सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

केवल माओवादी



नहीं सीखा मेरी कलम ने चुप रहना
तुम जब-जब बनाओगे
किसी लड़की को मीना खलखो
मेरी कलम मुखरित हो उठेगी ।
आग बुझाने वाले हाथ
जब लगाने लगें आग
और तापते रहें
सारा दिन सारी रात 
तो लाल रंग से लिखा जायेगा 
कि क्या हुआ था मीना खलखो के साथ ।

आठ साल की उम्र होती ही कितनी है
इतने ही साल और भी जिये थे तुमने
माँ और सहेलियों के साथ
बीनते हुये महुआ, अण्डी, चार ...
और बस !
इतने में ही पहचान ली गई थीं तुम
कि हो गयी हो अब
नोची जाने के लिए तैयार
अचानक
एक दिन बना दी गयीं तुम
एक और निर्भया ।
कोई नहीं जानता
उस दिन
जंगल से उठा लेने के बाद
क्या हुआ तुम्हारे साथ
रात साढ़े तीन बजे गाँव वालों ने सुनी थी
तीन गोलियों की आवाज़
और देखी थी सुबह
तुम्हारी लाश ।
निर्भया की तरह तुम ज़िन्दा नहीं थीं सुबह तक
यह बताने के लिए
कि किस तरह नोचा गया था तुम्हारा शरीर
क्या हुआ था दिन भर और रात भर
तुम्हारे साथ ।
आग लगाने वालों ने तो
यह भी बताया था कि
लोंगरखोला के जंगलों में
किस तरह बुझाते रहे थे वे आग
सारा दिन सारी रात
तुम्हारे साथ । 
सचमुच
ज़िस्मानी आग कितनी भयानक होती है
कि रच लेती है कूट साक्ष्य
और
जिसने जीते जी नहीं देखी कभी बन्दूक
उसकी लाश के हाथों में थमा देती है ए.के. सैंतालीस
बना देती है माओवादी
गढ़ लेती है मुठभेड़ की कहानी ।
आज
मुश्किल हो गया है मेरे लिए
फ़र्क़ कर पाना
तुममें
और ख़ूंख़ार माओवादियों में ।
मुझे
अपने चारों ओर दिखायी देने लगे हैं
माओआदी और केवल माओवादी
देखो !
अब कभी मेरे सामने देशभक्ति की बात मत करना ।   

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