पहलगाम
आतंकवाद के विरुद्ध भारत की सैन्यकार्यवाही सिंदूर के बाद तुर्किए का पाकिस्तान को
खुला समर्थन, भारत सरकार द्वारा तुर्की की कंपनी को भारत में विमान रखरखाव के
अनुबंध को समाप्त कर देना, तुर्की की कंपनी के पक्ष में सरकारी आदेश के विरुद्ध मुंबई
उच्चन्यायालय के निर्णय, अहमदाबाद में विमान दुर्घटना से ठीक पूर्व उसी कंपनी के
कर्मचारियों द्वारा षड्यंत्रपूर्वक विमान की ईंधन प्रणाली को बंद कर देने की आशंका, विमान के
पायलट द्वारा भेज गए संदेश का कोई प्रत्युत्तर न देने के साथ ही मुंबई
उच्चन्यायालय के न्यायमूर्ति का वामपंथी इतिहास इस दुर्घटना के बारे में बहुत कुछ
कहता है । इन सारी कड़ियों को आपस में जोड़ देने से कुछ बातें स्पष्ट हो जाती हैं कि
–
- भारत के अंदर रहने वाले भारत के
शत्रुओं की स्थिति बहुत प्रबल और प्रभावी है,
- नेताओं, पत्रकारों, वकीलों और
सेक्युलर चिंतकों को ही नहीं, न्यायमूर्तियों को भी भारत के विरुद्ध षड्यंत्रों में सम्मिलित
करने में भारतविरोधियों को हर बार सफलता मिल जाना सरकार की पंगुता, विवशता, निर्बलता और
कुव्यवस्था की ओर संकेत करता है,
- भारत में सरकारों से अधिक शक्तिशाली, निरंकुश और
स्वेच्छाचारी वह कोलेजियम व्यवस्था है जो सरकारों की असहमति और विरोध के बाद भी
अयोग्य न्यायमूर्तियों की नियुक्तियाँ करने के लिये अपनी हठधर्मिता का पालन करती
है,
- तुर्किये की कम्पनी सेलेबी और एयर
इंडिया के बीच हुये पूर्व अनुबंध को समाप्त करने के सरकार के निर्णय के विरुद्ध
सेलेबी के पक्ष में निर्णय देने वाले न्यायमूर्ति सोमशेखर सुंदरसन की नियुक्ति का
भी सरकार द्वारा विरोध किया गया था पर कोलेजियम प्रणाली की हठधर्मिता के आगे सरकार
को झुकना पड़ा और सोमशेखर की नियुक्ति को स्वीकार करना पड़ा था ।
*भविष्यवाणी, पूर्वसूचना और धमकी*
एक्स, इंस्टाग्राम
और फ़ेसबुक जैसे सामाजिक सूचना माध्यमों पर सक्रिय रहने वाले पटना निवासी वकील और पत्रकार *मोदस्सिर
महमूद मुगल* के एक्स मंच पर अहमदावाद हवाई दुर्घटना से दो दिन पूर्व लोगों ने पढ़ा –
*एक दो दिन में कुछ बड़ा हादसा होने वाला है जैसे कोई प्लेन हादसा, किसी
राजनेता की हृदयविदारक मौत!*
हवाई
दुर्घटना के बाद सूचना माध्यमों पर लोगों ने मोदस्सिर महमूद मुगल पर विधिक
कार्यवाही करने की माँग की तो सेक्युलर चिंतक, फ़ैक्ट-चेकर्स
और महमूद के समर्थक उसके बचाव में कूद पड़े । किसी ने कहा कि यह भविष्यवाणी तो किसी
ज्योतिषी ने की थी इससे मुदस्सिर का नाम जोड़ना ठीक नहीं । किसी ने कहा कि मोदस्सिर
ने “पाकिस्तान से आने वाली गर्म हवाओं में ग़ुरबत” की अनुभूति के बारे में टिप्पणी
की थी जिसे किसी ने सम्पादित करके दुर्घटना की पूर्वसूचना में परिवर्तित कर दिया ।
कुल मिलाकर अपने नाम के साथ मुगल की पहचान जोड़ने वाला मोदस्सिर महमूद देशभक्त है
इसलिये उस पर किसी विधिक कार्यवाही की कोई आवश्यकता नहीं है ।
ज्योतिषी ने
भविष्यवाणी की थी – “भारत सहित विश्व के कई देशों में हवाई दुर्घटनाओं की आशंकायें
हैं”।
मुगल ने
धमकी दी थी – “एक दो दिन में कुछ बड़ा हादसा होने वाला है जैसे कोई प्लेन हादसा, किसी
राजनेता की हृदयविदारक मौत!”
