१. पहचान-क्रांति
सावन के महीने में
शिवमंदिर के सामने दमोह में
मांस की दुकान खोलने का विरोध करने पर
कार से कुचल कर मार डाला
अकील ने राकेश को ।
सावन के महीने में
दुकानदार ने
फलों के रस में थूका
फिर ग्राहक को दे दिया ।
सावन के महीने में
हिंदू देवी-देवताओं के नाम पर खोले
उन्होंने अपने ढाबे
छिपाकर अपनी पहचान
बाँधकर हाथ में कलावा
लगाकर माथे पर तिलक
....यही तो अल-तकिया है
जो तुम्हें भोगना ही होगा ।
सावन के महीने में
योगी बाबा ने कहा
उजागर करनी होगी
अपनी सही पहचान
सुनकर
कूद पड़े धर्मनिरपेक्षवादी
कहने लगे
बाबा स्वतंत्रता का शत्रु है
समाज को बाँटता है
भाईचारे को समाप्त करता है
बाबा हटाओ, हमें मुख्यमंत्री वनाओ !
२.
छुआछूत-क्रांति
वरदान को अभिषाप मान बैठे
और अभिषाप को वरदान
तुमने ब्राह्मणों को कोसा
मनुस्मृति को जलाया
सनातन धर्म को गालियाँ दीं
...कि इन्होंने बाँट दिया समाज ।
तुमने एक क्रांतिपथ बनाया
छुआछूत मिटाया ।
जो लोटा-डोर लेकर चला करते थे
सत्तू भी घर से ले जाया करते थे
वे होटेल में भोजन करने लगे
जन्मदिन पर
एक-दूसरे का जूठा केक खाने लगे
एक साथ बैठने-सोने लगे
छुआछूत मिट गया
पर समाज में द्वेष बढ़ता ही रहा
संक्रामक रोग भी बढ़ते ही गये ।
लोग आधुनिक हो गये थे
इसलिये हर बात की उपेक्षा करते रहे
फिर एक दिन आया कोरोना
उसने सिखाया
जीना है
तो एक-दूसरे से छह हाथ दूर रहो
होटेल से दूर रहो
बाजार के भोजन से दूर रहो
और
सबसे बड़ी सीख यह, कि
छुआछूत को सम्मान देते चलो ।
कोरोना की सीख सबने मानी
उन सामाजिक क्रांतिकारियों ने भी
जो नहीं मानते थे कुछ भी ।
फिर एक दिन कोरोना चला गया
हमने भी उसकी सीख को भुला दिया
अब एक बार फिर
आ गये कुछ लोग
देने हमें नयी सीख
बेचते हुये थूकभावित
खाद्य-पेय पदार्थ ।
तुम उनका विरोध करते हो
कोरोना का विरोध क्यों नहीं किया ?
शल्यकक्ष में कभी
ओटी कल्चर का विरोध क्यों नहीं किया ?
हम जानते हैं
तुम नहीं सुधरोगे
जब तक कोड़ा न पड़े कोरोना का
तुम आधुनिक बने रहोगे
पत्थर से सिर टकराते रहोगे ।
आओ! पुरानी पगडंडियाँ खोजें
उन्हें फिर से व्यवहारयोग्य बनायें ।
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