शनिवार, 14 जून 2025

आज की चौपाल चर्चा

पहलगाम आतंकवाद के विरुद्ध भारत की सैन्यकार्यवाही सिंदूर के बाद तुर्किए का पाकिस्तान को खुला समर्थन, भारत सरकार द्वारा तुर्की की कंपनी को भारत में विमान रखरखाव के अनुबंध को समाप्त कर देना, तुर्की की कंपनी के पक्ष में सरकारी आदेश के विरुद्ध मुंबई उच्चन्यायालय के निर्णय, अहमदाबाद में विमान दुर्घटना से ठीक पूर्व उसी कंपनी के कर्मचारियों द्वारा षड्यंत्रपूर्वक विमान की ईंधन प्रणाली को बंद कर देने की आशंका, विमान के पायलट द्वारा भेज गए संदेश का कोई प्रत्युत्तर न देने के साथ ही मुंबई उच्चन्यायालय के न्यायमूर्ति का वामपंथी इतिहास इस दुर्घटना के बारे में बहुत कुछ कहता है । इन सारी कड़ियों को आपस में जोड़ देने से कुछ बातें स्पष्ट हो जाती हैं कि

-           भारत के अंदर रहने वाले भारत के शत्रुओं की स्थिति बहुत प्रबल और प्रभावी है,

-           नेताओं, पत्रकारों, वकीलों और सेक्युलर चिंतकों को ही नहीं, न्यायमूर्तियों को भी भारत के विरुद्ध षड्यंत्रों में सम्मिलित करने में भारतविरोधियों को हर बार सफलता मिल जाना सरकार की पंगुता, विवशता, निर्बलता और कुव्यवस्था की ओर संकेत करता है,

-           भारत में सरकारों से अधिक शक्तिशाली, निरंकुश और स्वेच्छाचारी वह कोलेजियम व्यवस्था है जो सरकारों की असहमति और विरोध के बाद भी अयोग्य न्यायमूर्तियों की नियुक्तियाँ करने के लिये अपनी हठधर्मिता का पालन करती है,

-           तुर्किये की कम्पनी सेलेबी और एयर इंडिया के बीच हुये पूर्व अनुबंध को समाप्त करने के सरकार के निर्णय के विरुद्ध सेलेबी के पक्ष में निर्णय देने वाले न्यायमूर्ति सोमशेखर सुंदरसन की नियुक्ति का भी सरकार द्वारा विरोध किया गया था पर कोलेजियम प्रणाली की हठधर्मिता के आगे सरकार को झुकना पड़ा और सोमशेखर की नियुक्ति को स्वीकार करना पड़ा था ।

 

*भविष्यवाणी, पूर्वसूचना और धमकी* 

 

एक्स, इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक जैसे सामाजिक सूचना माध्यमों पर सक्रिय रहने वाले पटना निवासी वकील और पत्रकार *मोदस्सिर महमूद मुगल* के एक्स मंच पर अहमदावाद हवाई दुर्घटना से दो दिन पूर्व लोगों ने पढ़ा – *एक दो दिन में कुछ बड़ा हादसा होने वाला है जैसे कोई प्लेन हादसा, किसी राजनेता की हृदयविदारक मौत!*

हवाई दुर्घटना के बाद सूचना माध्यमों पर लोगों ने मोदस्सिर महमूद मुगल पर विधिक कार्यवाही करने की माँग की तो सेक्युलर चिंतक, फ़ैक्ट-चेकर्स और महमूद के समर्थक उसके बचाव में कूद पड़े । किसी ने कहा कि यह भविष्यवाणी तो किसी ज्योतिषी ने की थी इससे मुदस्सिर का नाम जोड़ना ठीक नहीं । किसी ने कहा कि मोदस्सिर ने “पाकिस्तान से आने वाली गर्म हवाओं में ग़ुरबत” की अनुभूति के बारे में टिप्पणी की थी जिसे किसी ने सम्पादित करके दुर्घटना की पूर्वसूचना में परिवर्तित कर दिया । कुल मिलाकर अपने नाम के साथ मुगल की पहचान जोड़ने वाला मोदस्सिर महमूद देशभक्त है इसलिये उस पर किसी विधिक कार्यवाही की कोई आवश्यकता नहीं है ।

ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी – “भारत सहित विश्व के कई देशों में हवाई दुर्घटनाओं की आशंकायें हैं”।

मुगल ने धमकी दी थी – “एक दो दिन में कुछ बड़ा हादसा होने वाला है जैसे कोई प्लेन हादसा, किसी राजनेता की हृदयविदारक मौत!”

