विश्व के कई देशों में
लाखों लोगों ने अपने आपको किसी भी धर्म की सीमाओं से मुक्त रखने का फ़ैसला किया है
। शासकीय अभिलेखों में ऐसे लोग रिलीज़न के बारे में “नो रिलीज़न” का उल्लेख किया
करते हैं । कई साल पहले तक मुझे यह हास्यास्पद प्रतीत हुआ करता था । किंतु
धीरे-धीरे ...यानी आइसिस के अस्तित्व में आने और सीरिया में तबाही की शुरुआत होने
के बाद से मैंने “नो रिलीज़न” पर गम्भीरता से चिंतन करना शुरू किया । इस विषय पर
मेरे शुरुआती लेखों में “नो रिलीज़न” को इंसानियत का रिलीज़न” निरूपित करने का
प्रयास किया गया था । धीरे-धीरे मैंने अनुभव किया कि धर्म एक ऐसा तत्व है जिसके
अभाव की कल्पना करना एक नितान्त अवैज्ञानिक हरकत है । अब मैं मानता हूँ कि “नो
रिलीज़न” नामक एक नया धर्म है जो मानव धर्म के मामले में बहुत ही व्यावहारिक
दृष्टिकोण पेश करता है । मैं “नो रिलीज़न” को एक प्रतिक्रियात्मक धर्म मानता हूँ जो
विभिन्न धर्मों में व्याप्त “आदर्शों और व्यावहारिक जीवन के बीच की गहरी खाईं” के विरुद्ध
एक बौद्धिक बगावत का परिणाम है । इसीलिए जब अपने लेखों में कई बार मैं “नो रिलीज़न”
के पक्ष में खड़ा दिखायी देता हूँ तब सनातनधर्मियों को लगता है कि मैं सनातनधर्म से
विद्रोह कर रहा हूँ ।
यदि आप “नो रिलीज़न” के
बारे में तात्विक चिंतन करेंगे तो इसके भौतिक, अध्यात्मिक, दार्शनिक और मानवीय पक्षों का जो स्वरूप उभर कर
सामने आयेगा वह आडम्बरविहीन मूल सनातन धर्म जैसा ही प्रतीत होगा, यही कारण है कि सनातनधर्म को मैं शाश्वत मानता हूँ ।
मैं प्रायः दो बातें कहा
करता हूँ – एक तो यह कि जब कभी विकसित सभ्यताओं का पतन प्रारम्भ होगा तब नयी सभ्यता
का उदय एक बार फिर पहाड़ों और जंगलों में रहने वाली जनजातियों से ही होगा, और दूसरी बात यह कि प्राणियों के मामले में सनातनधर्म
की शुरुआत मॉलीकुलर बायोलॉज़ी से होती है । इन बातों को गहरायी से समझने की आवश्यकता
है । वास्तव में सनातन धर्म को जैसा मैं समझ सका हूँ... उसकी व्यापकता क्वाण्टम फ़िज़िक्स
में भी है और ह्यूमन फ़िज़ियोलॉज़ी में भी ।
नो रिलीज़न वाले किसी लौकिक
धर्म को लेकर प्रहार नहीं करते । अपने लौकिक धर्म को महान और दूसरों के लौकिक धर्म
को मानवता का दुश्मन निरूपित करते हुये फ़साद के मामलों में लौकिक धर्मानुयायी ऐसे लोगों
को हर स्तर पर धार्मिक कवरेज़ देने और अमानवीय कृत्य करने से भी पीछे नहीं हटते ।
इधर कुछ वर्षों से चीन
यह मानता है कि धार्मिक कर्मकाण्ड मनुष्य के व्यापक चिंतन को नकारात्मक रूप से प्रभावित
करते हैं इसलिये उसने लोगों को गीत-संगीत-कला आदि से जोड़ने का प्रयास प्रारम्भ किया
है । मुझे लगता है कि धार्मिक फ़सादों को ख़त्म करने के लिये यह एक बेहतर उपाय है ।
घोर आश्चर्य हुआ ये जानकर आदरणीय कौश्लेंद्र्म जी | सचमुच धर्म अब अतिक्रमणता की और अग्रसर है | बढती शिक्षा और प्रगति के बावजूद धर्मोन्माद बढ़ता ही जा रहा है | इसने मानव का हित तो बिलकुल नहीं किया बल्कि उसके जीवन को और अधिक असुरक्षित बना दिया है | सुंदर लेख के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंउत्तर देंहटाएं
लेख पढ़ने के लिये आभार ! वास्तव में जो धर्म है उसे लोग जानते ही नहीं, धर्म के नाम पर जिसे जानते हैं वह धर्म है ही नहीं । धर्म का तात्विक स्वरूप सबके सामने लाने का उत्तरदायित्व समाज के जिस वर्ग को था उसने अपने उत्तरदायित्व के साथ छल किया और पूरे समाज को धर्मभ्रष्ट कर दिया । आम आदमी इतना प्रबुद्ध कहाँ होता है कि बुद्धि पर छाये तमस को दूर कर सके ।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 19 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!