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गुरुवार, 15 अगस्त 2024

बांग्लादेश से लेकर बंगाल तक अराजक भीड की सत्ता

            क्या हो गया है बंगालियों को ? यह क्या हो गया है उस बंगभूमि को जहाँ सुभाष चंद्र बोस, बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय, शरत चंद्र, महाश्वेता देवी, आशापूर्णा देवी, ताराशंकर, सत्यजित रे और बिधान चंद्र रॉय जैसे मूर्धन्य विद्वानों ने सामाजिक मूल्यों के लिए सत्य की अलख जगाये रखने में अपना सारा जीवन होम कर दिया ! आज उसी बंगाल के डायमंड हार्बर और फ़्रेंच कॉलोनी चंदननगर जैसे कई शहरों और कस्बों में बिना किसी लड़की को साथ ले जाए किसी होटल में कमरा नहीं मिलता । कोई उद्योगपति पश्चिम बंगाल में किसी उद्योग को लगाने के पक्ष में क्यों नहीं हैं ? बंगालियों को इस विषय में आत्ममंथन की आवश्यकता है ।   

शॉपेन ऑर ही नहीं, विनोबा भावे ने भी शासनमुक्त समाज की कल्पना की थी । मैं पिछले दो दशकों से पश्चिम बंगाल में शासनमुक्त भीड़ के दर्शन करता रहा हूँ, भीड़ का एक ऐसा देश जहाँ “अपने देश” जैसी कोई अनुभूती नहीं होती, जहाँ कोई समाज नहीं, कोई शासन नहीं, कोई प्रशासन नहीं । पश्चिम बंगाल जैसी अराजक अनुभूति भारत के अन्य प्रांतों में नहीं होती । वहाँ अराजक भीड़ की सत्ता है, अपराधियों के समूहों की सत्ता है, अमानवीय आचरण वालों की सत्ता है । पिछले कुछ वर्षों से मैंने पश्चिम बंगाल जाना बंद कर दिया है । वहाँ अब कोई आवारा मसीहा नहीं मिलता ।

आर.जी. कर कोलकाता मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल की जघन्य घटना झकझोरने वाली है । काश! आज वहाँ शरत और बंकिम जैसे लोग होते ।

पीजी डॉक्टर के साथ हुए जघन्य अपराध के बाद अब संवेदनशून्य हॉस्पिटल प्रशासन से लेकर शासन और प्रशासन भी अपराधियों के पक्ष में खड़े दिखायी देने लगे हैं । कल रात गुंडों की भीड़ ने न्याय के समर्थन में आंदोलनरत डॉक्टर्स पर आक्रमण कर दिया उन्हें जान बचाने के लिए भागना पड़ा । लड़की की हत्या के बाद भी उस चिकित्सालय के डॉक्टर्स की सुरक्षा के प्रति प्रशासन की उपेक्षा किस बात की घोषणा करती है !  

बंगाल के अपराधी संगठित और शक्तिशाली हैं, उनके सहयोगियों की भीड़ ने कल आधी रात को हॉस्पिटल में घुस कर तोड़-फोड़ की और अपराध के प्रमाण नष्ट करने के सभी यथासम्भव प्रयास किए । कौन है जो इस तरह, इतनी निर्भयता और दबंगई के साथ अपराध के प्रमाण नष्ट करता है ? कौन है इतना शक्तिशाली जिसे जघन्य अपराध करने के बाद भी किसी का डर नहीं है ? अराजकता की यह एक नयी परम्परा है जो बताती है कि पश्चिम बंगाल में शासन-प्रशासन जैसा कुछ भी है ही नहीं ।

अब तक तो यह स्पष्ट हो चुका है कि इस पूरी घटना में सत्ता और हॉस्पिटल प्रशासन ही संलिप्त नहीं है बल्कि डॉक्टर्स में भी कुछ विश्वासघाती लोग संलिप्त हैं । हो सकता है वहाँ पहले से ही कुछ अवैध गतिविधियाँ चलती रही हों जिनका विरोध विक्टिम लड़की द्वारा किया जाता रहा हो या उस पर भी उनमें संलिप्त होने के लिए दबाव बनाया जाता रहा हो और वह इसके लिए तैयार न हो रही हो । यदि ऐसा कुछ है तो यह चिकित्सा सेवाओं के लिए बहुत बड़ा कलंक है, इसकी गम्भीरता को तुरंत समझे जाने की आवश्यकता है । यह घटना प्याज की तरह कई आवरणों से घिरी हुयी लग रही है । हर आवरण सामने आते ही हृदय को दहला देता है, मस्तिष्क को झकझोर देता है ।

पश्चिम बंगाल में सी.बी.आई. पर हिंसक आक्रमण होता है, आई.डी. के अधिकारियों पर हिंसक आक्रमण होता है, किसी भी जाँच में अधिकारियों को सहयोग नहीं किया जाता, जय श्रीराम कहने पर पुलिस लाठीचार्ज होता है, उच्च न्यायालय के निर्णय को मानने से इंकार कर दिया जाता है, पुलिस और धार्मिक शोभायात्राओं पर पथराव होता है, सड़क पर खून बहा देने की धमकियाँ स्वयं मुख्यमंत्री द्वारा दी जाती हैं, कई स्थानों में दुर्गापूजा प्रतिबंधित रहती है जिसमें पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी जी का गाँव भी सम्मिलित रहा है, चुनाव में हिंसा होती है, चुनाव जीतने के बाद हर्षोन्माद में और भी हिंसा होती है, स्त्रियों को भीड़ के सामने भूमि पर पटक कर डंडे, हंटर और लातों से इस्लामिक तरीके से पीटा जाता है और संवेदनशून्य भीड़ मौन होकर देखती रहती है... यह कैसा बंगाल है, ये कैसे बंगाली मानुष हैं ?

