मंच के ठीक सामने वाले मंचपट पर मध्य में तथागत बुद्ध का
नीलवर्णी धम्मचक्र..और उसके ठीक पास ही बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर का छाया चित्र।
मंच पर दो सुसज्जित आसन थे, वर वधू के आने की प्रतीक्षा की जा रही थी। समारोह में
आयी भीड़ अधीर हो रही थी। तभी मंच पर श्वेत परिधान में वर-वधू ने प्रवेश किया।
समारोह प्रारम्भ हुआ, वैवाहिक संस्कार की बौद्ध परम्परा देखने का यह प्रथम अवसर था
मेरे लिए। संस्कार प्रारम्भ हुआ, वर वधू ने धम्मचक्र और बाबा साहेब को बारी-बारी
से हाथ जोड़कर प्रणाम किया।
मैने अपने पास बैठे व्यक्ति से पूछा कि धम्मचक्र तो ठीक है पर
विवाह समारोह में बाबा साहब का छवि चित्र ? उसने कहा, “जिस प्रकार आपलोग अपने
अवतारी देवी-देवताओं को अपने समारोहों में पूजते हैं उसी तरह हम भी बाबा साहब को
पूजते हैं। हमारे लिये वे अवतारी देव हैं।“
जिन बाबा साहब ने व्यक्तिपूजा को समाज के लिये घातक बताया था वे
ही बाबा साहब अपने अनुयायियों द्वारा अवतारी घोषित किये जाकर वैवाहिक समारोहों में
पूज्य हो गये हैं। निमिष मात्र में मेरी समझ में आ गया कि हमारे देश में तैंतीस
कोटि देवता क्यों हैं। आने वाले समय में स्वर्गीय कांशीराम और बहन मायावती जी भी अवतार के रूप में
स्वीकृत हो वैवाहिक समारोहों में पूज्य होंगे इसमें कोई संशय नहीं है। कवि
तुलसीदास और अखिलविश्व गायत्री परिवार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा से लेकर मोहनदास
करमचन्द गाँधी और जवाहरलाल नेहरू तक सब “अवतार श्रेणी” की स्वीकृति की पंक्ति में
हैं। बल्कि तुलसीदास तो अवतार स्वीकृत हो गये हैं शेष लोगों में आचार्य शर्मा अपनी
सहधर्मिणी के साथ इस पंक्ति में सबसे आगे हैं और उनके नाम पर भी स्वीकृति की लगभग
मोहर लग चुकी है। घर के देवी-देवताओं वाले प्रकोष्ठ में वे स्थान पा चुके हैं। अवतारों
में दो नाम तो विस्मृत ही हो गये, साईं बाबा और श्री सत्य साईं बाबा के। यूँ
मन्दिर में मूर्ति बनकर प्रतिष्ठित तो अमिताभबच्चन भी हो गये हैं। पर मायावती जी
को दुनिया पर भरोसा थोड़ा कम है इसलिये उन्होंने कोई रिस्क न लेते हुये अपनी आदमकद
मूर्तियाँ अपने जीते जी प्रतिष्ठित करवा दीं। मृत्यु के बाद भी पूज्य बने रहने की
अदम्य लालसा का यह उत्कृष्ट उदाहरण है।
अनुमान हैकि आगामी दो हज़ार वर्षों में ये सभी लोग ईश्वर के
अवतार के रूप में निश्चित ही प्रतिष्ठित व सर्वमान्य हो जायेंगे। यह सब सोचते हुये
मेरे मन में दो बातें उठ रही हैं, पहली यह कि क्या राम-सीता, हनुमान, कृष्ण-राधा,
महावीर, बुद्ध, जीसस और मोहम्मद साहब भी इसी प्रक्रिया से होते हुये ईश्वर के
अवतार रूप में प्रतिष्ठित हुये होंगे? दूसरी बात यह कि अवतार माना जाना इतना
अनिवार्य क्यों है?
