मेरे बचपन और
किशोरावस्था का एक बड़ा हिस्सा उत्तरप्रदेश में बीता था । उन दिनों उत्तर प्रदेश के
कई क्षेत्रों में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़कने की यदाकदा ख़बरें आया करती थीं । बचपन
में मुसलमानों के गाँव से होकर गुज़रना मेरे लिये एक बहुत ज़ोख़िम भरा काम हुआ करता
था । मेरी कोशिश हुआ करती थी कि मुझे ऐसे गाँवों से हो कर न गुजरना पड़े । जब मैं
शहर में पढ़ने गया और धीरे-धीरे शहर के कुछ मुसलमान लड़के मेरे मित्र बने तो मेरा भय
बहुत हद तक कम हो गया ।
वर्ष 1990 ...यह गुलाबी
शहर जयपुर था जहाँ रहकर मैं सर्ज़री में पी.जी. कर रहा था । उस समय प्रधानमंत्री थे
विश्वनाथ प्रताप सिंह । मेरी छोटी बहन कुछ दिनों के लिये जयपुर आयी हुयी थी । एक दिन
हिन्दू-मुस्लिम दंगा भड़का और मैं अपनी छोटी बहन के साथ दंगाइयों के बीच फँस गया, तब
एक बार फिर मेरे बचपन की दहशत उभरी और मेरे दिल-ओ-दिमाग पर बुरी तरह छा गयी । रामनगर
मोहल्ले की एक पतली गली में हमारे सामने अल्लाहो अकबर का नारा लगाते, तलवारें और रॉड लहराते दंगाइयों की भीड़ थी जबकि छतों पर महिलाओं और
बच्चों ने ईंट-पत्थर के साथ मोर्चा सँभाला हुआ था । हमारी किस्मत अच्छी थी कि पीछे
से पुलिस का एक ज़त्था आ गया । हम किसी तरह वहाँ से निकलकर घर तक पहुँच सके थे ।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश
के कई क्षेत्रों से गुजरते समय यह दहशत मुझे आज भी होती है । कुछ और बड़ा हुआ तो
दिमाग में अक्सर कुछ सवाल उठने लगे, मसलन यह कि आज़ाद भारत में भी हिन्दुओं को धार्मिक
दहशत का सामना क्यों करना पड़ता है ? आख़िर दुनिया में ऐसी कौन सी जगह है जहाँ
हिन्दू महफ़ूज़ होकर रह सकें ...?
बाद के दिनों में मुझे
कई मुसलमान बहुत अच्छे भी मिले । पहले वंगभंग और भारत विभाजन और इसके बाद
हिन्दू-मुस्लिम फ़सादों की प्रतिक्रियास्वरूप हिन्दुओं को लगने लगा कि जिस धर्म के
कारण बँटवारे और दंगे होते हैं उसके लिये अब भारत में कोई स्थान नहीं होना चाहिये
। इतना ही नहीं, इज़्रेल समस्या के बाद से हिन्दुओं को यह भी लगने लगा कि हिन्दुओं
का भी एक देश होना चाहिये जिसे वे फ़ख़्र से अपना देश कह सकें । धार्मिक ठेकेदारों
और राजनीतिक दाँव-पेचों ने इन समस्याओं का फ़ायदा उठाते हुये भारतीय समाज का जमकर धार्मिक
ध्रुवीकरण किया । उच्चशिक्षित लोगों ने भी इस ध्रुवीकरण से परहेज़ करना प्रायः उचित
नहीं समझा जिसके परिणामस्वरूप देश दरकता गया और आज स्थिति यह है कि यह ध्रुवीकरण
नियंत्रण से बाहर होता चला जा रहा है ।
फ़सादी और विघ्नसंतोषी
हर समुदाय में हैं, कोई भी समुदाय ऐसे लोगों से पूरी तरह मुक्त नहीं है । इसी तरह
बहुत से अच्छे लोग भी हर समुदाय में हैं, जिनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती । भारत के
लोगों को हिन्दू-मुस्लिम और भारत-पाकिस्तान समस्याओं से हमेशा जूझना पड़ा है । दोनों
समुदाय के लोग शेष बचे भारत पर अपनी-अपनी हुकूमत और वर्चस्व कायम करने के लिये
परेशान हैं । इस प्रवृत्ति ने हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण को और भी धारदार बना दिया
है ।
हमारे बीच में कई ऐसे महत्वपूर्ण हिन्दू
माननीय हैं जो भारत, भारतीयता और भारतीय संस्कृति के घोर विरोधी हैं वहीं कुछ
मुस्लिम ऐसे भी हैं जो भारत, भारतीयता, और भारतीय संस्कृति के प्रबल समर्थक हैं ।
मुस्लिमों का आँख बन्द कर विरोध करने से पहले हमें अब्दुल हमीद, डॉ. ए.पी.जे.
अब्दुल कलाम, संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन आदि
के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के आई.पी.एस. अधिकारी इम्तियाज़ हुसैन और आई.ए.एस. शाहिद चौधरी
जैसे बहुत से ऐसे मुस्लिम लोगों को भी ध्यान में रखना चाहिये जो भारत के लिये जीते
रहे या जी रहे हैं ।
बहुत ही संतुलित और सारगर्भित पोस्ट
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