता है या
चमत्कार के समीप या फिर अतिशयोक्तिपूर्ण। जो नहीं है उसे प्रकाशित किया जाता है।
लोग भी प्रभावित होकर न केवल उस उत्पाद पर विश्वास करते हैं अपितु उस उत्पाद को
ख़रीदते भी हैं क्योंकि वे विज्ञापन से सम्मोहित हो चुके हैं ...जो “नहीं है” उसे
“है” मान लेते हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म के बारे में और फिर उनके जीवन में
भगवानों के साक्षात दर्शन के बारे में जो जनश्रुति है उस पर विश्वास कर पाना मेरे
लिये तनिक कठिन है। उनकी कृति रामचरित मानस को भगवान विश्वनाथ जी के मन्दिर में रख
देने पर एक दिन सुबह मन्दिर के पट खोले जाने पर पाया गया कि पुस्तक पर सत्यम शिवम
सुन्दरम् लिखकर भगवान शंकर जी ने सही कर दिया है। एक
दिन भगवान विश्वनाथ जी के मन्दिर में वेद-पुराणों को रखा गया और सबसे नीचे रामचरित
मानस को रखा गया। सुबह मन्दिर के पट खोलने पर पाया गया कि रामचरित मानस सबसे ऊपर
रखी हुयी है..अर्थात भगवान विश्वनाथ जी ने रामचरित मानस को वेद-पुराणों से भी अधिक
महत्वपूर्ण माना। भगवान शिव के द्वारा सत्यं शिवं सुन्दरम् लिखकर सही कर देने और वेदों के ऊपर रामचरितमानस कृति
के स्वतः आ विराजने की कथा निश्चित ही पाठक को किसी चमत्कार की दुनिया में ले जाने
वाली घटनायें हैं।
मैं एक बात नहीं समझ पाता हूँ कि भगवान लोगों को ऐसे चमत्कार,
(जिनकी जनहित के लिये कोई उपादेयता नहीं है) करने की अपेक्षा घोटालेवाजों और
रिश्वतखोरों को सद्बुद्धि देने का चमत्कार करने की कभी इच्छा क्यों नहीं होती?
भगवान लोग करुणानिधान हैं, कृपा के सागर हैं निर्दोष आमजन पर कृपा क्यों नहीं
करते? क्यों किसी कन्या के बलात्कार के समय प्रकट नहीं होते? क्यों उसकी रक्षा
नहीं करते? विश्व के कोटि-कोटि लोग कुछ अत्याचारियों के अत्याचारों को सहते हुये
क्यों जीवन भर कष्ट भोगते रहने के लिये विवश होते हैं? मैं जानता हूँ भक्तों के
पास इसका उत्तर हैकि जो कष्ट भोग रहे हैं वे या तो अपने पूर्व जन्म के पापों का
दण्ड भोग रहे हैं या फिर निर्दोष हैं तो उन्हें कष्ट देने वाले अगले जन्म में दण्ड
पायेंगे। मैं इस तर्क को मान लूँगा पर इस प्रश्न का उत्तर मिल जाने के बाद कि जो
निर्दोष हैं वे क्यों किसी के पाप का शिकार बनते हैं...क्या केवल इसलिये कि पापी
को दण्ड देने का प्रमाण प्राप्त हो जाय? भक्त के पास इसका भी उत्तर है, वे कहेंगे
कि यही तो भगवान की लीला है। ...और मेरी तर्क बुद्धि इस उत्तर को स्वीकार कर पाने
में असमर्थ है। भगवान की लीला तो वह है जो ब्रह्माण्ड में सदैव घटित होती रहती है
...प्राणियों के शरीर में घटित होती रहती है। क्वांटम फ़िजिक्स की घटनायें भी हमें आश्चर्यचकित
करती हैं...ईश्वर के प्रति सहज आस्था और विश्वास उत्पन्न करती हैं। मैं तो जब-जब ह्यूमन फ़िजियोलॉजी पढ़ता हूँ तब-तब
मुझे शरीर की छोटी से छोटी घटना में भी ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण मिलते रहते
हैं। कोर्ई आवश्यक नहीं कि हर कोई इन
विषयों को जाने, ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण तो प्रकृति की नाना घटनाओं में भी हर
पल मिलते रहते हैं, कोई उन प्रमाणों को क्यों नहीं देख पाता? औचित्यहीन चमत्कारों
में ही अस्तित्व क्यों दिखाई देता है ईश्वर का ? और दिखाई भी देता है तो लोग उसे
देखकर भी मनुष्य क्यों नहीं बन पाते? प्रतिपल मनुष्यता की हत्या क्यों करते रहते
हैं?