कदाचित इसलिये कि हम साधारण मनुष्य हैं, चमत्कारों से आकर्षित
होते हैं और प्रशंसा से भावविभोर हो जाते हैं। हम इनके बिना अपने जीवन में आनन्द
और दुःखहर्ता की कल्पना नहीं कर सकते। अवतार हमें चमत्कारों की दुनिया में ले जाते
हैं और एक दुःखहर्ता या विघ्नहर्ता के रूप में हमारी समस्याओं के निवारण को
सुनिश्चित करते हैं। हम इन महान लोगों की शिक्षाओं के अनुकरण की अपेक्षा दीपक
जलाकर इनकी प्रशंसा में आरती गाना अधिक सहज और समस्या निवारण के लिये अचूक उपाय
मानते हैं।
व्यक्तिगत रूप से बात की जाय तो उक्त सभी अवतारों के प्रति मेरे
मन में सम्मान है किंतु कृष्ण मुझे सर्वाधिक प्रभावित करते हैं, अद्वितीय हैं वे......
इस अर्थ में कि श्रीमद्भगवद्गीता में उन्होंने जो भी उपदेश दिये हैं वे अद्भुत हैं
और व्यक्तिगत समस्याओं से लेकर अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं तक के समाधान का निर्दुष्ट
उपाय प्रस्तुत करते हैं। कृष्ण की यह विलक्षणता किसी को भी आकर्षित कर सकती है और हृदय स्वतः ही उनके प्रति श्रद्धावनत
हो जाता है।
मैं चमत्कारों और प्रशंसा की बात कह रहा था। जब हम किसी के
प्रशंसक होते हैं तो प्रशंसा की सारी सीमायें तोड़ देते हैं। उदाहरण हैं वर्तमान
बाबाओं की लम्बी श्रंखला और हमारे नेतागण। बाबाओं के भक्त बिना चमत्कारों का विवरण
दिये अपनी बात की शुरुआत ही नहीं करते। नेताओं के मुसाहिब अपने नेता के ऐसे-ऐसे
किस्से सुनाते हैं कि श्रोता को विश्वास हो जाता हैकि ये नेता जी सच्चे तारनहार,
एकमात्र ईमानदार और चरित्रवान हैं बाकी सब ठग हैं।
लोगों को लगता हैकि जनता का विश्वास जीतने के लिये चमत्कारी
व्यक्तित्व की बात करना अनिवार्य है..... प्रशंसा के पुल पर पुल बाँधे चले जाना ही
लोगों को सम्मोहित कर सकेगा। जो है ही नहीं वह भी प्रदर्शित करना हमारा स्वभाव है...
अभी से नहीं ...आदिम युग से है। विज्ञापन का भी यही मनोविज्ञान है। अपने घटिया
उत्पाद को बेचने के लिये ऐसा विज्ञापन दिया जाता है जो या तो चमत्कार होता है या
चमत्कार के समीप या फिर अतिशयोक्तिपूर्ण। जो नहीं है उसे प्रकाशित किया जाता है।
लोग भी प्रभावित होकर न केवल उस उत्पाद पर विश्वास करते हैं अपितु उस उत्पाद को
ख़रीदते भी हैं क्योंकि वे विज्ञापन से सम्मोहित हो चुके हैं ...जो “नहीं है” उसे
“है” मान लेते हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म के बारे में और फिर उनके जीवन में
भगवानों के साक्षात दर्शन के बारे में जो जनश्रुति है उस पर विश्वास कर पाना मेरे
लिये तनिक कठिन है। उनकी कृति रामचरित मानस को भगवान विश्वनाथ जी के मन्दिर में रख
देने पर एक दिन सुबह मन्दिर के पट खोले जाने पर पाया गया कि पुस्तक पर सत्यम शिवम
सुन्दरम् लिखकर भगवान शंकर जी ने सही कर दिया है। एक
दिन भगवान विश्वनाथ जी के मन्दिर में वेद-पुराणों को रखा गया और सबसे नीचे रामचरित
मानस को रखा गया। सुबह मन्दिर के पट खोलने पर पाया गया कि रामचरित मानस सबसे ऊपर
रखी हुयी है..अर्थात भगवान विश्वनाथ जी ने रामचरित मानस को वेद-पुराणों से भी अधिक
महत्वपूर्ण माना। भगवान शिव के द्वारा सत्यं शिवं सुन्दरम् लिखकर सही कर देने और वेदों के ऊपर रामचरितमानस कृति
के स्वतः आ विराजने की कथा निश्चित ही पाठक को किसी चमत्कार की दुनिया में ले जाने
वाली घटनायें हैं।
मैं एक बात नहीं समझ पाता हूँ कि भगवान लोगों को ऐसे चमत्कार,
(जिनकी जनहित के लिये कोई उपादेयता नहीं है) करने की अपेक्षा घोटालेवाजों और
रिश्वतखोरों को सद्बुद्धि देने का चमत्कार करने की कभी इच्छा क्यों नहीं होती?
