वे नहीं
चाहते कि किसी जघन्य अपराधी को मृत्युदण्ड दिया जाय । उनका तर्क है कि जीवन अनमोल
है जो ईश्वर की देन है, हम जीवन उत्पन्न नहीं कर सकते तो हमें किसी का जीवन लेने
का अधिकार क्यों होना चाहिये ? ऐसा तर्क देने वालों में उन लोगों की संख्या अधिक
है जो मांसाहारी हैं और जीवहत्या के समर्थक हैं ।
समाज को
अधोगामी होने से बचाने के लिये शासन के माध्यम से अंकुश की आवश्यकता दुर्बलचरित्र
वाले मनुष्य के लिये एक अनिवार्य व्यवस्था है । न्याय व्यवस्था इसी समाज व्यवस्था
का भाग है जिसके लिये न्यायाधीश अधिकृत किया जाता है कि वह न्याय की परिधि में
अपने सम्पूर्ण विवेक का उपयोग करते हुये समाजव्यवस्था को निरंकुश हो जाने से बचाये
रखने के लिये उपयुक्त दण्ड सुनिश्चित करे
।
जहाँ तक
न्यायव्यवस्था द्वारा अपराधी को दी गयी मृत्यु का प्रश्न है तो हम जानना चाहते हैं
कि सीमा पर सैनिक हत्यायें क्यों करते हैं ? हर सैनिक अपनी मातृभूमि की रक्षा के
लिये लड़ता है ....वह किसी भी पक्ष का क्यों न हो उसे भी जीने का उतना ही अधिकार है
जितना कि एक सामान्य नागरिक को । दो देशों के सैनिक आपस में व्यक्तिगतरूप से शत्रु
नहीं होते, वे अपराधी भी नहीं होते, वे धरती पर बोझ भी नहीं होते .... बल्कि वे
अपने देश के लोगों के लिये उत्कृष्ट नायक होते हैं ..... फिर भी वे एक-दूसरे की
हत्या कर देते हैं, जो बच जाता है उसे हम सम्मानित करते हैं । एक युद्ध ....एक
मृत्युदण्ड, दो व्यवस्थायें ... दोनो में मनुष्य द्वारा मनुष्य की हत्या । एक
प्रशंसनीय, दूसरी विवादास्पद । युद्ध के लिये सहमति, मृत्युदण्ड के लिये असहमति ।
यह कैसा मानवीय चिंतन है ? यह कैसी व्यवस्था है ?
जघन्य
अपराधी का जीवन समाज, देश और मानवीयता के लिये कलंक है ..... बोझ है । वह समाज को दुःखी और पीड़ित करता है
फिर भी सहानुभूति का पात्र ?
एक
सैनिक की शहादत स्वागतेय है किंतु जघन्य अपराधी को दिया गया मृत्युदण्ड अमानवीय !
यह कैसा विद्रूप चिंतन है ?
समाज
अनुशासन से चलता है और अनुशासन के लिये कठोरता आवश्यक है । जघन्य अपराधी को
मृत्युदण्ड मिलना ही चाहिये । युद्ध राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं के अतिवाद और
राजनीतिज्ञों के अहंकार के परिणाम हैं ... इन्हें रोका जाना चाहिये । जो लोग
मृत्युदण्ड के विरोधी हैं उन्हें मानवीय आधार पर सैन्ययुद्धों के विरोध में
विश्वजनमत के लिये अपनी शक्ति का उपयोग करना चाहिये ।
हम
मृत्युदण्ड को एक अनुशासित और अपराधरहित समाज के लिये अनिवार्य आवश्यकता स्वीकार
करते हैं ।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, एक के बदले दो - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंदिनांक 03/08/2015 को आप की इस रचना का लिंक होगा...
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर...
आप भी आयेगा....
धन्यवाद...
जीवन बह्त खूबसूरत है
जवाब देंहटाएंहर हाल में और हरेक के लिये.