हो जाता हूँ विदा सदा के लिये। आहाऽऽहा… … … बहुत सुंदर कविता है आदरणीय कौशलेन्द्र जी ! आपकी लेखनी वाकई लाजवाब है ! क्या बात है ! बहुत खूबसूरत ! शुभकामनाओं सहित…
टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.
छोटी सी जिंदगी मगर मुकम्मल ज़िन्दगी...
जवाब देंहटाएंअनु
कुछ आम अपने आप में ही खास होते हैं.
जवाब देंहटाएंअपना अपना चरित्र, अपनी अपनी प्रकृति!
जवाब देंहटाएंhttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/12/2012-11.html
जवाब देंहटाएंमैं तो पौधा हूँ
नन्हा सा धान का
जो नहीं ओढ़ता
नई-नई चादरें
बस
सौंप कर
सुनहरी बालियाँ
हर आम के लिये
हो जाता हूँ विदा
सदा के लिये।
आहाऽऽहा… … …
बहुत सुंदर कविता है
आदरणीय कौशलेन्द्र जी !
आपकी लेखनी वाकई लाजवाब है ! क्या बात है !
बहुत खूबसूरत !
शुभकामनाओं सहित…