भगवान लोग करुणानिधान हैं, कृपा के सागर हैं निर्दोष आमजन पर कृपा क्यों नहीं
करते? क्यों किसी कन्या के बलात्कार के समय प्रकट नहीं होते? क्यों उसकी रक्षा
नहीं करते? विश्व के कोटि-कोटि लोग कुछ अत्याचारियों के अत्याचारों को सहते हुये
क्यों जीवन भर कष्ट भोगते रहने के लिये विवश होते हैं? मैं जानता हूँ भक्तों के
पास इसका उत्तर हैकि जो कष्ट भोग रहे हैं वे या तो अपने पूर्व जन्म के पापों का
दण्ड भोग रहे हैं या फिर निर्दोष हैं तो उन्हें कष्ट देने वाले अगले जन्म में दण्ड
पायेंगे। मैं इस तर्क को मान लूँगा पर इस प्रश्न का उत्तर मिल जाने के बाद कि जो
निर्दोष हैं वे क्यों किसी के पाप का शिकार बनते हैं...क्या केवल इसलिये कि पापी
को दण्ड देने का प्रमाण प्राप्त हो जाय? भक्त के पास इसका भी उत्तर है, वे कहेंगे
कि यही तो भगवान की लीला है। ...और मेरी तर्क बुद्धि इस उत्तर को स्वीकार कर पाने
में असमर्थ है। भगवान की लीला तो वह है जो ब्रह्माण्ड में सदैव घटित होती रहती है
...प्राणियों के शरीर में घटित होती रहती है। क्वांटम फ़िजिक्स की घटनायें भी हमें आश्चर्यचकित
करती हैं...ईश्वर के प्रति सहज आस्था और विश्वास उत्पन्न करती हैं। मैं तो जब-जब ह्यूमन फ़िजियोलॉजी पढ़ता हूँ तब-तब
मुझे शरीर की छोटी से छोटी घटना में भी ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण मिलते रहते
हैं। कोर्ई आवश्यक नहीं कि हर कोई इन
विषयों को जाने, ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण तो प्रकृति की नाना घटनाओं में भी हर
पल मिलते रहते हैं, कोई उन प्रमाणों को क्यों नहीं देख पाता? औचित्यहीन चमत्कारों
में ही अस्तित्व क्यों दिखाई देता है ईश्वर का ? और दिखाई भी देता है तो लोग उसे
देखकर भी मनुष्य क्यों नहीं बन पाते? प्रतिपल मनुष्यता की हत्या क्यों करते रहते
हैं?
जिन बाबा साहब ने व्यक्तिपूजा को समाज के लिये घातक बताया था वे ही बाबा साहब अपने अनुयायियों द्वारा अवतारी घोषित किये जाकर वैवाहिक समारोहों में पूज्य हो गये हैं।
जवाब देंहटाएंमेरे गाँव में गांधी पूजे जाते हैं....
औचित्यहीन चमत्कारों में ही अस्तित्व क्यों दिखाई देता है ईश्वर का ? और दिखाई भी देता है तो लोग उसे देखकर भी मनुष्य क्यों नहीं बन पाते? प्रतिपल मनुष्यता की हत्या क्यों करते रहते हैं?
इन सवालों के जबाब आपको कभी मिलेगें नहीं .... अगर मिल जाए ,तो मुझे अवगत जरुर कराईयेगा .... मुझे इन्तजार रहेगा .....