 

वामपंथियो! भविष्यवाणी, पूर्वसूचना और धमकी की भाषा के अंतर को हम समझते हैं ।

 

मुस्लिमेतर समुदायों को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये अपने आप से यह पूछना ही होगा कि –  

 

-       भारत की सनातन व्यवस्था के समर्थक हिंदुओं एवं मुसलमानों को एक मंच आने पर और इस्लामिक व्यवस्था के समर्थक हिंदुओं एवं मुसलमानों को एक दूसरे मंच पर जाने की आवश्यकता को स्वीकार करने में क्या अवरोध है?

-       यदि कोई अवरोध है तो क्या पाकिस्तान बनाने का औचित्य ही समाप्त नहीं हो जाता ?

-       भारत के इस अन्यायपूर्ण विभाजन को किसने और क्यों स्वीकार किया ?

-       वे कौन लोग थे जिन्होंने धार्मिक आधार पर हुये विभाजन के बाद भी पूर्ण विभाजन नहीं होने दिया और पाकिस्तान के समर्थन में मतदान करने वाले लोग विभाजन के बाद भी पाकिस्तान न जाकर भारत में ही बने रहे ?

-       पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिमबहुल देशों के मुस्लिम नागरिक अपना देश छोड़कर दूसरे अ-मुस्लिम देशों में शरण लेने के लिये क्यों लालायित रहते हैं ?

-       कोई मुस्लिम देश दूसरे देश से आये हुये मुसलमानों को शरण क्यों नहीं देना चाहता ?

-       किसी अ-मुस्लिम देश में शरण पाये मुसलमान कुछ समय बाद उस देश की व्यवस्था और विधि को बदलकर शरीया लागू करने के लिये हिंसा पर क्यों उतारू हो जाते हैं और क्यों यूरोपीय देशों की सरकारें भी शरणार्थियों के सामने पंगु हो जाया करती हैं?

 

*ब्रिटेन में ऐतिहासिक यौनशोषण*

ब्रिटेन में पाकिस्तान –

 

भारत में तो अजमेर-काँड जैसी घटनायें हो जाया करती हैं पर ब्रिटेन की चमक-दमक में सब कुछ चमकीला ही नहीं होता । रोचडेल का ग्रूमिंग-कांड वहाँ के उस ऐतिहासिक यौनशोषण को उजागर करता है जिसमें पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश नागरिकों द्वारा अवयस्क लड़कियों का वर्षों तक यौनशोषण किया जाता रहा । पीड़िताओं में वे किशोरियाँ ही अधिक हैं जो निर्धन या निर्बल पारिवारिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि से सम्बंधित हैं । पश्चिमी देशों में परिवार की संरचना भारत जैसी नहीं होती, सबकुछ शिथिल और बिखरा-बिखरा सा होता है । दुर्भाग्य से हम भारतीय भी अपनी समृद्ध और सुलझी हुयी विवाह एवं परिवार संरचना की परम्परा को छोड़कर आज पश्चिमी समाज की राह पर चल पड़े हैं, इसलिये हमें भी पश्चिमी देशों जैसी पारिवारिक शिथिलताओं, यौनशोषण और ड्रग्स की घटनाओं में फ़ँसते अपने नौनिहालों को देखने के लिये तैयार रहना चाहिये । 

