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फ़रवरी 2015 ; तृतीय दिवस .... उजले-उजले
ये अंधियारे
उजालों
को तलाशते दीपों की मौन यात्रा
आज
दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीज़े आने वाले थे इसलिये सुबह से ही गहमा गहमी थी और
दिल्ली की ज़िद्दी ठंड तनिक सहमी-सहमी सी थी । आनन्द ज़ल्दी ही तैयार होकर उड़नदस्ते
की गाड़ी में बैठकर उड़न छू हो गये, उन्हें दिल्ली की सड़कों पर इधर-उधर आवारागर्दी
करते हुये चुनाव नतीज़ों से निकलने वाली राजनीतिक ग़र्मी पर सरकारी नज़र रखनी थी ।
उधर इण्डियन एक्सप्रेस से अजय शंकर ने सूचना दी कि वे चुनाव नतीज़ों पर नज़र रखने की
वज़ह से हमसे मिलने नहीं आ सकेंगे । एक दिन पहले ही संघ द्वारा बीजेपी की सम्भावित
हार की स्वीकारोक्ति के समाचार टीवी चैनल्स प्रसारित कर चुके थे जिसके कारण आज कमल
के परागकण परिपक्व होकर मधुमक्खियाँ को रिझाने से मना करते रहे । इधर मधुमक्खियों
को निराश होना पड़ा तो उधर मुझे भी अकेले ही मण्डीहाउस के लिये प्रस्थान करना पड़ा ।
न्यूयार्क
के थियेटर निर्देशक क्रिस्टोफ़र के साथ रंगकर्मी
अंतर्मुख
में आज भीड़ अधिक थी । हमें बताया गया कि मिस्टर क्रिस्टोफ़र एयरपोर्ट से आते-आते
दिल्ली के राजमार्ग पर निरंकुश ‘जाम’ के शिकार हो चुके हैं इसलिये कुछ देर और
प्रतीक्षा करनी पड़ेगी । अंततः मिस्टर क्रिस्टोफ़र तशरीफ़ लाये, कार्यक्रम शुरू हुआ ।
उन्होंने अपने निर्देशिकी अनुभव बाँटे और लड़कियों ने उनसे ढेरों सवाल पूछे ।
पुरुष की
कामाग्नि में भस्म होती स्त्री देह की मुक्ति पर विमर्श
अगले
सत्र के लिये हमें बहुमुख जाना पड़ा । विषय गम्भीर था और स्त्री-पुरुष वर्चस्व के
युद्ध में आदिकाल से उलझा हुआ भी । स्त्रियों के कामसंबन्धों, कामस्थितियों और कामविकृतियों
जैसे उपेक्षित विषय पर चिंता प्रकट करते हुये एन.एस.डी. के मंच पर स्त्री चिंतकों
की पहल ने आधी दुनिया की वैचारिक करवट और अभिव्यक्ति के उपयोग को मुक्त भाव से प्रमाणित
किया । प्रॉस्टीट्यूशन, लिस्बियनिज़्म, होमोसेक्सुअलिटी, लिव इन रिलेशनशिप के
साथ-साथ जिगोलोज़ पर भी खुल कर चर्चा हुयी ।
चकलाघर
जैसी अस्वीकृत संस्थाओं द्वारा पुरुषों को सहज उपलब्ध एक्स्ट्रामैरिटल सेक्स
सुविधाओं की मौन सामाजिक स्वीकृति के समानांतर जिगोलो की सेवाओं पर भी चर्चा हुयी
। इस सबके बीच विमर्श के दौरान यह बात भी उभर कर सामने आयी कि आम घरेलू महिलाओं के
सेक्सुअल ऑर्गेज़्म का संवेदनशील विषय पुरुषों की उपेक्षापूर्ण सोच और स्त्रियों की
स्वाभाविक झिझक के बीच दब कर रह गया है जिसके दुष्परिणाम भोगने के लिये स्त्रियाँ
ही बाध्य होती हैं ।
अंतिम
सत्र में ऊषा गांगुली ने नौटंकी जैसी लुप्त होती लोककलाओं पर चिंता व्यक्त की ।
अजय मण्डावी ने माओवाद के शिकार हुये लोगों की स्थिति पर चर्चा करते हुये कला के योगदान
का पक्ष प्रस्तुत किया । अंतिम कार्यक्रम मेरा था –“उजले-उजले ये अँधियारे” जिसमें
पॉवर प्रज़ेण्टेशन के माध्यम से “अपलिफ़्टमेण्ट ऑफ़ ट्राइब्स थ्रू आर्ट, लिटेरेचर
एण्ड थियेटर” विषय पर मैंने
अपने विचार प्रस्तुत किये ।
बस्तर
में माओवादी हिंसा से बहते ख़ून की लालिमा से जूझती
कला की
अपनी शांतिपूर्ण जंग के अनुभव बताते हुये कांकेर गौरव अजय मण्डावी
एन.एस.डी.
के भव्य परिसर में एक इतिहासकार एक कलाकार
छत्तीसगढ़
के पर्यटन को प्रमोट करने के विषय पर निर्देशक डॉ. योगेन्द्र चौबे से
विचार-विमर्श
करते महाराजा आदित्य प्रताप देव
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार को
जवाब देंहटाएंदर्शन करने के लिए-; चर्चा मंच 1893
पर भी है ।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!