आज फिर
एक
छटपटाती चिड़िया उड़ रही है
कभी इस
डाल
कभी उस
डाल
उसके दिल
में
एक हूक है
डबडबायी
आँखों में
एक निराश
होती फ़रियाद है
मन में
पश्चाताप
है ।
आज फिर
एक युवती
का भविष्य
निर्मम
राजनीति की भेंट चढ़ गया है ।
अभी-अभी
पता चला है
कि जो कसम
खाते हैं
आम होने
की
दर-असल वे
कितने खास होते हैं ।
वह
जो अब
खा रही है
दर-दर की
ठोकरें
उसने
अपना सब
कुछ दे दिया
उन्हें
जो
अवसरवादी थे ।
परिवर्तन
की उम्मीद के पर लगाकर
उसने उड़ना
चाहा था
किंतु उसे
क्या पता
कि उसे
चुकानी पड़ेगी
एक औरत
होने की कीमत
कुछ
मूल्यहीन निष्ठुरों की दुकान पर ।
मुल्क में
सियासत हो
रही है
कि एक आम
ने आम को
छला
या आम के
चोले में एक खास ने
आम को छला
।
मेरी तो
पीड़ा यह है
कि एक
मातृशक्ति को
कुछ
दरिन्दों ने
सरे आम
बना लिया है
अपनी
नसेनी का
एक अदना
सा
किंतु
महत्वपूर्ण डण्डा
जिस पर
रखकर पैर
वे चढ़ते
जायेंगे
चढ़ते
जायेंगे
और पा
लेंगे राजसिंहासन
एक दिन
एक
नकाबपोश युवती के
दर्द की
कीमत पर ।
माननीय आम
जी !
आप तो
आनन्द लीजिये
उस
फ़ड़फड़ाती चिड़िया का
जिसके
दर्द का
बना दिया
गया है
एक चटखारेदार तमाशा ।
सटीक चित्रण। आम के ख़ास होने का पूरा यात्रा-संस्मरण पढ़ 'आम' के प्रति खिन्नता क्रोध में बदल चुकी है। धूर्तता का पर्याय बनते जा रहे हैं उस पंगत के लोग।
जवाब देंहटाएंबहुत निराशा हुयी है ....कुछ इस तरह कि ....जिधर भी दौड़ते रहे .....समझ के दरिया ......उधर ही तपती रेत मिलती रही ।
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