नस्लीय तनाव से भय –

प्रशासनिक और सामाजिक दृष्टि से हताश करने वाली एक बहुत बुरी बात यह है कि ब्रिटेन की पुलिस और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा वर्षों तक इन अपराधों की अनदेखी की जाती रही, उन्हें डर था कि अपराधियों की पाकिस्तानी मूल की पहचान उजागर करने से स्थानीय लोगों में नस्लीय तनाव बढ़ सकता है । क्या किसी देश को विदेशीमूल के प्रवासियों से इतना भयभीत होने की आवश्यकता है कि वह न्याय-व्यवस्था की ही उपेक्षा करने लग जाय ? यही प्रश्न भारत के संदर्भ में भी खड़ा होता है जहाँ बांग्लादेशियों, रोहिंग्यायों और पाकिस्तानी मुसलमानों के आगे भारत की शासनिक-प्रशासनिक व्यवस्थायें पानी भरती दिखायी देती हैं । मनुष्यता और नैतिक मूल्यों के स्तर पर पूरी दुनिया के विचारकों को ऐसे भय के विरुद्ध एक मंच पर आने की आवश्यकता है । मानवसभ्यता को बचाने के लिये भौगोलिक एवं राजनीतिक सीमाओं से उठकर सत्य के साथ सामने आना ही होगा ।

रोचडेल की एक पूर्व पुलिस अधिकारी और सचेतक मैगी ओलिवर ने पुलिस की जाँच प्रक्रिया पर प्रश्न खड़े किये और दृढ़तापूर्वक कहा कि अधिकारियों ने पीड़ितों की अनदेखी की और अपराधियों को बचाने के प्रयास किये । भारत में भी यही होता है, जहाँ अपराधियों के पक्ष में अधिकारियों, मध्यस्थों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, विचारकों, राजनीतिज्ञों, सम्प्रदाय-विशेषज्ञों, वकीलों और न्यायमूर्तियों की एक विशाल सेना खड़ी दिखायी देती है । भारत में अवैध घुसपैठियों के कूट आधारपत्र, ड्राइविंग लाइसेंस और राशनकार्ड आदि अभिलेख तैयार करने वाले लोग कौन हैं ?

वर्ष २०२४ में रोथरहम के ग्रूमिंग कांड में १४०० किशोरियों का यौनशोषण हुआ । प्रोफ़ेसर एलेक्सिस ने बताया कि पुलिस और सामाजिक कार्यकर्ता पीड़ितों को “वेश्या” या “जीवनशैली की पसंद” के रूप में देखते थे, जिसके कारण उनकी शिकायतों को गम्भीरता से नहीं लिया गया ।

 

ऑपरेशन लिटन –

वर्ष २०१५ में ग्रेटर मैनचेस्टर पुलिस ने अवस्यस्क बच्चियों और किशोरियों के यौनशोषण की जाँच की और ३७ लोगों पर आरोप लगाये । आरोपियों की जातीयता (नस्ल) की बात सामने आते ही ब्रिटेन में जातीयता (नस्ल) और अपराध के बीच के सम्बंधों पर एक तीखा वाद-विवाद होने लगा है । राष्ट्रीय पुलिस प्रमुख परिषद (NPPC) के २०२४ के आँकड़ों के अनुसार ग्रूमिंग-गैंग के सदस्यों में ब्रिटिश पाकिस्तानी मूल के लोग अनुपात से अधिक पाये गये । यद्यपि संलिप्तता की दृष्टि से यौनशोषण के कुल अपराधों में ८८% अपराधी श्वेत-ब्रिटिश और मात्र २% ही पाकिस्तानमूल के नागरिक थे, किंतु रोचडेल, रोथरहम और एलफ़ोर्ड जैसे नगरों में हुये उच्च और कुलीन वर्ग में यौनशोषण की घटनाओं में पाकिस्तानीमूल के अपराधियों की अधिकता ने इसे राजनीतिक और सामाजिक रूप से संवेदनशील बना दिया है ।

कुछ राष्ट्रवादी राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे नस्लीय रंग देने के प्रयास किये हैं जिसे कई सेक्युलर और वामपंथी विचारक ख़तरनाक मानते हैं । जबकि कुछ लोग मानते हैं कि यह अपराध नस्ल से अधिक वर्ग और लैंगिक-भेदभाव से जुड़ा हुआ है क्योंकि पीड़ितायें निर्धन और निर्बल पृष्ठभूमि से थीं ।

यौनशोषण जैसे जघन्य अपराध के प्रति विचारकों के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से उनके उद्देश्यों और इस आपराधिक समस्या के समाधान के प्रति उनकी गम्भीरता का अनुमान लगाया जा सकता है, ठीक उसी तरह जैसे “लड़के हैं, लड़कों से गलती हो जाया करती है”।