गृहमंत्री जी, प्रधानमंत्री जी और राष्ट्रपति जी को पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए अभी कितनी और अराजकता एवं निर्भयाओं की प्रतीक्षा है ?

रविवार, 21 फ़रवरी 2021

ज़ेण्डर मूड से होते हुये...

     आज की समसामयिक चर्चा में “ज़ेण्डर मूड” (बिल्कुल ताजी परम्परा), “कटाक्ष में कुलबुलाती गंदी गालियाँ (Binge)”, “तैमूर का दीवाना मीडिया” (किस्मत हो तो तैमूर जैसी वरना ना हो) और “बंगाल गोया एक अलग मुल्क की हुंकार” जैसे विषयों को सम्मिलित किया जाना आवश्यक हो गया है ।

उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जैसे छोटे से शहर में किशोर-किशोरियों के मन-मस्तिष्क में छाये ज़ेण्डर मूड के नशे को देखकर मोतीहारी वाले मिसिर जी का चौंकना हम सबके लिये कान खड़े करने वाला है । यह विषय हमारे लिये भी बिल्कुल नया था इसलिये हमने मिसिर जी से ही पूछ लिया  – अब यह ज़ेण्डर प्रोनाउन और सेक्स एक्स्प्रेशन की कौन सी बला ले आये? उत्तर में मिसिर जी ने जो बताया उसने मुझे कुछ क्षणों के लिये चेतनाशून्य सा कर दिया ।

गोरखपुर वाले ज्ञानी पुरुष ओझा जी को भी नहीं पता कि स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और उभयलिंग के अलावा आजकल और भी बहुत से लिंग होने लगे हैं । हमारी नयी पीढ़ी की “टीन-टाक यूनीवर्सिटी” ने अब तक कुल 52 लिंग खोज निकाले हैं जिन्हें जानकर अर्धनारीश्वर भी चकित हुये बिना नहीं रहेंगे । हम इसके बारे में शीघ्र ही पृथक से चर्चा करना चाहेंगे, फ़िलहाल इतनी ही बात ...कि वाट्स-अप में हमारे सभ्य घरों के सभ्य बच्चे आजकल इस प्रकार से चैट करते हुये देखे जाने लगे हैं – “हाय! प्रिया! आम स्वीटी अ लिस्बियन । योर बॉडी इज़ वेरी अपीलिंग टु मी । आई लाइक यू । आर यू इंट्रेस्टेड टु हैव सेक्स विद मी?”

आगे बढ़ते हैं, कटाक्ष में कुलबुलाती गंदी गालियों की बौछार की ओर । यू-ट्यूब पर बिंज ने कुछ कटाक्ष श्रंखलायें प्रस्तुत की हैं । कटाक्ष होना चाहिये ...किंतु इसके लिये सोशल मीडिया पर इस तरह माँ-बहन की गालियों के बिना काम नहीं चल सकता क्या? आख़िर हम समाज और ख़ुद अपने प्रति भी ज़िम्मेदार कब बनेंगे? रिश्तों पर इस तरह कीचड़ पोतना किस संस्कृति का  प्रतीक है? यह कैसा क्रिटिक है? …और आप बड़े अहंकारपूर्वक स्वयं को प्रगतिवादी और क्रांतिकारी मानते हैं! मुझे ऐसी प्रगति और क्रांति पर शर्म आती है ।

ख़ैर इन्हें भी छोड़िये, ये कभी नहीं सुधरेंगे, आगे बढ़ते हैं, सैफ़ अली ख़ान के घर में एक और चिराग ने धमाकेदार इंट्री ले ली है । भारत का मीडिया नतमस्तक हुआ जा रहा है ...तैमूर का भाई तशरीफ़ लाया है ...गोया मुगल सल्तनत के वारिस ने हिंदुस्तान की सर-ज़मीं पर दस्तक दे दी हो । अब तैमूर के भाई की हर साँसउसकी शूशू ...उसकी जम्हाई ...उसकी आँखें ...उसके मुस्कराने और सोने जैसी और न जाने कैसी-कैसी ख़बरें आये दिन परोसी जाती रहेंगी । करीना कपूर और सैफ अली ख़ान के वारिसों से महत्वपूर्ण भारत में और कुछ भी नहीं है ।

और आज की आख़िरी बात ...जो अभी शुरू ही हुयी है ...कि बंगाल में चुनावी समर का रिहर्सल चालू है । पिछले लगभग दो दशक से ममता बनर्जी भारत में यह संदेश देने में सफल होती रही हैं कि वे भारत से अलग बंगाल की अपनी एक पृथक सत्ता बनाये रखने में अधिक विश्वास करती हैं और इसके लिये वे किसी भी सीमा तक गिर सकती हैं । ख़ून की नदियाँ बहा दूँगी ...ईंट से ईंट बजा दूँगी ...बंगाल की माटी बंगाल का मानुष ... बंगाल में बाहरी मानुष स्वीकार नहीं ...इस तरह की हुंकार हमें राजतंत्र की स्मृति दिलाती है जहाँ राजे-रजवाड़े केवल अपने अहं के लिये एक-दूसरे पर हमले करके ख़ून की नदियाँ बहाते रहे हैं । ओफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ ... यह महिला जिसे आप सब दीदी कहते हैं ...वास्तव में उसके लिए हमारे पास कोई सम्बोधन नहीं है । भारत की मुख्यधारा का विरोध करने वालों के लिये हमारे पास कोई सम्मानजनक शब्द हो ही नहीं सकता ।