बस्तर के रजबाड़ों में एक रजबाड़ा है - चारो ओर विन्ध्यपर्वत श्रेणियों से घिरा और दूधनदी के किनारे बसा कांकेर । कहते हैं कि यहाँ के जंगल कंकऋषि की तपःस्थली रहे हैं । इस राज्य के महाराजा कोमलदेव के नाम पर यहाँ का जिला चिकित्सालय है तो प्रसिद्ध हायरसेकेण्ड्री स्कूल है महाराजा भानुप्रतापदेव के नाम पर ।
भारत की स्वतंत्रता के दस वर्ष पूर्व 1937 में महाराजा भानुप्रतापदेव के पुत्र ने इस नये महल में रहने का मन बनाया जो उस समय बगीचा के नाम से जाना जाता था ।
महलों के किस्से बड़े रोचक हुआ करते हैं । ऐसा ही एक किस्सा है कांकेर के बगीचा महल की बघवा खोली का जिस पर से पर्दा हटाया है स्वयं राजकुमार सूर्यप्रतापदेव ने । पढ़िये ये रोचक किस्सा ....
उस दिन सुबह-सुबह सूरज अभी उगा ही था कि लगभग अट्ठाइस वर्षीया एक युवा स्त्री बदहवास सी भागती हुयी महल की ओर आयी । द्वारपाल ने देखा, स्त्री के बाल बिखरे हुये थे, शरीर पर लिपटे जो थोड़े बहुत कपड़े थे भी वे अस्त-व्यस्त हुये जा रहे थे ।
स्त्री घबड़ायी हुयी थी और सुबक रही थी । द्वारपाल उससे पूर्व परिचित था, उसने पूछा - "क्या हुआ रे सुरसतिया ! इतनी घबड़ायी हुयी क्यों है ?"
स्त्री जैसे-तैसे कुछ बोल सकी और फिर वहीं गिरकर अचेत हो गयी ।
द्वारपाल ने चिल्लाकर लोगों को सचेत किया और एक संदेशवाहक से महल में समाचार भिजवाया - "आज फिर एक बच्चे को बघवा ले गया ..... जाकर महाराज को बता ज़ल्दी से ।"
महल में शोर मच गया । लोग इधर से उधर भागने लगे ...ज़ल्दी ही पूरे नगर में आदमखोर बाघ के हमले की ख़बर फैल गयी ।
महाराजा भानुप्रतापदेव अभी-अभी नित्यकर्म से निवृत्त हो पूजा पर बैठे थे । सेवक समाचार बताने के लिए पूजा समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगा किंतु महल परिसर में आती आवाज़ों से महाराजा पहले ही समझ चुके थे कि आज फिर बाघ का आक्रमण हुआ है । पूजा में उनका मन नहीं लगा, शीघ्र ही पूजा समाप्त कर उठ बैठे और सेवक से बोले - "भगतराम से बाघ को पकड़ने की व्यवस्था करने को कहो । व्यवस्था हो जाय तो हमें ख़बर करना ...हम साथ चलेंगे । ...और सदाशिव को मेरे पास भेजो .....अभी .....तुरंत ।"
सदाशिव ने आने में विलम्ब नहीं किया । उसके उपस्थित होते ही महाराजा ने आदेश दिया - " बाग में पश्चिम दिशा की ओर के खाली पड़े स्थान में बाघ के रहने के लिये एक खोली बनाने की व्यवस्था करो । जब तक खोली बन कर तैयार हो तब तक के लिए बड़े वाले पिंजरे को साफ कर बाग में लगवा दो ।"
बड़े परिश्रम के बाद आदमख़ोर बाघ पकड़ा गया, उसने बच्चे को आधे से अधिक खा लिया था । भीड़ उत्तेजित थी और बाघ को उसके अपराध की सज़ा देना चाहती थी । महाराजा ने जैसे-तैसे उत्तेजित भीड़ को शांत किया और बाघ को पिंजरे में क़ैद करने का आदेश दिया ।
रात-दिन एक कर बघवा खोली बनायी गयी । खोली बनते ही बाघ को उसके नये कमरे में छोड़ दिया गया । आदमख़ोर बाघ का नया घर द्विआवृती था ...यानी एक बड़े से कमरे के भीतर बीचोबीच एक और कमरा जो एक बड़े पिंजरे की तरह लगता था । यूँ तो बाघ को बड़े वाले कमरे में रहने की पूरी आज़ादी थी लेकिन कमरे की सफाई और गोश्त परोसते समय उसे पिंजरे में क़ैद होना पड़ता था । भीतर वाले पिंजरे या गर्भकक्ष में एक ओर लीवर से खुलने और बन्द होने वाला लोहे का एक भारी दरवाज़ा था । बाघ को लम्बे समय तक बघवा खोली में रखा जाता था और जब यह अनुमान हो जाता था कि अब वह आदमख़ोरी नहीं करेगा तो उसे घने जंगल में ले जाकर छोड़ दिया जाता था ।
हमारे पास आदमख़ोर बाघ या शेर को सुधारने के लिए रजबाड़ों द्वारा किये गये इस तरह के प्रयासों का कोई अधिकृत अभिलेख उपलब्ध नहीं है किन्यु अनुमान है कि शायद विश्व में अपनी तरह का यह एक अभिनव सफल प्रयोग था।
स्वतंत्र भारत में स्थापित किये गये कई अभयारण्यों के बाद भी वन्य जीवों का अस्तित्व संकटपूर्ण है .......शायद इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि पहले "मैन ईटर बाघ" हुआ करते थे, आज "बाघ ईटर मैन" होना बहुत आम बात हो गयी है ।
छत्तीसगढ़ी बोली में जिसे "बघवा खोली" कहते हैं उसका अंग़्रेज़ी तर्ज़ुमा है "tiger's room". यह चित्र उसी खोली का है, और य्ह खोली बनी है कांकेर के राजमहल में । आप सोचेंगे कि इसमें नया क्या ? राजा-महाराजाओं के शौक़ तो ऐसे ही हुआ करते थे ।
लेकिन नहीं ......
यह शौक़ नहीं ....एक ज़रूरत थी ।
इस पुरानी बघवा खोली को अब एक कार्यालय का रूप दिया जा रहा है ....बिना उसके मौलिक स्वरूप को क्षति पहुँचाये ।
गर्भ कक्ष ...यानी बघवा खोली के अन्दर बीचोबीच एक और कक्ष
भीतर के पिंजरे के जंग लगे लोहे के भारी दरवाज़े को साफ़ कर उसके लीवर को सुधारा जा रहा है ताकि जॉली बाबा अपने विदेशी मेहमानों को अपने पूर्वजों के प्रयास का जीवंत रूप दिखा सकें ।
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