गुरुवार, 30 जुलाई 2015

शुक्लपक्ष- कृष्णपक्ष



आज दो नश्वर शरीरों को धरती ने अपनी गोद में चिरनिद्रा के लिये स्थान दिया । एक चर्चित संत था और दूसरा जघन्य अपराधी । एक जीवन भर देश का बोझ उठाता रहा, दूसरा जीवन भर मानवीयता के लिये बोझ बना रहा ।

दोनो की आत्माओं ने अपनी-अपनी कर्मगति के अनुरूप दुनिया को अलविदा कहा ।
एक की अंतिम यात्रा को परमगति कह गया, दूसरे की यात्रा को मृत्युदण्ड ।
दोनो की पूरे देश में चर्चा होती रही- एक की प्रशंसा के लिये, दूसरे की निन्दा के लिये ।

संत ए.पी.जे. अब्दुल क़लाम को विद्यादान करते समय विद्या की देवी सरस्वती ने चिर अवकाश के लिये अपने पास बुला लिया । जबकि मुम्बई बम धमाकों के जघन्य अपराधी याक़ूब मेमन को नागपुर के केन्द्रीय कारावास में फांसी से लटकाया गया ।

अपने भौतिक जीवन के अंतिम क्षणों में संत कलाम शिलॉंग में छात्रों के बीच थे जबकि मुम्बई बम धमाकों का जघन्य अपराधी याक़ूब मेमन कारावास में अपराधियों के बीच ।

एक के अवसान पर पूरा देश रोया, दूसरे की मृत्यु पर पूरे देश ने चैन की सांस ली । एक ने अपनी यात्रा शांति और प्रसन्नता के साथ पूरी की, दूसरे ने अपनी यात्रा विवाद और दुःख के साथ पूरी की ।

अपराधी के मृत्यु दण्ड पर सियासत ग़र्म हुयी ...... विवाद हुआ ........ कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी अपराधी की ज़िन्दगी के प्रति मोहासक्त हुये .....और उसे एक राष्ट्रीय विवाद बनाने की निकृष्ट कुचेष्टा में अपने जीवन का बहुमूल्य समय व्यर्थ करते रहे ।
संत के देहावसान पर सियासत ख़ामोश थी ......और लोग पार्थिव शरीर पर पुष्प अर्पित करते रहे । अपराधी की फांसी पर सियासत ग़र्म होती रही ....ख़ूब ग़र्म होती रही और कई सफेदपोश अपराधी एक कालेपोश अपराधी की ज़िन्दगी बचाने की ज़द्दो-ज़हद में अपनी ज़िन्दगी को बुरी तरह कलंकित करते रहे ।

इस बीच सूत्रधार अपने कार्य में व्यस्त था, उसने नट-नटी से कोई चर्चा नहीं की । वे दोनो उदास बैठे थे । तभी नटी ने नट से जिज्ञासावश पूछा – “क्या कलियुग अपने शीर्ष पर है”। उदास नट ने एक गहरी साँस लेते हुये उत्तर दिया – “अभी नहीं ..... अभी तो भारत को और भी दुर्दिन देखने शेष हैं”। नटी ने व्यथित होकर कहा – “शुभ-शुभ बोलो न ! मुझे भयभीत क्यों कर रहे हैं”। शून्य में अपनी आँखें गड़ाये नट ने कहा – “जब राष्ट्र के कर्णधारों में अपराधी मानसिकता का बाहुल्य हो तो शुभ की कल्पना भी कैसे की जा सकती है नटी !”


रंगमंच पर आज लोगों ने यवनिका गिरने ही नहीं दी । कहा गया कि बहस अभी ज़ारी रहेगी .... यह कि दण्ड में मृत्यु का प्रावधान होना चाहिये या नहीं ....    

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