स्वतंत्रता जब देश की शांति और सर्वहारा की प्रगति के लिये बाधक बन जाय तो ऐसी स्वतंत्रता पर कठोर अंकुश की आवश्यकता होती है अन्यथा उसके कारण होने वाले विप्लव और विध्वंस को रोका नहीं जा सकता । इसकी गम्भीरता को रेखांकित करता यह कथन विचारणीय है –
“अभिव्यक्ति को मर्यादित और अनुशासित होना ही चाहिये, स्वतंत्रता की रक्षा के लिये इन स्थितियों का होना अपरिहार्य है अन्यथा निरंकुश और स्वेच्छाचारी अभिव्यक्ति सुव्यवस्था और शांति के लिये अभिषाप हो जाती है । सत्ता और उसके तंत्र को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि नागरिकों की शांति भंग न हो और समाज बहुमुखी विकास की ओर निर्बाध अग्रसर होता रहे” । – मोतीहारी वाले मिसिर जी
प्रेम, छल और राक्षस
कुर्बानी के
लिये लाये गये पशु से किये जाने वाले पारम्परिक प्रेम में कितना प्रेम है और कितना
छल, यह जानना उस मानसिकता को समझने के लिये आवश्यक है जो उन्हें भारत
से तो प्रेम करने के लिए प्रेरित करता है पर भारत माता की जय बोलने और भारतीय
संस्कृति को धर्मविरुद्ध मानता है । यह वही
मानसिकता है जो दुनिया भर में लूट-पाट, राज्यारोहण, अनधिकृत भूविस्तार
और अतिक्रमण के लिये कुख्यात रही है । जिनके लिये संविधान से ऊपर अपने पंथिक विचार
और भारत से ऊपर फ़िलिस्तीन एवं पाकिस्तान हैं, वे भारत के
लिये कितना उत्सर्ग कर सकेंगे इसका अनुमान लगा सकना कठिन नहीं है ।
किसी के
समीप आने के दो उद्देश्य हो सकते हैं – एक है भौतिक उपभोगिता का लक्ष्य और दूसरा
है उत्सर्गमूलक प्रेम ।
शक, हूण, यवन से लेकर
फिरंगियों और फिर तुर्कों, अरबों और मंगोलों तक हर कोई भारत के समीप आया, उनका
लक्ष्य भारत से प्रेम करना नहीं प्रत्युत भारत की सम्पदा का उपभोग करना था । आज जो
लोग प्रगतिवाद, धर्मनिरपेक्षता और आधुनिकता की आड़ में भारतीय सांस्कृतिक
मूल्यों और सभ्यता पर निरंतर प्रहार पर प्रहार करते जा रहे हैं वे भारत से कितना
प्रेम करते हैं इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है । वास्तव में ये लोग उन
तुर्कों, मंगोलों और यूरोपियंस से भी अधिक घातक और छली हैं जिन्होंने
हमें पराधीन किया । वे सब शत्रु के रूप में आये, मित्र के
रूप में नहीं । उन्होंने छल से आक्रमण तो किये पर मित्रता और प्रेम के मिथ्या
प्रदर्शन नहीं किये ।
माइक लेकर
चीखने वाले जो अतिबुद्धिजीवी और नेता भारतीय संस्कृति और सभ्यता का विरोध करते
नहीं थकते और अरबी सभ्यता एवं चीनी सत्ता के प्रशंसक हैं वे भारत से कितना प्रेम
कर सकते हैं, विचार करके देखियेगा ।
राक्षस के
लक्षण – बहुलता (संख्यावृद्धि में क्षिप्रता एवं दक्षता), क्षिप्र
उपस्थिति, रक्त एवं मांसप्रियता, रूपपरिवर्तन
की क्षमता (Mutation), आक्रामकता, अवसरवादिता, विखण्डन (Division), विघटन (Disintegration), अंधकार प्रियता और छिपने
में दक्षता …आदि लक्षणों
से राक्षस को पहचाना जा सकता है । इनमें विषाणु, जीवाणु, फंगस और
रावण से लेकर हर विध्वंसक जीव को सम्मिलित किया जा सकता है ...तदैव पहचान होते ही
उनसे अपनी अपनी सुरक्षा का उपाय भी कर लेना चाहिये ।
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