मंगलवार, 10 जून 2025

दहेज का स्कूटर

सरकारी नौकरी मिलते ही संदीप के विवाह के लिये अचानक प्रस्ताव आने लगे तो पंडित रामदीन की प्रसन्नता का कोई पारावार न रहा । इसके ठीक विपरीत उनका बेटा संदीप प्रसन्न होने के स्थान पर उदास-उदास रहने लगा । जब भी वह अकेला होता तो एक ही बात सोचने लगता - सरकारी नौकरी के सामने मैं कितना बौना और तुच्छ हूँ । यह मेरा नहीं, मेरी नौकरी का मूल्यांकन है ।

जसवंतपुर के बी.एससी. पास संदीप एक निजी स्कूल में शिक्षक थे, जहाँ वेतन इतना कम मिला करता कि उतने में किसी न्यूनतम सदस्यों वाले परिवार का भरण-पोषण भी सम्भव नहीं था । इसी कारण उसके विवाह के लिये कभी कोई प्रस्ताव आया ही नहीं । हर किसी को सरकारी नौकरी वाला ही दुलहा चाहिये था ।

जब भरतपुर तहसील में चपरासी के लिये विज्ञापन निकला तो संदीप के घर का तापमान बढ़ गया । सब चाहते थे कि वह सरकारी नौकरी के लिये आवेदन करे । बड़े-बूढ़ों का मान रखने के लिये बी.एससी. पास युवक को चपरासी की नौकरी का आवेदन देने के लिये अपनी आत्मा को मार देना पड़ा । सच पूछो तो उस पर उदासी के घनघोर बादल तो उसी दिन से छाये हुये थे ।

तहसील में नौकरी लगते ही राजस्थान से लेकर उत्तरप्रदेश तक विवाहयोग्य कन्याओं के घरों में संदीप की चर्चायें होने लगीं । संदीप के घर वर-दिखुवा आने लगे और एक दिन आरा जिला की एक सुयोग्य कन्या के साथ संदीप कुमार तिवारी को टाँक दिया गया ।

पंडित रामदीन थोड़े सैद्धांतिक व्यक्ति थे, इसलिये दहेज माँगने के विरुद्ध थे, पर जब वधु के पिता ने स्वेच्छा से बजाज स्कूटर की चाबी वर के हाथ में थमा दी तो घर के बड़े-बूढ़ों ने इसे “हरि इच्छा” मानकर स्वीकार कर लिया । इस तरह तिवारी परिवार के लोगों ने पहली बार अपने दरवाजे पर एक स्कूटर को शोभायमान होते हुये देखा ।

दहेज का स्कूटर पाकर संदीप और भी उदास हो गया । उसके सामने दो गम्भीर समस्यायें थीं, पहली यह कि उसे स्कूटर चलाना नहीं आता था और इस आयु में वह ड्राइविंग सीखने के लिये तनिक भी उत्साहित नहीं था । दूसरी समस्या थी स्कूटर को जसवंतपुर से लेकर भरतपुर तक जाना ।

नई-नवेली पत्नी ने धीरे से प्रस्ताव रखा – “मुझे स्कूटर चलाना आता है, आपके साथ मैं लेकर चलूँ भरतपुर तक!”

संदीप ने ठीक कांग्रेस नेता उदित राज जैसा मुँह बनाकर पत्नी की ओर केवल देखा, कहा कुछ नहीं । पत्नी घबराकर चुप हो गयी । उदित राज के मुँह पर स्थायी भाव से रहने वाले घने बादलों में से किसी पत्रकार के लिये कुछ निकाल पाना दुष्कर होता है, यह तो अच्छा है कि नेताजी स्थायीभाव से अपने मस्तिष्क में बसा चुके आरोपों-प्रत्यारोपों और रोष को प्रकट करने के लिये सदा कटिबद्ध रहा करते हैं ।

अंत में हुआ यह कि संदीप चपरासी बिना स्कूटर के ही भरतपुर चले गये, नवेली पत्नी को उसका भाई विदा करवाकर आरा ले गया, और स्कूटर ने जसवंतपुर में “सार्वजनिक-वाहन” का पद प्राप्त किया ।

