“जीवन पापमय है और
मृत्यु पापमुक्त” – यह जीवन दर्शन स्थापित किया है समाचार पत्रों में प्रकाशित वक्तव्यों,
संपादकीय आलेखों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने ।
प्रजावत्सल नेता जी
अपनी जनता को बिलखता हुआ छोड़कर चले गये । प्रजा उनके अंतिम दर्शन कर सके इसलिये
सहृदय नेता जी जाते-जाते बेनामी सम्पत्तियों के साथ-साथ अपना पार्थिव शरीर भी यहीं
छोड़ गये । पार्टी कार्यकर्ताओं ने नेता जी की महानता के कसीदे पढ़े तो विरोधियों ने
होड़ लगाते हुये उन्हें ईश्वरीय गुणों से महिमामण्डित करना शुरू कर दिया । समाचार
प्रकाशित हुआ, लोगों ने विरोधी नेता का वक्तव्य पढ़ा – “राष्ट्रीय राजनीति में
पिछले चालीस साल से सितारे की तरह चमकते रहने वाले फलाने राजनेता की मृत्यु से देश
की अपूरणीय क्षति हुयी है । देश के राजनीतिक परिदृश्य में ऐसी शून्यता व्याप्त हो
गयी है जिसे अगली कई शताब्दियों तक भरा नहीं जा सकेगा । हमने एक ऐसे राजनेता को खो
दिया है जो जीवन भर देश के लिए जिया और देश को दिशा देता रहा । फलाने जी अपने मधुर
व्यवहार से देश की जनता के दिलों पर राज करने के लिये जाने जाते रहे” ।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया
ने प्रजा को दिखाया – “यह देखिये, फलाने जी के पार्थिव शरीर के दर्शनों के लिये किस
तरह पार्टी कार्यकर्ताओं की भीड़ उमड़ रही है । भीड़ को नियंत्रित कर पाना पुलिस के
लिये मुश्किल होता जा रहा है । ...और यह देखिये ... लाठी चार्ज । पुलिस को लाठी
चार्ज करना पड़ रहा है ...लोग इधर-उधर भाग
रहे हैं ...लेकिन पलट कर अपने प्रिय नेता के अंतिम दर्शनों के लिये वापस भी आ रहे
हैं ...इससे फलाने जी की लोकप्रियता का प्रमाण मिलता है”।
ये वे समाचार पत्र और
टी.वी. चेनल्स हैं जो फलाने जी की मृत्यु के ठीक पहले तक उन्हें इस धरती का सबसे
बड़ा पापी, भ्रष्ट, घूसखोर, घोटालेवाज और जनता की गाढ़ी कमाई को लूट-लूट कर स्विस
बैंक में अपना ख़जाना बढ़ाने वाला जोंक सिद्ध करने में रात-दिन एक किये रहते थे । फलाने
जी के मरने के ठीक पहले तक जो विरोधी नेता जितना कठोर, आक्रामक और पोल-खोल अभियान
में दक्ष होता वही नेता फलाने जी के मरने के बाद आश्चर्यजनकरूप से उतने ही अधिक
विनम्र भाव से फलाने जी की महानता और दिव्यता के बारे में ऐसे-ऐसे रहस्योद्घाटन
करने लगता कि भक्तवत्सल प्रजा की आँखों से अश्रुधारायें बहने लगतीं और उन्हें लगने
लगता कि उन्होंने वाकई एक ईश्वर को खो दिया है और अब वे सब अनाथ हो गये हैं ।
डॉक्टर दागी ने दशकों
से चले आ रहे ऐसे निर्लज्ज तमाशों और रुदन प्रतिस्पर्धाओं को देखने के बाद जो
तथ्यात्मक निष्कर्ष निकाला वह इस प्रकार है – “हमारा सच्चा राजनीतिक चरित्र देखना
हो तो किसी राजनेता की मृत्यु के बाद तीन-चार दिनों तक चलती रहने वाली राजनीतिक
गतिविधियों और वक्तव्यों को देख लीजिये”।
डॉक्टर दागी अपनी बात
तथ्यात्मक और घोषणात्मक तरीके से कहने के अभ्यस्त हैं । नेताओं की मौत पर देश भर
