मैं आम नहीं कुछ ख़ास नहीं, रुक कर पल भर फिर चल दूँगा
मैं आम नहीं
जो ओढ़ लूँ
नयी चादर
हर पतझड़ के बाद
और हो जाऊँ ख़ास
कुछ ख़ास लोगों के लिये।
मैं तो पौधा हूँ
नन्हा सा धान का
जो नहीं ओढ़ता
नई-नई चादरें
बस
सौंप कर
सुनहरी बालियाँ
हर आम के लिये
हो जाता हूँ विदा
सदा के लिये।
छोटी सी जिंदगी मगर मुकम्मल ज़िन्दगी...
जवाब देंहटाएंअनु
कुछ आम अपने आप में ही खास होते हैं.
जवाब देंहटाएंअपना अपना चरित्र, अपनी अपनी प्रकृति!
जवाब देंहटाएंhttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/12/2012-11.html
जवाब देंहटाएंमैं तो पौधा हूँ
नन्हा सा धान का
जो नहीं ओढ़ता
नई-नई चादरें
बस
सौंप कर
सुनहरी बालियाँ
हर आम के लिये
हो जाता हूँ विदा
सदा के लिये।
आहाऽऽहा… … …
बहुत सुंदर कविता है
आदरणीय कौशलेन्द्र जी !
आपकी लेखनी वाकई लाजवाब है ! क्या बात है !
बहुत खूबसूरत !
शुभकामनाओं सहित…