रति
वर्जना नहीं, अनिवार्य है सृजन के लिये । रतिक्रीड़ा से कोई विरत नहीं, यह जितना
अद्भुत् है उतना ही अपरिहार्य भी । जब प्रथम् बार यदृच्छा का स्पन्दन हुआ तो
ब्रह्म जाग्रत होते ही आदिरति के उपक्रम में प्रवृत्त हुये ।
पिछली
बार जब ब्रह्मरात्रि का अवसान हुआ तो भोर होते ही पूर्णमदः ने एक स्पन्दन का अनुभव
किया । यह स्पन्दन और कुछ नहीं, यदृच्छा थी, ब्रह्म का महत् तत्व था जिसे आपने
संज्ञा दी “अहं” । ब्रह्म के जागरण के साथ ही अहं की तरह काल भी अपने अस्तित्व में
आया । काल को दिक् की अपेक्षा थी, दिक् के लिये सृष्टि की आवश्यकता थी । अस्तु
आदिब्रह्म को सृष्टि के लिये प्रवृत्त होना पड़ा । ब्रह्म ने अभिलाषा की – “एकोऽस्मि
बहुस्यामः”।
“बहु”
होने के लिये विवेक की आवश्यकता थी, ब्रह्म विवेकी हुआ । विवेक ने स्वीकार और
निषेध को अपना सहयोगी नियुक्त किया । रतिक्रीड़ा के लिये स्वीकृति आवश्यक थी ।
ब्रह्म
के विवेकी होते ही विविधता प्रकट हुयी, विविधता से तन्मात्रायें (बोसोन यथा- फ़ोटॉन,
ग़्ल्यूऑन, मेसॉन आदि) अस्तित्व में आयीं । वे प्रसन्न थीं और रति के लिये उत्सुक
भी । तन्मात्राओं के द्रुत नृत्य से आकर्षण उत्पन्न हुआ, ब्रह्म आकर्षित हुआ और
उसने तन्मात्राओं से रतिक्रीड़ा की । ब्रह्म विवेकी न हुआ होता तो तन्मात्रायें
अस्तित्व में न आ पातीं, तन्मात्रायें अस्तित्व में न आ पातीं तो ब्रह्म रति में
प्रवृत्त न हो पाता । ब्रह्म की यह दीर्घ रति है जो उसके जागने से लेकर सोने तक
निरंतर चलती रहती है । आदिब्रह्म की आदिकामाग्नि ने उसे चिर आशिक़ बना दिया, ब्रह्म
अपनी रचनाओं से रति करता है, रति से पञ्चमहाभूत उत्पन्न हुये, पञ्चमहाभूतों की
पारस्परिक रति से फ़र्मियॉन्स उत्पन्न हुये और इलेक्ट्रॉन, पॉज़िट्रॉन, प्रोटोन, न्यूट्रॉन,
न्यूट्रिनो, बेरियॉन आदि ब्रह्म के विविध स्वरूप अस्तित्व में आये ।
किसी रसिक
ने परिहास किया – “ओह ! तो ब्रह्म ने अपनी ही पुत्री से सम्भोग किया !” जिनके लिये
केवल अभिधा शक्ति ही ग्राह्य है वे ब्रह्म को बलात्कारी मान बैठे... ठीक अपनी तरह,
जो अज्ञानवश अपनी ही बुद्धि से बलात्कार करते रहने के अभ्यस्त हैं ।
परमाणुओं का विवाह और इलेक्ट्रॉन्स का
लास्य नृत्य...
पिता ने
पुत्री का विवाह किया, वह ससुराल चली गयी, देने वाला पिता अब निगेटिव हो गया है ।
पति ने नवविवाहिता का पाणिग्रहण किया, वह पॉज़िटिव हो गया... किंतु दाता अकिंचन हो
गया ! इस विवाह का हर कोई साक्षी है । इलेक्ट्रॉन का एनर्जी स्टेट पॉज़िटिव है,
दूसरों को एनर्जी देकर उसका इलेक्ट्रिक चार्ज़ निगेटिव हो जाता है । प्रोटॉन का
एनर्जी स्टेट निगेटिव है, दूसरों से एनर्जी लेकर उसका इलेक्ट्रिक चार्ज़ पॉज़िटिव हो
जाता है । अद्भुत् !
