मंगलवार, 26 सितंबर 2017

फिर भी ज़माना भीड़ का



मेले में उमड़ी है भीड़
भीड़ से डरती है भीड़
खोयी-खोयी रहती है भीड़
देखो फिर भी ज़माना भीड़ का
रीते-रीते हर नीड़ का ।

दौड़-दौड़ चलती है भीड़    
चटर-पटर बोलती है भीड़
मौके पे गूँगी बन जाती है भीड़
देखो फिर भी ज़माना भीड़ का
रीते-रीते हर नीड़ का ।

ढकती है सूर्य कुटिल मेघों की भीड़
रात-रात जागती रहती है भीड़
झाँकता है सूर्य सोती रहती है भीड़
देखो फिर भी ज़माना भीड़ का
रीते-रीते हर नीड़ का ।


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