समाज में
असमानता थी
समानता के लिये
आरक्षण की ज़रूरत
थी ।
हो गया आरक्षण
लोग होने लगे
विकसित
छह दशक बाद
हो गया विकास
मच गयी होड़
चीखने लगे लोग
हम भी विकास
करना चाहते हैं
विकास के लिये
पिछड़ा बनना चाहते हैं ।
बाम्हन बोला...
राजपूत बोला...
बनिया बोला...
हमें नहीं रहना
अगड़ा
हमें हरिजन बना
दो
हरिजन बोला
हमें दलित बना
दो
दलित बोला
हमें महादलित
बना दो
महादलित बोला
हमारे लिये एक
नयी जाति बना दो
जो सबसे ज़्यादा
गिरी हुयी हो
हमारा नाम
सबसे घृणास्पद
वाला होना चाहिये
जैसे हगूड़ा या घास-कूड़ा
या फिर भेड़िया
या कुत्ता
नाम सबसे घटिया
हो अलबत्ता
विकास के लिये
बेहद ज़रूरी है
आरक्षण हमारी
मज़बूरी है
इसीलिये
दबे-कुचले, दीन-हीन बनने की
होड़ है
हंगामा है
आन्दोलन है
आग है
जुलूस है
भीड़ है
सड़क पर कार रोक कर
लड़कियों का बलात्कार है
दीन-हीन, दबे-कुचले बनने की
जबरई है
ग़रीब बनने की
तमन्ना है
ताकि कर सकें विकास
और बन जायें ख़ास ।
जो ऊपर जाता है, वो एक दिन नीचे भी आता है... एक अवधारणा, जिसका उद्देश्य था ऊर्ध्वगमन के माध्यम से विकास... किन्तु अब जो हो रहा है वो है अधोगमन की होड़... !
जवाब देंहटाएंअपने अनोखे अन्दाज़ में आपकी बात ज़बरदस्त चोट करती है कौशल भैया!!
धन्यवाद भइया जी !
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