शनिवार, 12 जुलाई 2025

प्रगतिशीलता

बौद्धिक मोलस्काओ !

आओ, पट खोलो, बाहर झाँको

धूप को अत्याचारी कहकर

कब तक छिपे रहोगे 

अँधेरों के गले

कब तक चिपके रहोगे

दुनिया मार्क्स से पहले भी थी

आज भी है, आगे भी रहेगी ।

आज कार्ल मार्क्स नहीं हैं,

उनके गुरु फ़्रेडरिक हेगेल नहीं हैं

लेनिन, स्टालिन और माओजेदांग भी नहीं हैं

पर तुम हो, हम हैं ...और हैं ऊबड़-खाबड़ पथ ।

दशरथ माँझी ने चीर कर पर्वत का वक्ष

बना दिया सुपथ

और मड़ियम हिड़मा ने

ले लिये प्राण

न जाने कितने निर्दोषों के

यह कैसी प्रगतिशीलता है!

यह कैसी क्रांति है!

जो पथ नहीं बनाती, बस प्राण लेती है । 

 

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