ईश्वर की परिकल्पना मनुष्यों द्वारा ईज़ाद की गई है, अपने स्वार्थ और सुविधानुसार. और ये भी सच है कि हम अपने लिए सुख की कामना से ईश्वर की पूजा करते हैं और हर वक्त किसी चमत्कार की आशा रखते हैं. मान्यताओं और प्रथाओं द्वारा समाज पर कब्ज़ा करना सबसे सहज तरीका है और इसी का परिणाम है ये ईश्वर. वेद व्यास हों या बाल्मीकि या तुलसीदास, मेरे विचार से ये अद्वितीय लेखक हैं जिनकी कल्पनाएँ और लेखन शैली ऐसी है कि इनकी कथाएं जीवंत हो गई हैं. इन कथाओं का उद्देश्य समाज में मूल्यों और आदर्शों को स्थापित करना रहा होगा. धीरे धीरे ये कथाएं हमारे जीवन का हिस्सा बनी और इसके पात्र और रचयिता भगवान के रूप में स्थापित हो गए.
जवाब देंहटाएंमेरे विचार से मायावती हो या निर्मल बाबा अपने जीवन में ही खुद को ईश्वर के रूप में स्थापित कर लें तो अच्छा है क्योंकि ३३ करोड़ देवी देवता के होने के बाद इतने सारे नेता और बाबा... बहुत भयंकर होता जा रहा संघर्ष.
सच है कि सबसे प्यारा कोई भगवान है तो वो है कृष्ण. गीता के द्वारा दुनिया को बहुत अच्छा सन्देश दिया है उन्होंने. फिर भी सोचती हूँ कि कृष्ण जी जब जन्म से ही इतने शक्तिशाली थे तो अपनी बहनों को क्यों कंस के द्वारा मारे जाने दिया, बेड़ियों में जकड़े माँ बाप को इतनी संतानें? कृष्ण के द्वारा कुछ तो चमत्कार बनता था न.
ईश्वर तो कोई चमत्कार कर नहीं पाया तो अब राजनेता, अभिनेता, बाबा आदि से उम्मीद बनी हुई है. ये तो अच्छा है कि सभी का अपना अपना भगवान बनता जा रहा है, अगर कहीं कोई सबसे पहला ईश्वर होगा तो उस पर ज्यादा बोझ नहीं पड़ेगा. और वैसे भी इससे अच्छा सम्मानजनक कार्य कुछ भी नहीं. नाम, शोहरत, धन सब कुछ मिल जाता है और वो भी टैक्स फ्री.
निश्चित ही ये सब अद्वितीय और महान लोग रहे हैं जिन्होंने अपने युग को बहुत कुछ दिया है। तथापि, यदि वे सब अवतारी हैं तो आइंस्टीन को भी अवतारी मानना पडॆगा ...हमें भगवान और ईश्वर में अंतर करना सीखना होगा। एक मंत्री महाराज के बारे में यह प्रचारित हैकि वे कभी सोते नहीं हैं दिन-रात जनता की सेवा में लगे रहते हैं ..चमत्कारी हैं ...रात के दो बजे भी जाइये तो जगते ही मिलेंगे। उनके भक्त ऐसा प्रचारित करते हैं जैसे कि वे अब अवतारी घोषित होने ही वाले हैं। हम महान लोगों को अवतारी बनाने के चक्कर में उन्हें विवादास्पद बना देते हैं। पता नहीं हम मनुष्य को मनुष्य ही क्यों नहीं बने रहने देना चाहते हैं?