संदीप के चाचाओं और ताउओं के पुत्रगण स्कूटर का तीन साल तक तो जी भर उपभोग करते रहे पर सही देखभाल और सर्विसिंग के अभाव में स्कूटर ने एक दिन घुटने टेक दिये, ..ठीक वैसे ही जैसे ओवरलोडेड बैलगाड़ी को खींचने वाले बैल चढ़ाई आने पर घुटमों के बल बैठ जाया करते हैं ।

सालभर तक तो स्कूटर घर में खड़ा रहा फिर एक दिन पंडित रामदीन ने असमय ही वृद्ध हो चले स्कूटर को किसी तरह मैकेनिक के यहाँ पहुँचवा दिया । महीने भर बाद भी जब पंडित जी ने स्कूटर की सुध नहीं ली तो मैकेनिक ने संदेशा भिजवाया कि छह हजार देकर अपना स्कूटर ले जाओ ।

पंडित जी के पास इतने रुपये नहीं थे, बेटे से कैसे कहते! स्कूटर मैकेनिक के यहाँ ही खड़ा रहा । एक दिन जसवंतपुर के लोगों ने पंडित जी को बताया कि मैकेनिक ने उनका स्कूटर छह हजार में किसी को बेच दिया ।

आरा वाली बहुरिया ने सुना तो आकाश-पाताल एक कर दिया । दहेज का स्कूटर, न तो पाने वाले ने उपभोग किया और न उसकी पत्नी ने । किसी पत्नी के लिये इससे अधिक गहन दुःख की बात और क्या हो सकती थी! बात बड़े-बूढ़ों तक और फिर आरा तक पहुँची । आरा से उपाध्याय जी आये, घरेलू पंचायत बैठायी गयी । निर्णय हुआ कि तिवारी जी बहू को एक नया स्कूटर ख़रीदकर देंगे ।

सदा से विपन्न रहे तिवारी जी इतने पैसे कहाँ से लाते भला!

संदीप ने अपने दायित्व को समझा, पंचायत के निर्णय का सम्मान किया और खिन्न मन से एक नया स्कूटर खरीदने के लिये पिता जी को तुरंत पैसे थमा दिये । तिवारी जी ने भी नोटों की गड्डी तुरंत बहू के आगे बढ़ाकर स्त्रीधन के भार से मुक्ति पाते हुये कहा - अपनी रुचि का स्कूटर ले लेना”। बहू ने संतोष की साँस ली और रुपये लेकर रख लिये ।

आरा वाली बहू को पता था कि संदीप अपने पद को लेकर हीनभावना से ग्रस्त है और स्कूटर का उपभोग नहीं करेगा । व्यवहारकुशल बहू ने पूरे पैसे अपने पिता को थमा दिये ।

*  *  *  

मैकेनिक के यहाँ से छह हजार में स्कूटर ख़रीदकर शिवराम वाजपेयी प्रसन्न थे । पर यह प्रसन्नता अधिक समय तक नहीं रही । दहेज का स्कूटर यहाँ भी अपने रंग-ढंग दिखाने लगा । कुछ दिन जैसे-तैसे स्कूटर चलाने के बाद वाजपेयी जी ने भी उससे मुक्ति पाने में ही अपनी भलाई समझी । उन्हें ग्राहक खोजने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, पर अंततः दो हजार में एक ग्राहक पटा ही लिया ।

दहेज का स्कूटर काम वाली बाई की तरह एक घर से दूसरे-तीसरे-चौथे... घर में सुशोभित होता रहा । इस बीच रंग-रोगन कर उसके सौंदर्यीकरण का भी प्रयास किया गया पर स्कूटर को सद्गति नहीं मिल सकी ।

एक दिन वाजपेयी जी पास के एक गाँव में किसी काम से गये हुये थे । रास्ते में उन्होंने देखा, घुरऊ चौधरी एक जुगाड़ में गोबर की खाद लेकर खेतों की ओर जा रहे हैं । वाजपेयी जी को देखते ही चौधरी ने जुगाड़ रोक कर पायलागन किया । बात होने लगी तो होते-होते वाजपेयी ने पूछ दिया – “यह जुगाड़ कहाँ से लिया?”

