दर्जी
राजा ने
एक दर्जी को बुलाया
और
उसे
हॉस्पिटल
में होने वाली सर्जरी के लिये
नियामक
कानून बनाने को कहा ।
राजा को
विश्वास था
कि कपड़े
सिलने में दक्ष दर्जी के बनाये कानूनों से
अब
सर्जरी के दौरान कोई मौत नहीं होगी ।
राजा का
विश्वास सच हुआ
सर्जरी
के दौरान
वाकई
अब किसी
की मौत नहीं होती,
..........
..........
नियामक
कानून लागू होने के
दूसरे
दिन ही
सर्जरी
दम तोड़ चुकी थी ।
कला
वे बोनसाई में दक्ष हैं
अब
बढ़ते पौधों को
अपनी मर्जी से नहीं
आदमी की मर्ज़ी से बढ़ना होता है
तरबूज की शक्ल अब गोल नहीं होती
वे अण्डाकार होते हैं
या फिर चौकोर
वे
इसे कला कहते हैं ।
नयेपन के ज़ुनून से
पौधे पीड़ित हैं
और
तरबूजों ने
अब मुस्कराना छोड़ दिया है ।
फूलों के खिलने पर ....
ख़ुश्बू के फैलने पर ....
झरनों के झरने पर .....
हवा के बहने पर .....
थोपे गये नियमों से
बेहद ख़फ़ा है
कला ।
मैंने सुना है
कि रावण ने बाँधकर रखा था
काल को
अपने पलंग की पाटी से ।
सम्यक एवम् सटीक प्रस्तुति । बधाई ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शकुंतला जी !
हटाएंबहुत ही गहरी प्रतिक्रियाएँ, जो अपनी संक्षिप्तता के कारण चिंतन को उत्प्रेरित कर रही हैं।
जवाब देंहटाएंअब ये केवल प्रतिक्रियाएँ ही नहीं रहीँ, सुन्दर रचनाएँ हो गई हैं।
वैसे हर एक सुन्दर रचना एक अच्छी प्रतिक्रिया ही होती है।
या इसे ऐसे कहें : एक अच्छी रचना प्रतिक्रियात्मक होती है।
जी प्रतुल जी ! मेरी कवितायें प्रायः प्रतिक्रियात्मक ही हुआ करती हैं । किसी रचनाकार की यही तो रचनाधर्मिता है ।
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