हटाएंशायद आजकल आपसे असहमति का दौर ही चल पडा है - फिर एक बार - पूरे आदर के साथ - असहमत हूँ |
जवाब देंहटाएंहर महान और अद्वितीय व्यक्ति अवतार नहीं होता, यह सच है, सहमत हूँ | किन्तु अवतार होते ही नहीं / कभी हुए ही नहीं / जिन्हें भी अवतार माना जाता है - वे सब सिर्फ "असाधारण मानव" भर थे, उन्हें अवतार मान लिया जाना इस दिए गए उदहारण की ही तर्ज पर है , इससे सहमत नहीं हूँ |
और हाँ - आदरणीय पैगम्बर मुहम्मद (peace be upon him ) को अवतार नहीं माना जाता - सिर्फ पैगम्बर ही माना जाता है | इस्लाम धर्म अवतार के आने के concept को नहीं मानता | शायद आप उनसे सहमत हों, यह आपका निजी दृष्टिकोण है की आप इस्लामिक दृष्टिकोण से सहमत हों | किन्तु अवतार सारे ही ऐसे ही मान लिए गए, वे अवतार थे ही नहीं दरअसल, यह तो सनातन धर्म पर आपका उठाया बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह सा है | मैं आपसे बहस में नहीं पड़ना चाहती - सुबह से प्रयास कर रही हूँ की यह टिपण्णी न लिखूं, किन्तु रहा नहीं गया |
यदि ऐसा है - तो हमारे धर्म ग्रन्थ सारे ही झूठे हैं ? कृष्ण भी झूठे, वेदव्यास भी झूठे हैं ? भागवतम भी झूठी और गीता भी ? तुलसी भी झूठे ? उनकी भक्ति भी पाखण्ड और उनकी किताब सिर्फ हिन्दुओं को मूर्ख बना कर unite करने भर का एक प्रयास ?
चलिये, यह त्रुटि सुधार रहा हूँ कि इस्लाम में अवतार नहीं होते किंतु इस्लाम में मोहम्मद साहब की कही हर बात को पत्थर की लकीर और अंतिम सत्य मान लिया जाना उन्हें महान और अवतार से भी कहीं ऊपर के स्थान पर प्रतिष्ठित करने का मानवीय प्रयास है जो और भी ख़तरनाक है।
हटाएंयह कैसे तय हो कि कौन से महान लोग अवतार हैं और कौन से नहीं? इसका आधार क्या हो? क्या मात्र इसलिये कि तुलसीदास ने या किसी और ने कह दिया है? किसी के कहे हुये कथन को तर्क की कसौटी पर कसे बिना कैसे स्वीकार कर लिया जाय? हर समूह कहेगा कि उनके महान लोग ही अवतार हैं ...यदि सभी की बात को विवाद होने के डर से मान लिया जाय तब तो असली और नकली अवतार को पहचानना ही मुश्किल हो जायेगा।
और फिर इस बात से क्या फ़र्क पड़ता है कि अवतार का अस्तित्व है या नहीं? फ़र्क तो इस बात से पड़ना चाहिये कि भारत के बहुसंख्य लोग अवतार के अस्तित्व को मानते हुये भी एक लम्बे समय तक विदेशियों की दासता में रहे, हम देश के लोगों की कमायी को उनसे ठग कर स्विश बैंक में जमा करते रहे,अपनी स्वस्थ्य और पवित्र परम्पराओं को तिलांजलि देकर उन परम्पराओं के पोषक बन गये हैं जो हमें पतन की ओर ले जा रही हैं,हम कृष्ण के आदर्श को केवल गाते भर हैं पालन बिल्कुल नहीं करते, हमारे जीवन में दूर-दूर तक कहीं वह नज़र नहीं आता जो सनातन धर्म का आदर्श रहा है, मन्दिरों पर पता नहीं कैसे लोगों का अधिकार हो गया है जो धार्मिक तो ज़रा भी नहीं प्रतीत होते, हमारे आचरण से सनातन धर्म की महानता और पवित्रता का लोप हो चुका है ......
