आज की समसामयिक चर्चा में “ज़ेण्डर मूड” (बिल्कुल ताजी परम्परा), “कटाक्ष में कुलबुलाती गंदी गालियाँ (Binge)”, “तैमूर का दीवाना मीडिया” (किस्मत हो तो तैमूर जैसी वरना ना हो) और “बंगाल गोया एक अलग मुल्क की हुंकार” जैसे विषयों को सम्मिलित किया जाना आवश्यक हो गया है ।
उत्तर
प्रदेश के पीलीभीत जैसे छोटे से शहर में किशोर-किशोरियों के मन-मस्तिष्क में छाये
ज़ेण्डर मूड के नशे को देखकर मोतीहारी वाले मिसिर जी का चौंकना हम सबके लिये कान
खड़े करने वाला है । यह विषय हमारे लिये भी बिल्कुल नया था इसलिये हमने मिसिर जी से
ही पूछ लिया – अब यह ज़ेण्डर प्रोनाउन और
सेक्स एक्स्प्रेशन की कौन सी बला ले आये? उत्तर में मिसिर जी ने जो
बताया उसने मुझे कुछ क्षणों के लिये चेतनाशून्य सा कर दिया ।
गोरखपुर
वाले ज्ञानी पुरुष ओझा जी को भी नहीं पता कि स्त्रीलिंग, पुल्लिंग,
नपुंसकलिंग और उभयलिंग के अलावा आजकल और भी बहुत से लिंग होने लगे
हैं । हमारी नयी पीढ़ी की “टीन-टाक यूनीवर्सिटी” ने अब तक कुल 52 लिंग खोज निकाले
हैं जिन्हें जानकर अर्धनारीश्वर भी चकित हुये बिना नहीं रहेंगे । हम इसके बारे में
शीघ्र ही पृथक से चर्चा करना चाहेंगे, फ़िलहाल इतनी ही बात ...कि
वाट्स-अप में हमारे सभ्य घरों के सभ्य बच्चे आजकल इस प्रकार से चैट करते हुये देखे
जाने लगे हैं – “हाय! प्रिया! आम स्वीटी … अ लिस्बियन । योर
बॉडी इज़ वेरी अपीलिंग टु मी । आई लाइक यू । आर यू इंट्रेस्टेड टु हैव सेक्स विद मी?”
आगे
बढ़ते हैं, कटाक्ष में कुलबुलाती गंदी गालियों की बौछार की ओर । यू-ट्यूब पर बिंज ने
कुछ कटाक्ष श्रंखलायें प्रस्तुत की हैं । कटाक्ष होना चाहिये ...किंतु इसके लिये
सोशल मीडिया पर इस तरह माँ-बहन की गालियों के बिना काम नहीं चल सकता क्या? आख़िर हम समाज और ख़ुद अपने प्रति भी ज़िम्मेदार कब बनेंगे? रिश्तों पर इस तरह कीचड़ पोतना किस संस्कृति का प्रतीक है? यह कैसा
क्रिटिक है? …और आप बड़े अहंकारपूर्वक स्वयं को प्रगतिवादी और
क्रांतिकारी मानते हैं! मुझे ऐसी प्रगति और क्रांति पर शर्म आती है ।
ख़ैर
इन्हें भी छोड़िये, ये कभी नहीं सुधरेंगे, आगे बढ़ते हैं, सैफ़ अली ख़ान के घर में एक और चिराग ने धमाकेदार इंट्री ले ली है । भारत का
मीडिया नतमस्तक हुआ जा रहा है ...तैमूर का भाई तशरीफ़ लाया है ...गोया मुगल सल्तनत
के वारिस ने हिंदुस्तान की सर-ज़मीं पर दस्तक दे दी हो । अब तैमूर के भाई की हर
साँस… उसकी शूशू ...उसकी जम्हाई ...उसकी आँखें ...उसके
मुस्कराने और सोने जैसी और न जाने कैसी-कैसी ख़बरें आये दिन परोसी जाती रहेंगी ।
करीना कपूर और सैफ अली ख़ान के वारिसों से महत्वपूर्ण भारत में और कुछ भी नहीं है ।
और आज
की आख़िरी बात ...जो अभी शुरू ही हुयी है ...कि बंगाल में चुनावी समर का रिहर्सल
चालू है । पिछले लगभग दो दशक से ममता बनर्जी भारत में यह संदेश देने में सफल होती
रही हैं कि वे भारत से अलग बंगाल की अपनी एक पृथक सत्ता बनाये रखने में अधिक
विश्वास करती हैं और इसके लिये वे किसी भी सीमा तक गिर सकती हैं । ख़ून की नदियाँ
बहा दूँगी ...ईंट से ईंट बजा दूँगी ...बंगाल की माटी बंगाल का मानुष ... बंगाल में
बाहरी मानुष स्वीकार नहीं ...इस तरह की हुंकार हमें राजतंत्र की स्मृति दिलाती है
जहाँ राजे-रजवाड़े केवल अपने अहं के लिये एक-दूसरे पर हमले करके ख़ून की नदियाँ
बहाते रहे हैं । ओफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ ... यह महिला जिसे आप सब दीदी कहते हैं ...वास्तव में
उसके लिए हमारे पास कोई सम्बोधन नहीं है । भारत की मुख्यधारा का विरोध करने वालों
के लिये हमारे पास कोई सम्मानजनक शब्द हो ही नहीं सकता ।
आज के सच को बेबाकी से लिखा है । आज कल की वेव सीरीज़ क्या संदेश दे रहीं हैं समझ नहीं आता ।
जवाब देंहटाएंकितना पतन होना बाकी है ?
विचारणीय लेख ।
जी! माँ-बाप को पता भी नहीं है कि उनके बच्चे क्या-क्या सोचने लगे हैं । यह अपसंस्कृति का दौर है, हमें हर हाल में अपने बच्चों को बचाना होगा ।
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