वामपंथियो!
भविष्यवाणी, पूर्वसूचना और धमकी की भाषा के अंतर को हम समझते हैं ।
मुस्लिमेतर समुदायों को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये अपने आप
से यह पूछना ही होगा कि –
-
भारत की सनातन व्यवस्था के समर्थक हिंदुओं एवं मुसलमानों को एक
मंच आने पर और इस्लामिक व्यवस्था के समर्थक हिंदुओं एवं मुसलमानों को एक दूसरे मंच
पर जाने की आवश्यकता को स्वीकार करने में क्या अवरोध है?
-
यदि कोई अवरोध है तो क्या पाकिस्तान बनाने का औचित्य ही समाप्त
नहीं हो जाता ?
-
भारत के इस अन्यायपूर्ण विभाजन को किसने और क्यों स्वीकार किया ?
-
वे कौन लोग थे जिन्होंने धार्मिक आधार पर हुये विभाजन के बाद भी
पूर्ण विभाजन नहीं होने दिया और पाकिस्तान के समर्थन में मतदान करने वाले लोग
विभाजन के बाद भी पाकिस्तान न जाकर भारत में ही बने रहे ?
-
पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिमबहुल देशों के मुस्लिम
नागरिक अपना देश छोड़कर दूसरे अ-मुस्लिम देशों में शरण लेने के लिये क्यों लालायित
रहते हैं ?
-
कोई मुस्लिम देश दूसरे देश से आये हुये मुसलमानों को शरण क्यों
नहीं देना चाहता ?
-
किसी अ-मुस्लिम देश में शरण पाये मुसलमान कुछ समय बाद उस देश की
व्यवस्था और विधि को बदलकर शरीया लागू करने के लिये हिंसा पर क्यों उतारू हो जाते
हैं और क्यों यूरोपीय देशों की सरकारें भी शरणार्थियों के सामने पंगु हो जाया करती
हैं?
*ब्रिटेन में ऐतिहासिक यौनशोषण*
ब्रिटेन में
पाकिस्तान –
भारत में तो
अजमेर-काँड जैसी घटनायें हो जाया करती हैं पर ब्रिटेन की चमक-दमक में सब कुछ
चमकीला ही नहीं होता । रोचडेल का ग्रूमिंग-कांड वहाँ के उस ऐतिहासिक यौनशोषण को
उजागर करता है जिसमें पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश नागरिकों द्वारा अवयस्क लड़कियों
का वर्षों तक यौनशोषण किया जाता रहा । पीड़िताओं में वे किशोरियाँ ही अधिक हैं जो
निर्धन या निर्बल पारिवारिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि से सम्बंधित हैं । पश्चिमी
देशों में परिवार की संरचना भारत जैसी नहीं होती, सबकुछ शिथिल
और बिखरा-बिखरा सा होता है । दुर्भाग्य से हम भारतीय भी अपनी समृद्ध और सुलझी हुयी
विवाह एवं परिवार संरचना की परम्परा को छोड़कर आज पश्चिमी समाज की राह पर चल पड़े
हैं, इसलिये हमें भी पश्चिमी देशों जैसी पारिवारिक शिथिलताओं, यौनशोषण और
ड्रग्स की घटनाओं में फ़ँसते अपने नौनिहालों को देखने के लिये तैयार रहना चाहिये
।
नस्लीय तनाव
से भय –
प्रशासनिक
और सामाजिक दृष्टि से हताश करने वाली एक बहुत बुरी बात यह है कि ब्रिटेन की पुलिस
और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा वर्षों तक इन अपराधों की अनदेखी की जाती रही, उन्हें डर
था कि अपराधियों की पाकिस्तानी मूल की पहचान उजागर करने से स्थानीय लोगों में
नस्लीय तनाव बढ़ सकता है । क्या किसी देश को विदेशीमूल के प्रवासियों से इतना भयभीत
होने की आवश्यकता है कि वह न्याय-व्यवस्था की ही उपेक्षा करने लग जाय ? यही प्रश्न