सनातन धर्म महान है मात्र इतना कहने या मान लेने भर से काम नहीं चलेगा ...काम तो उससे चलेगा कि हम उसके आदर्श को अपने जीवन में कितना ला पाते हैं....अपने जीवन को और अपने समाज को उससे कितना अनुप्राणित कर पाते हैं। सनातन धर्मी भारत के किस ऑफ़िस में बिना रिश्वत के काम होता है ज़रा बताइये? ...किस शहर में स्त्रियों के अनादर और शीलहरण की घटनायें नहीं होतीं? ....किस प्रांत में घोटाले नहीं हुये ? ..और क्यों बोफ़ोर्स घोटाले के बाद से हम सुधरे नहीं बल्कि घोटाले हमारी प्रवृत्ति बनते चले गये? ....क्यों जेल से ज़मानत पर छूटने के बाद अपराधियों का हम बाज़े-गाजेके साथ फूलमालाओं से स्वागत करते हैं? क्यों पाकिस्तान से भगाये गये पीड़ित हिन्दुओं को भारत सरकार शरण नहीं देती? .... और क्यों बंगलादेशी घुसपैठिये मुसलमानों को भारत की नागरिकता मिल जाती है और इस देश के धार्मिक लोग नपुंसक बने रहते हैं? .... क्यों विश्व की एकमात्र वैज्ञानिक भाषा को तिलांजलि देकर हम अंग्रेजी के गुलाम बने हुये हैं जो नितांत अवैज्ञानिक और अपूर्ण भाषा है? ...इस देश की आमजनता के पास बहुत से 'क्यों' हैं जिनका उत्तर नहीं दे सकेंगी आप। इन सब 'क्यों' के उत्तर की तलाश में मुझे कहीं भी सनातन धर्म दिखायी नहीं देता। यदि कोई यह कहे कि धर्म तो आस्था का विषय है ..जबकि ये सारे 'क्यों' देश और समाज की व्यवस्था के विषय हैं...दोनो का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं तो निश्चित ही मैं इसे स्वीकारने के लिये बिल्कुल तैयार नहीं हूँ। धर्म यदि हमारे आचरण में नहीं है तो इसका सीधा सा अर्थ यही हैकि हम धर्म के नाम पर केवल व्यापार भर कर रहे हैं और हममे से कोई भी धार्मिक नहीं है। धर्म के नाम पर हम केवल चमत्कार और माला फेरने तक सीमित हो कर रह गये हैं ..ऐसी धार्मिकता मेरी समझ में नहीं आती। यदि आप मेरे विचारों को नास्तिक समझें तो मुझे कोई उज्र नहीं ...धर्मविद्रोही कहें तो भी कोई उज्र नहीं। मेरे लिये तो धर्म वही है जो मनुष्य के अन्दर मनुष्यता का गुण उत्पन्न कर सके।
आभार
हटाएंआदरणीय कौशलेन्द्र जी, मैं कह कुछ रही हूँ - आप उसे पेश किसी और रूप में कर रहे हैं | यह मेरी यहाँ इस लेख पर आख़िरी टिपण्णी है | इसके आगे आप मेरी कही बातों को किसी और रूप में भी प्रस्तुत करें - तो मैं कोई स्पष्टीकरण नहीं दूँगी | मैं यहाँ आपसे कोई निजी युद्ध करने के लिए नहीं हूँ , किन्तु आप शायद ऐसा कुछ समझ रहे हैं |
१. @ यह कैसे तय हो कि कौन से महान लोग अवतार हैं और कौन से नहीं? इसका आधार क्या हो?
यदि आप सच में पूछ रहे हैं - और यह एक व्यंग्य भर नहीं है - तो - इसका उत्तर शास्त्रों में भी है - गीता में भी | पहला आधार तो यह है की अवतार के आने का समय, स्थान, माता पिता आदि सब पहले से उल्लिखित और निश्चित होता है | आ जाने के बाद / acheivements के चलते उन्हें अवतार की "पदवी" नहीं नवाजी जाती |
२.@ और फिर इस बात से क्या फ़र्क पड़ता है कि अवतार का अस्तित्व है या नहीं?
