आज पाकिस्तानी टीवी मीडिया
को भारत के कुछ लोगों ने ख़ुश होने का मौका परोस दिया जिससे पाकिस्तानी मीडिया ने बड़े
उत्साह से राहत की साँस लेते हुये प्रसारित किया– “सिख आज रात भारत के लालकिले पर कब्ज़ा
कर लेंगे । आज रात दिल्ली में बहुत कुछ होने वाला है”।
इतिहास में दर्ज़ हो गया है
कि “बहत्तरवें गणतंत्र दिवस के अवसर पर गुरु गोविंद सिंह जी के आदर्शों की धज्जियाँ
उड़ाते हुये राजधानी दिल्ली की सड़कों पर कुछ विद्रोही हिंसा और तोड़-फोड़ करने में सफल
हुये” ।
किसान आंदोलन के नाम पर दिल्ली
में हुयी हिंसा और पुलिस पर हमले के दुस्साहस के बाद किसान संगठन के मासूम नेताओं ने
इस अराजकता के लिये ज़िम्मेदार लोगों से अपना पल्ला झाड़ लिया । पुलिस के सिपाहियों पर
लाठियों, डण्डों और
लोहे की रॉड्स से हमला किया गया और उन्हें ट्रैक्टर से कुचलने का प्रयास किया गया ।
प्रदर्शनकारियों की भीड़ लाल किले में बलात घुसने में सफल हो गयी, इतने बड़े देश की पुलिस कुछ नहीं कर सकी, उन्हें डर था
कि कहीं दंगा और न भड़क जाय । कुछ विद्रोहियों को तलवारें लहराते हुये भी देखा गया ।
कुछ निहंगों के हाथ में दोधार वाली तलवारें देखी गयीं । टीवी रिपोर्टर्स के साथ मारपीट
की गयी । मीडिया को दंगाइयों से भयभीत होना पड़ा और गुरुगोविंद सिंह के आदर्शों और उद्देश्यों
का अपमान किया गया ।
दिल्ली पुलिस को विद्रोह के
डर से विद्रोहियों के सामने झुकना पड़ा । कल कोई चंगेज़ ख़ान अपने बीस सैनिकों के साथ
आयेगा और दिल्ली पुलिस को डरते हुये उसके सामने भी झुकना पड़ेगा ।
किसान अंदोलन के बीच-बीच में
जब प्रदर्शन के दौरान ख़ालिस्तान के झण्डे देखे गये और ख़ालिस्तान ज़िंदाबाद के नारे सुने
गये तो किसान नेता मासूम बन गये थे – “हमें तो ऐसी कोई जानकारी नहीं है, सरकार हमें बदनाम कर रही
है”। अवसरवादी राजनीतिज्ञों ने भी सरकार पर आरोप मढ़ने शुरू कर दिये कि “सरकार जानबूझकर
अपने विरोधियों को खालिस्तानी, चीनी और पाकिस्तानी कह कर बदनाम
कर रही है । यह तो मोदी की पुरानी आदत है”।
अब गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली
की सड़कों पर हिंसा होने और विद्रोहियों द्वारा कुछ समय के लिये लाल किले पर कब्ज़ा कर
लेने के बाद अवसरवादी नेताओं के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय को भी भारत की आमजनता के
सवालों का ज़वाब देना होगा । जनता जानना चाहती है कि गणतंत्र दिवस के दिन किसानों की
ट्रैक्टर परेड में हस्तक्षेप करने से मना करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के जज साहब को
किसानों पर भरोसा था या फिर जज साहब में दूरदर्शिता की कमी ?
किसान नेता अपने आंदोलन को
हाईजैक होने से बचाने में असफल रहे हैं । किसान नेताओं को तुरंत ग़िरफ़्तार करने के लिये
क्या अभी भी किसी पर्याप्त कारण की कमी है?
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