भारत के संदर्भ में भी खड़ा होता है जहाँ बांग्लादेशियों, रोहिंग्यायों
और पाकिस्तानी मुसलमानों के आगे भारत की शासनिक-प्रशासनिक व्यवस्थायें पानी भरती दिखायी
देती हैं । मनुष्यता और नैतिक मूल्यों के स्तर पर पूरी दुनिया के विचारकों को ऐसे
भय के विरुद्ध एक मंच पर आने की आवश्यकता है । मानवसभ्यता को बचाने के लिये
भौगोलिक एवं राजनीतिक सीमाओं से उठकर सत्य के साथ सामने आना ही होगा ।
रोचडेल की
एक पूर्व पुलिस अधिकारी और सचेतक मैगी ओलिवर ने पुलिस की जाँच प्रक्रिया पर प्रश्न
खड़े किये और दृढ़तापूर्वक कहा कि अधिकारियों ने पीड़ितों की अनदेखी की और अपराधियों
को बचाने के प्रयास किये । भारत में भी यही होता है, जहाँ
अपराधियों के पक्ष में अधिकारियों, मध्यस्थों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, विचारकों, राजनीतिज्ञों, सम्प्रदाय-विशेषज्ञों, वकीलों और
न्यायमूर्तियों की एक विशाल सेना खड़ी दिखायी देती है । भारत में अवैध घुसपैठियों
के कूट आधारपत्र, ड्राइविंग लाइसेंस और राशनकार्ड आदि अभिलेख तैयार करने वाले लोग
कौन हैं ?
वर्ष २०२४
में रोथरहम के ग्रूमिंग कांड में १४०० किशोरियों का यौनशोषण हुआ । प्रोफ़ेसर
एलेक्सिस ने बताया कि पुलिस और सामाजिक कार्यकर्ता पीड़ितों को “वेश्या” या
“जीवनशैली की पसंद” के रूप में देखते थे, जिसके कारण
उनकी शिकायतों को गम्भीरता से नहीं लिया गया ।
ऑपरेशन लिटन –
वर्ष २०१५ में
ग्रेटर मैनचेस्टर पुलिस ने अवस्यस्क बच्चियों और किशोरियों के यौनशोषण की जाँच की
और ३७ लोगों पर आरोप लगाये । आरोपियों की जातीयता (नस्ल) की बात सामने आते ही
ब्रिटेन में जातीयता (नस्ल) और अपराध के बीच के सम्बंधों पर एक तीखा वाद-विवाद
होने लगा है । राष्ट्रीय पुलिस प्रमुख परिषद (NPPC) के २०२४ के आँकड़ों के अनुसार ग्रूमिंग-गैंग के सदस्यों में
ब्रिटिश पाकिस्तानी मूल के लोग अनुपात से अधिक पाये गये । यद्यपि संलिप्तता की
दृष्टि से यौनशोषण के कुल अपराधों में ८८% अपराधी श्वेत-ब्रिटिश और मात्र २% ही
पाकिस्तानमूल के नागरिक थे, किंतु रोचडेल, रोथरहम और एलफ़ोर्ड जैसे नगरों में हुये उच्च और कुलीन वर्ग में
यौनशोषण की घटनाओं में पाकिस्तानीमूल के अपराधियों की अधिकता ने इसे राजनीतिक और सामाजिक
रूप से संवेदनशील बना दिया है ।
कुछ
राष्ट्रवादी राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे नस्लीय रंग देने के प्रयास
किये हैं जिसे कई सेक्युलर और वामपंथी विचारक ख़तरनाक मानते हैं । जबकि कुछ लोग
मानते हैं कि यह अपराध नस्ल से अधिक वर्ग और लैंगिक-भेदभाव से जुड़ा हुआ है क्योंकि
पीड़ितायें निर्धन और निर्बल पृष्ठभूमि से थीं ।
यौनशोषण
जैसे जघन्य अपराध के प्रति विचारकों के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से उनके
उद्देश्यों और इस आपराधिक समस्या के समाधान के प्रति उनकी गम्भीरता का अनुमान
लगाया जा सकता है, ठीक उसी तरह जैसे “लड़के हैं, लड़कों से
गलती हो जाया करती है”।