गुरुवार, 24 मई 2012

क्यों राम के सब काज हैं?


साँझ तो ठहरी है कबसे, रात भी आई नहीं।
भोर की करते प्रतीक्षा, बीतते युग आज हैं॥

नर्तकी ने मूर्ति में पायी शरण होकर विवश।
हैं पाँव में घुंघरू बंधे, बजते नहीं पर साज हैं॥

कर रहे अवतार की, फिर से प्रतीक्षा देश में।
कर्म से हैं सब विमुख, क्यों राम के सब काज हैं?  

वंचकों के हाथ में, हैं सूत्र सत्ता के थमे।
खोद डालीं सारी कब्रें, मिलते नहीं पर राज हैं॥

वो उड़ाते हैं जो पंछी, अब दूत हैं ना शांति के।
वेष कपोतों के धरे, उड़ते हुये सब बाज हैं॥

चोर घर-घर में घुसे, बिख़रे हुये असबाब हैं।
ताज़ लेकर घूमते, गर्दभ बड़े नायाब हैं॥

प्राण हैं सहमे हुये, कुचले हुये कुछ ख़्वाब हैं।
इश्क़ से है इश्क़ हमको, इश्क़ में बरबाद हैं॥

9 टिप्‍पणियां:

  1. सभी शेर अर्थपूर्ण हैं. पिछले पोस्ट की परिचर्चा से उत्पन्न इस शेर के भाव हमारी सोच को जागृत कर रहे...

    कर रहे अवतार की, फिर से प्रतीक्षा देश में।
    कर्म से हैं सब विमुख, क्यों राम के सब काज हैं?

    शुभकामनाएँ.

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  2. अवतार भी अब है सशंकित
    क्या करें क्या ना करें
    चीरविहीन द्रौपदी की लाज अब वो क्या रखे !

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  3. वो उड़ाते हैं जो पंछी, अब दूत हैं ना शांति के।
    वेष कपोतों के धरे, उड़ते हुये सब बाज हैं॥

    चोर घर-घर में घुसे, बिख़रे हुये असबाब हैं।
    ताज़ लेकर घूमते, गर्दभ बड़े नायाब हैं॥

    सटीक और लाजवाब अभिव्यक्ति

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  4. प्राण हैं सहमे हुये, कुचले हुये कुछ ख़्वाब हैं।
    इश्क़ से है इश्क़ हमको, इश्क़ में बरबाद हैं॥

    बहुत सुंदर सटीक अभिव्यक्ति,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,

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  5. गड्ढे भर पानी को

    नदी समझ

    समुंदर में मिलने को बेताब है ।

    पता नहीं ये पंक्तियाँ कैसे जुड़ गई ?

    आपका हरेक शेर अक अर्थ दे रहा है ।लाजवाब ।

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  6. देश की इस दुर्दशा पर सारी जनता मौन है,
    घोर कलियुग आ गया या उसके ही आगाज़ हैं!
    कमाल है डॉक्टर साहब!!

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  7. प्राण हैं सहमे हुये, कुचले हुये कुछ ख़्वाब हैं।
    इश्क़ से है इश्क़ हमको, इश्क़ में बरबाद हैं॥
    ....हरेक शेर लाज़वाब हैं लेकिन मुझे तो यह वाला सबसे अच्छा लगा। खासकर दूसरा मिसरा...

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  8. कटु सत्य को प्रकट करती बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  9. ताज़ लेकर घूमते, गर्दभ बड़े नायाब हैं॥
    इसी गदह पचीसी में देश रसातल में जा रहा है।

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.