में उमड़ पड़ने वाले पेशेवर रुदालों की निर्लज्ज नौटंकी अब उन्हें परेशान नहीं करती
। वे बताते हैं – “विरोधी खेमे के नेता की मौत पर नेतारुदन और इस रुदन को
हाईप्रोफ़ाइल बना देने में निपुण टी.आर.पी. लोभी मीडिया के लिये ऐसी नौटंकी करना
उनके पेशे का एक हिस्सा है । इसे भावनाओं या पीड़ा से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिये यह
तो राजनीतिज्ञों की आपसी लोकनीति है । यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो कल उनकी मौत पर
कौन रोयेगा, कौन उन्हें ईश्वरीय गुणों से भरपूर एकमेव नेता के रूप में महिमामण्डित
करेगा! मंच पर प्रशंसकों से घिरे रहने वाले नेता अपनी प्रशंसा के इतने एडिक्ट हो
चुके होते हैं कि अपनी मौत के बाद भी वे यह नशा एक बार और करके ही रुख़सत होने का
मोह छोड़ नहीं पाते”।
चित्रगुप्त के दरबार
में रुदालों की पेशी का एक किस्सा सुनाते हुये डॉक्टर दागी ने रहस्योद्घाटन किया –
“मृत्योत्तर प्रशंसा” की होड़ के लोकाचार में दक्ष विपक्षी नेताओं में से एक नेता
की आज भोरे-भोरे मृत्यु हो गयी । सदा गरजते रहने वाले बादल रुदाले बनकर घिर आये और
धरती पर ‘मृत्योत्तर नेताई परम्परा’ निभाई जाने लगी । उधर नेता जी की आत्मा की
चित्रगुप्त के दरबार में पेशी हुयी । चित्रगुप्त ने पूछा – “आप अपने विरोधी नेताओं
को पापी और पाखण्डी सिद्ध करने में जीवन भर लगे रहे, फिर उनकी मृत्यु होते ही अचानक
उन्हें देवतुल्य सिद्ध करने के अभियान में लग जाते रहे । किया जा चुका कर्म तो परिवर्तनशील
नहीं हुआ करता । हम जानता चाहते हैं कि जीवितावस्था का पाप मृत्यु होते ही पुण्य
में कैसे बदल दिया करते हैं आप ? इन वक्तव्यों में सच कौन सा होता है, जीवितावस्था
में लगाए गये आरोप या मृत्योत्तर पढ़े जाते रहे तारीफ़ के कसीदे ?” नेतात्मा ने
उत्तर दिया – “नेता कभी झूठ नहीं बोला करते, नेता अपने वर्तमान में जीता है ।
तत्कालीन परिस्थितियों की माँग के अनुसार दिया गया कोई भी वक्तव्य सत्य ही होता है
। जब हमने अपने विरोधी को पापी कहा तब वह उसकी जीवितावस्था का सत्य था, जब हमने
उसे देवतुल्य कहा तब वह उसकी मृत्यु के पश्चात का सत्य था । मृत्यु के पश्चात
नश्वर देह की तरह पाप भी मिट्टी हो जाते हैं, तब जो शेष बचता है वह सिर्फ पुण्य ही
होता है । हे चित्रगुप्त जी ! हमने जब-जब जो भी कहा वह सब सत्य ही था उसमें असत्य
कुछ भी नहीं था । अस्तु, मेरे स्पष्टीकरण से संतुष्ट होते हुये मुझे इस आरोप से
मुंचित करने की कृपा करें”।
डॉक्टर दागी मानते हैं
कि जिन शक्तियों पर हमारा वश नहीं होता उन्हें नमन अवश्य करना चाहिये, फिर चाहे वे दिव्य शक्तियाँ हों या आसुरी । चलने
से पहले डॉक्टर दागी हाथ जोड़कर, आँखें बन्द कर बुदबुदाये –
“अहो पाप ! अहो नौटंकी ! आप अद्भुत हैं । इस भवसागर में मिथ्या प्रशंसारूपेण
संस्थित पाप और नौटंकी शक्तियों को मेरा तीन बार नमन है”।
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