जब
निर्गुण ब्रह्म सगुण ब्रह्म के रूप में अवतरित हुआ तो उसे मात्रा की आवश्यकता हुयी
थी । ब्रह्म ने मात्रा को उत्पन्न किया, गुण और मात्रा का फ़्यूज़न हुआ । यह
क्वार्क्स थे जो जन्म लेते ही नृत्य करने लगे । नृत्य प्रारम्भ हुआ तो लास्य उपजा,
लास्य उपजा तो संघात हुआ, राग हुआ... ईर्ष्या भी हुयी... जड़ता भी हुयी । आदि
शक्तियाँ प्रचण्ड संघात से रतिक्रीड़ा में लिप्त हुयीं ।
ब्रह्म
की रास लीला (रहस्य लीला) अद्भुत् है, वह अपनी ही रचनाओं से रति करता है । रति
उसकी विवशता है, सृष्टि की अपरिहार्य आवश्यकता है । प्रोटोन्स बड़े रसिक हैं, उनका
सेल्फ़ ग्रेविटेशनल फ़ोर्स इलेक्ट्रॉन्स को दीवाना बना देता है । वे उन्मत्त भाव से
प्रोटोन्स के चारो ओर चिर लास्यनृत्य में प्रवृत्त होते हैं गोया कृष्ण को घेर कर
नृत्य में लीन हों गोपियाँ । ब्रह्म का प्रथम् भौतिक अस्तित्व परम अणु के रूप में
प्रकट हुआ । प्रारम्भ में परमाणु उदास थे, वे बड़ी व्यग्रता से ब्रह्माण्ड में
इतस्ततः भ्रमण करने लगे । ब्रह्म ने अपने विवेक से इसका समाधान पूछा तो उत्तर मिला
कि परम अणु अन्य परम अणुओं से रति के अभिलाषी हैं । ब्रह्म ने स्मित हास्य से
परमाणुओं को रति की अनुमति दी, परमाणुओं ने परस्पर विवाह किये । विवाह के पश्चात्
एक परमाणु के इलेक्ट्रॉन्स को दूसरे परमाणु के अन्य इलेक्ट्रॉन्स से समझौता करना
पड़ा । मानव समाज में यह प्रथा आज भी चल रही है, पटरानियों को आपस में समझौता करना
ही पड़ता है ।
परमाणु
रति में रत हुये तो अणुओं का जन्म हुआ । परमाणु की तरह अणु भी गुरुता की अभिलाषा
में इतस्ततः नृत्य करने लगे, तुम इसे ही तो ब्राउनियन मूवमेण्ट पुकारते हो ।
अणु भी
रति के अभिलाषी हो रति में प्रवृत्त हुये तो कण और विभिन्न कम्पाउण्ड्स बने । एक
ब्रह्म बड़ी तीव्रता से बहु होता जा रहा था । ब्रह्म का विस्तार हुआ और एक विविधता
सम्पन्न ब्रह्माण्ड अस्तित्व में आ गया ।
किंतु रेण्डम
नहीं है ब्राउनियन मूवमेण्ट । ब्रह्म जटिल है, ब्रह्म की सृष्टि जटिल है, उसका
जागरण और शयन भी जटिल है... यह जटिलता सुनिश्चित् है, सुनिर्धारित है । तभी तो मैं
ब्राउनियन मूवमेण्ट को रेण्डम नहीं स्वीकार कर पाता । यह जो रेण्डमनेस है वह हमारी
अज्ञानता है । अणुओं के नृत्य का यह पैटर्न समझना होगा आपको ।
शिव
कल्याण है, शिव सृष्टि है, शिव नृत्य है, शिव जागरण है, शिव शयन है ।
उमा
ऊर्ध्वशक्ति है, शक्ति के अभाव में शिव शव है । उमा परमाणु की पोटेंशियल एनर्जी
है, शिव का संयोग होता है तो पोटेंशियल एनर्जी कायनेटिक एनर्जी बन जाती है । शिव
नृत्य करते हैं तो ऊर्जा उत्पन्न होती है, उस ऊर्जा से ही तो ब्रह्म मैटर बनकर साकार
हो पाता है
यह उमा
है जो शिव को ताण्डव नृत्य के लिये प्रेरित करती है । शिव जब लास्य ताण्डव नृत्य
करते हैं तो सृष्टि अस्तित्व में आती है, और जब वे रुद्र ताण्डव नृत्य करते हैं तो
सृष्टि ब्रह्म को समर्पित होती है । तुम इसे प्रलय और महाप्रलय जान कर भयभीत होते
हो, किंतु यह भूल जाते हो कि दिन भर के नृत्य और सृष्टि के पश्चात् यह उनके शयन का
काल है । ब्रह्म का जागरण और शयन एक अनिवार्य प्रक्रिया है, शाश्वत और सुनिश्चित्
।
गहन विवेचन - लोग प्रतीकों का अभिधात्मक अर्थ निकाल कर गलत धारणायें बना लेते हैं.
जवाब देंहटाएंजी ! भारतीय दर्शन और प्रतीकों को समझने में सारी समस्या यहीं से तो प्रारम्भ हो जाती है । तनिक गहरायी में जाते ही सारे रहस्य स्पष्ट होने लगते हैं ।
हटाएंजी ! भारतीय दर्शन और प्रतीकों को समझने में सारी समस्या यहीं से तो प्रारम्भ हो जाती है । तनिक गहरायी में जाते ही सारे रहस्य स्पष्ट होने लगते हैं ।
हटाएंधन्यवाद बन्धु !
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