न धन था, न अवसर इसलिये त्यागी बन गया । फिर जैसे ही अवसर मिला तो सांसारिक भी बन गया और प्रचण्ड बेइमान भी । सामने ऐश्वर्य हो और अवसर भी अनुकूल हो तो स्वयं को ऐश्वर्य भोग से विरत रख पाना बड़े-बड़े सिद्धांतवादी संतों के लिये भी सम्भव नहीं होता ।
प्रवचन
और आदर्शों का बखान उनकी विशेषतायें हैं तथापि वे मानते हैं कि जो सिस्टम का
हिस्सा नहीं बनेगा उसे जीने नहीं दिया जायेगा ...। वे पूरी दुनिया को अपनी मुट्ठी
में कर लेना चाहते हैं । लोक कल्याण और वसुधैव कुटुम्बकम के नारों के पीछे छिपे
शातिराना छल के साथ वे अपनी पताका फहराना चाहते हैं । वे बड़ी मासूमियत से कहते हैं
कि वे पवित्र हैं और उनके उद्देश्य पूरी तरह सात्विक हैं किंतु कुछ लोग उनकी
संस्था को कलंकित कर रहे हैं । यह एक शातिराना स्पष्टीकरण है जो मुझे कभी संतुष्ट
नहीं कर पाता । वे अपनी संस्था के ऐसे सदस्यों का बहिष्कार क्यों नहीं करते जो
उच्च पदों पर पहुँचते ही सारे आदर्शों को आग लगाकर सिस्टम का हिस्सा बनने में पल
भर की भी देर नहीं लगाते ?
निश्चित
ही उनकी संस्था पतित नहीं है किंतु उनके बहुत से लोग पतित हैं । मुझे पवित्र
संस्थाओं के उन पतित लोगों और एक महाभ्रष्ट व्यक्ति में कोई अंतर दिखायी नहीं देता
। उनका दावा है कि वे भारत से भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहते हैं ...और इसके
लिये उन्हें भ्रष्टाचार में सम्मिलित होना होगा । मेरी अल्पबुद्धि इस रहस्य को कभी
समझ नहीं सकी । उनके पास आदर्श वाक्यों की कमी नहीं होती, वे
विष से विष की चिकित्सा करने का उदाहरण देते हैं, किंतु...
किंतु
बड़ी चतुराई से वे इस सत्य की उपेक्षा करते रहते हैं कि विष की चिकित्सा में
प्रयुक्त होने वाले विष को पहले शुद्ध होकर अमृत होना होता है । पवित्र संस्था के
अपवित्र लोग इस सत्य की प्रायः उपेक्षा करते पाये जाते हैं । वे इस बात को स्वीकार
नहीं करना चाहते कि अच्छे उद्देश्य के लिये चुना गया भ्रष्ट मार्ग कभी भी अपने
गंतव्य तक नहीं पहुँचा करता । आप कितने भी पवित्र क्यों न हों किंतु जब आप किसी
सिस्टम का हिस्सा बनते हैं तो आप उस सिस्टम को आत्मसात करते हैं, उसके
आगे की यात्रा में सात्विकता का कोई स्थान नहीं हुआ करता । पवित्र संस्थाओं को
ईमानदारी से मंथन करना होगा ।
ईश्वर
को यह सदा ही अपेक्षा रहती है कि कुछ लोगों को असत के विरुद्ध आवाज़ उठाना ही
चाहिये भले ही इसके लिये उन्हें गम्भीर स्थितियों का सामना क्यों न करना पड़े ।
यह भारत
का दुर्भाग्य है जहाँ कुछ लोग देश को बेचने की होड़ में हैं तो कुछ लोग हिंदुत्व को
बेचने की होड़ में । साधुवेश में घूमने वाले रावणों के विरुद्ध आवाज़ उठानी होगी ।
अब सारा दायित्व आम आदमी पर है वह चाहे तो देश और मनुष्यत्व को बचा ले और चाहे तो
प्रतिक्रियाशून्य बना रहे ।
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