जंगल में बहते थे झरने
बांह पसारे पेड़ खड़े थे। बस्ती ने थीं खायी कसमें
क़ातिल सारे वहीं अड़े थे।
अंग-अंग पर इस जंगल के
इंसां ने हैं डोरे डाले।
जिसको अब तक पाला उसने
उसी के हाथों गरल पिया था।
रोत-रोते युग बीते हैं
सूख गये अब आँसू सारे।
जंगल को यूँ खाते-खाते
हुये जंगली बस्ती वाले।
क्या होगा जब लूट मची हो
लूट रहे हों ख़ुद रखवाले।
जंगल को यूँ खाते-खाते
जवाब देंहटाएंहुये जंगली बस्ती वाले।
क्या होगा जब लूट मची हो
लूट रहे हों ख़ुद रखवाले।
[am]बेहतरीन अभिव्यक्ति की सुंदर रचना,,,,, ,[/am]
MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,
इंसान हुआ स्वार्थी......
जवाब देंहटाएंअपने माँ-बाप,भाई-बहन को नहीं छोड़ता तो जंगल क्या चीज़ है...................
सुन्दर रचना.
अनु