हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को हर भारतीय के
कान इस गीत को सुनते आ रहे हैं । वर्ष में दो बार उन्हें लगता है कि उनका देश
दुनिया के दीगर मुल्कों से कुछ ख़ास है...
सब लोगों की तरह हमें भी लगता है कि हमारा देश
कुछ ख़ास है जहाँ वर्ष में दो बार हमें अपने महान होने का अनुभव होता है । साल के
बाकी तीन सौ तिरेसठ दिन हम रोज की तरह हीनभावना से ग्रस्त बने रहते हैं क्योंकि
किसी भी अन्याय का विरोध करने पर चारों ओर से लोग हमें सीख देने इकट्ठे होने लगते
हैं – ”यह इण्डिया है यार ! यहाँ सब चलता है …अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ लेगा ...चुपचाप घर बैठो और जो जैसा चल रहा उसे
वैसा ही चलने दो ....तुम ईश्वर नहीं हो जो कुछ बदल सकोगे ....दूसरों को अपने
अनुसार नहीं बल्कि ख़ुद को लोगों के अनुसार बदलना सीख लो तो सुखी रहोगे ...”।
यह इण्डिया है जहाँ हम जीवन भर न्याय के लिये
संघर्ष करते-करते परलोक सिधार जाते हैं और सत्यमेव जयते की हमारी आशा पूरी नहीं हो
पाती ।
अब हम आते हैं भारत से प्रतिभाओं के पलायन की
परम्परा पर । पलायन हमारे देश की परम्परा बन चुकी है । भारत की प्रतिभाओं और वैज्ञानिकों
को काम न करने देने की कसम खाये बैठे अधिकारियों की हर बार जीत होने की परम्परा बन
चुकी है । इसरो के वैज्ञानिकों की हत्या कर देने की परम्परा बन चुकी है । उनकी
हत्याओं पर हर किसी के ख़ामोश बने रहने की परम्परा बन चुकी है । अकारण हल्ला करते
रहने वाली मीडिया की अति संवेदनशील मुद्दों पर बिल्कुल चुप बने रहने की परम्परा बन
चुकी है । दिन-रात एक-दूसरे पर गंदे से गंदा कीचड़ उछालने में व्यस्त रहने वाले
माननीयों के महत्वपूर्ण विषयों से अनजान बने रहने की परम्परा बन चुकी है । यह देश
परम्परावादियों का देश है ।
सरस्वती के चीरहरण की घटनायें चौथे स्तम्भ के
लिये भी उपेक्षित होती हैं । कभी-कभार कोई बात उजागर हो ही गयी तो माननीयों द्वारा
कह दिया जाता है कि यह सब विदेशी ताकतें करवा रही हैं हमारे देश में । विदेशी
ताकतों पर थोप कर सारे आरोप हम ख़ुद को पाक-साफ मान कर चुप बैठ जाते हैं ।
इसरो के वैज्ञानिकों की हत्यायें अमेरिका, फ़्रांस या रूस के इशारों पर होती रहती हैं ...
इसमें हमारे भोले माननीय निर्दोष हैं ...वे क्या कर सकते हैं बेचारे !
हत्या करवाने वाला कोई भी विदेशी हो पर हत्या
करने वाला भारतीय कौन है ...इसकी जाँच न होने देने के लिये कौन भारतीय उत्तरदायी
है ?
सत्ता
हो या विपक्ष हर किसी को लक्ष्मी से प्रेम है ... वर्ष में मात्र एक दिन रस्म
निभाने के लिये हम सरस्वती की पूजा करने का ढोंग कर लेते हैं ...इसके बाद तो पूरे
साल सरस्वती की नितांत उपेक्षा करते रहने वाले हम लोग कभी शर्मिंदा न होने के
अभ्यस्त हो चुके हैं ।
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
19/05/2019 को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में......
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
बहुत सटीक सराहनीय लेख है चिंता जनक स्थिति है और कोई हल नही।
जवाब देंहटाएंसार्थक यथार्थ लेखन।
सही कहा है आपने। जरूरतों के हिसाब से ही न्यायव्यवस्था चलती हैं। और यहाँ जरूरतें जरूरी केवल वी आई पी की ही होती हैं।
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