चौधरी ने बताया – “लिया नहीं, बनवाया है । हरीराम कहीं से एक पुराना स्कूटर लाये थे । कुछ दिन पहले ही मैंने उनसे डेढ़ हजार में लेकर मैकेनिक के यहाँ से यह जुगाड़ बनवा लिया । इंजन पुराना है पर खेती-किसानी का काम चल जाता है”।

“पुराना स्कूटर” सुनते ही वाजपेयी के कान खड़े हुये । उन्होंने फ़्लेश-बैक में खँगालना प्रारम्भ किया तो पता चला कि यह तो वही दहेज वाला स्कूटर है, जसवंतपुर वाला । वाजपेयी मुस्कराये और आगे बढ़ लिये ।

!! हरि ॐ तत्सत् !!

शनिवार, 7 जून 2025

हत्यारे को न्यायाधीश का दायित्व

 “मानवीय सभ्यता के उत्कर्षकाल (?) में वैश्विक स्तर पर युद्ध और आतंकवाद को प्रश्रय देने जैसी गतिविधियों के प्रसंग में विवेकशून्यता और अनैतिकमूल्यों की पराकाष्ठा ने यह विचार करने के लिये विवश कर दिया है कि हम सभ्य होते जा रहे हैं या असभ्य ?” – मोतीहारी वाले मिसिर जी : ज्येष्ठ शुक्ल १२, विक्रम संवत् २०८२ (ईसवी दिनांक ०७.०६.२०२५)

अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाये रखने के लिये उत्तरदायी “संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद्” में पाकिस्तान को एक माह के लिये “तालिबान प्रतिबंध समिति” का अध्यक्ष एवं “आतंकवादरोधी समिति” का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है । ये नियुक्तियाँ वर्णमालाक्रमानुसार एक माह के लिये की जाती हैं और पदाधिकारी देशों के पास किसी को दंड देने या मनमाने तरीके से कोई नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार नहीं होता किंतु एक “वैश्विक आतंकवादी देश” को आतंक और तालिबान रोधी समिति का उत्तरदायित्व देना क्या मक्षिका स्थाने मक्षिका एवं नियम के नाम पर जड़ता का विवेकहीन अनुकरण जैसा नहीं लगता ! हमने कैसेबियांका की पितृभक्ति और धौम्य शिष्य आरुणि की गुरुभक्ति की कहानियाँ पढ़ी हैं पर वहाँ कुपात्रता जैसी कोई बात नहीं थी । पाकिस्तान तो पूरी तरह अपात्र ही नहीं कुपात्र भी है । कलियुग का यह वह समय है जब पाकिस्तान का वैश्विक बहिष्कार किये जाने के लिये पूरे विश्व को एकजुट होना चाहिये जबकि विश्वकोष से आर्थिक सहायता और अमेरिका से संहारक आयुध प्रदाय जैसे निर्णय पाकिस्तान को आतंकवाद के लिये प्रोत्साहित ही करते हैं । माना कि सुरक्षापरिषद् की दो समितियों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष होकर पाकिस्तान कोई तीर नहीं मार पायेगा पर उसका मनोबल तो बढ़ेगा ही । सभ्यता के इस शीर्षकाल में हम निरंतर असभ्यता और विवेकहीनता का प्रदर्शन करने की होड़ में क्यों हैं? यदि महाशक्तियाँ इतनी ही विवेकहीन बनी रहीं तो वह दिन भी दूर नहीं जब चीन, फ़्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका के बाद पाकिस्तान को भी संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बना दिया जायेगा ।

हत्या करते रहने के अभ्यस्त क्रूर हत्यारे को ही न्यायाधीश बना देने से उसके समक्ष न्याय के प्रति चिंतन की बाध्यताजैसी स्थिति उत्पन्न करना इसका एक दूसरा पक्ष हो सकता है किंतु पाकिस्तान के लिये इसकी सम्भावना अत्यंत क्षीण है । थप्पड़ खाकर अगले कई और थप्पड़ खाने के लिये बार-बार दूसरा गाल आगे कर देने वाला यूटोपियन सिद्धांत कितना व्यावहारिक हो सका है!