रविवार, 16 दिसंबर 2018

एक और द्वारिका


होते रहें
वैज्ञानिक भ्रष्टाचार
शीर्ष शोध संस्थानों में
निष्ठावान वैज्ञानिक
लिखते रहें चिट्ठी प्रधानमंत्री कार्यालय को
और फेंक दी जाय उनकी चिट्ठी
कूड़ेदान में
लिखकर मात्र तीन शब्द...
“No Action Required”
तो सहम जाता है राष्ट्रवाद
और
इस गुर्राहट से उत्साहित
विकास की गति और स्थिति को
ठेंगा दिखाती व्यवस्था  
करती है अट्टहास ...
हो रहा विकास
नये भारत का ।
हम
शीघ्र ही बनने वाले हैं विश्वगुरु
फहरायेंगे पताका
अपने श्रेष्ठत्व की ।

"न खाऊँगा न खाने दूँगा" की उद्घोषणा
जब करने लगे परिहास   
और "सत्यमेव जयते" की कामना
कभी न हो पाये पूर्ण
पराजित होता रहे सत्य
और भरा रहे अमृत
केवल रावण की नाभि में
तो फिर-फिर जीता रहेगा रावण,
वैदिक उद्घोषणायें
बनीं रहेंगी स्वप्न ।
अभी अंत नहीं हुआ है
नम्बी नारायण की
यातना कथा का
हम
केवल चीत्कार कर सकते हैं
या फिर पलायन करने को विवश हो सकते हैं
भाग सकते हैं मथुरा से
कृष्ण की तरह ।
चलो !
हम भी बसा लें
एक और द्वारिका
खारे सागर में ।

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