- बहुत फर्क पड़ता है | आप की यह पोस्ट तो अवतार के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा रही थी - सो मैंने उत्तर लिखना आवश्यक समझा था | लेकिन अब यहाँ आप कुछ और ही कर रहे हैं |
३. @ हमारे जीवन में दूर-दूर तक कहीं वह नज़र नहीं आता जो सनातन धर्म का आदर्श रहा है -
यह आप हर एक के जीवन के बारे में जनरलाइज़ नहीं कर सकते | ऐसा हो भी यदि - तो यह सनातन धर्म की नहीं, बल्कि उसके आज के तथाकथित अनुयायिओं की खामी हुई | शायद आप न जानते हों, किन्तु मैं तो ऐसे लोगों को जानती हूँ जिनके जीवन में उनके विश्वास चरितार्थ होते हैं |
४. @ इन सब 'क्यों' के उत्तर की तलाश में मुझे कहीं भी सनातन धर्म दिखायी नहीं देता -
आपने खोजा ? और फिर, इस प्रश्न का का उत्तर तो आपने खुद ही दे दिया है आगे की पंक्ति में |
५. @ यदि कोई यह कहे कि धर्म तो आस्था का विषय है ..जबकि ये सारे 'क्यों' देश और समाज की व्यवस्था के विषय हैं...दोनो का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं तो निश्चित ही मैं इसे स्वीकारने के लिये बिल्कुल तैयार नहीं हूँ।
आप मत स्वीकारिये - आप पर कोई जोर जबरदस्ती नहीं कर रहा है की आप इसे स्वीकारें ही | लेकिन आप मुझे या किसी और को अपने दृष्टिकोण पर लाने का हठ ज़रूर कर रहे हैं |
६. @ यदि आप मेरे विचारों को नास्तिक समझें तो मुझे कोई उज्र नहीं ...धर्मविद्रोही कहें तो भी कोई उज्र नहीं।
मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा | आप, आपकी बिटिया और उनके भाई ने ठान ही रखा है की मेरी बातों को घुमा फिर कर कुछ और बताने का प्रयास करेंगे - तो इसमें मैं कुछ नहीं कर सकती |
७. @ मेरे लिये तो धर्म वही है जो मनुष्य के अन्दर मनुष्यता का गुण उत्पन्न कर सके।
आपको अपने मत का पूरा अधिकार है - मुझे भी |
आभार |
@ अवतार के आने का समय, स्थान, माता पिता आदि सब पहले से उल्लिखित और निश्चित होता है | आ जाने के बाद / acheivements के चलते उन्हें अवतार की "पदवी" नहीं नवाजी जाती|
हटाएंशिल्पा जी! इस "निश्चितता" का आधार जानना चाहूँगा। आपका उत्तर ये हो सकता है - "यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत अभ्युत्थानमधर्मस्य ...." द्वापर और त्रेता मे धर्म की हानि हुयी होगी पर इतनी नहीं जितनी कलियुग में हो चुकी है। यूँ,अपने-अपने कर्मों के आधार पर जन्म से पूर्व ही निश्चित हो जाता है कि किसी व्यक्ति को किस माता-पिता के यहाँ जन्म लेना है। मैं किसी अवतार को विशिष्ट तो मानता हूँ पर मानवेतर सत्ता नहीं स्वीकार कर पा रहा हूँ।
शिल्पा जी! मैं व्यक्तिगत तौर पर एक ऐसे अधिकारी( अब सेवानिवृत्त) को जानता हूँ जो प्रतिदिन गीता का पाठ करते थे...उनकी पूजा दो घण्टे तक चलती थी किंतु उन्होंने बिना रिश्वत लिये कभी कोई काम नहीं किया। मनुष्य का यह आचरण उनकी धार्मिक आस्था पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाता क्या? हमारे ऋषि-मुनि जंगलों में कुटी बनाकर रहते थे आज के साधु संत जैसे सर्वसुविधासम्पन्न प्रासादों में रहते हैं क्या वह इस देश के एक आम गृहस्थ को मिल पाता है? विराग और त्याग इन बाबाओं में मुझे तो कहीं दिखाई नहीं देता। बचपन से ही अपने आसपास ऐसे ही लोगों को देख-देख कर बड़ा हुआ हूँ। अब यदि मैं पाखण्ड के प्रति विद्रोही बना हूँ तो इसमें मेरा क्या दोष? मैं पूरे देश में ....व्यक्तिगत जीवन से लेकर राजनीति आदि सार्वजनिक जीवन तक सर्वत्र यही पाखण्ड देख रहा हूँ।
जवाब देंहटाएंमैं व्यक्तिगत तौर पर एक ऐसे अधिकारी( अब सेवानिवृत्त) को जानता हूँ जो प्रतिदिन गीता का पाठ करते थे...उनकी पूजा दो घण्टे तक चलती थी किंतु उन्होंने बिना रिश्वत लिये कभी कोई काम नहीं किया। मनुष्य का यह आचरण उनकी धार्मिक आस्था पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाता क्या?
जवाब देंहटाएंइन दो घंटों में संभवत : दिन भर का पाप कट जाता हो ....:))