शनिवार, 11 अप्रैल 2020

समुद्र नहीं, नदी की तरह होता है धर्म...


मनुष्य के लिए धर्म का अस्तित्व तभी तक है जब तक वह जीवित है, मनुष्य के मरते ही उसका धर्म भी समाप्त हो जाता है । हमारा जीवन नदी की तरह अपनी स्वाभाविक गति से बहता है ...बाधाओं को लाँघते हुये और कठिन परिस्थितियों में अपनी राह बनाते हुये जीवन को निरंतर आगे बढ़ना होता है । जीवन समुद्र नहीं है जो उसे बाँध दिया जाय, बाँधने का प्रयास किया जायेगा तो वह गर्जना करेगा और विद्रोह के लिए तैयार हो जायेगा । हमारा आचरण धर्म से संचालित होता है । धर्म वही जो बाधाओं और संकट के समय नदी की तरह नवीन मार्ग निर्मित कर सकने में सक्षम हो, अर्थात धर्म को समुद्र की तरह नहीं बल्कि नदी की तरह होना होता है । किंतु जब हम हठपूर्वक धर्म को समुद्र मान लेते हैं तो धर्म की अपरिमित शक्ति हमारा विनाश करने लगती है ।

आज मैं चीन की साम्यवादी विचारधारा के उस अंश का प्रबल समर्थन करने के लिए विवश हो गया हूँ जिसमें धर्म को वैचारिक अफ़ीम घोषित किया गया है । संदर्भ है कोरोना महामारी से जूझते विश्व का और प्रसंग है जमातियों और नमाज़ियों के आचरण में समाज, राष्ट्र, कानून और संविधान से ऊपर धार्मिक अनुष्ठानों को महत्व देने की वह हठी प्रवृत्ति जो उन्हें थूकने, करेंसी से नाक पोछने, फलों एवं सब्जियों में थूक लगाकर बेचने, मेडिकल स्टाफ़ की महिलाओं से अश्लील हरकतें करने, पत्थर बरसाने और तलवार से हमले करने के लिए प्रोत्साहित करती है । ऐसे समय में किसी भी धर्म के अनुयायियों द्वारा किया जाने वाला बाह्य अनुष्ठान अधार्मिक कृत्य है, फिर वे मुसलमान हों या हिंदू । हमें यह समझना होगा कि धार्मिक आचरण के प्रदर्शन का कोई महत्व नहीं होता । कोई भी प्रदर्शन एक ऐसी प्रतिस्पर्धा को जन्म देता है जिसमें हमारे व्यक्तिगत अहंकारों को अपनी विजय के मार्ग तलशने के अवसर प्राप्त होते हैं । धर्म को हमसे कठोरता नहीं, लचीलेपन की अपेक्षा है, ऐसा लचीलापन जो मानवता के लिए समर्पित हो अन्यथा धर्म को विनाशकारी होने से कोई रोक नहीं सकेगा ।
कोरोना संक्रमण के कारण सभी धर्मों के आराधना स्थलों को दुनिया भर में कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया है किंतु मुसलमानों के कुछ फ़िकरे जुमे की नमाज़ के नाम पर मस्ज़िदों में एकत्र हो रहे हैं । केंद्र और राज्य सरकारों के मंत्रियों एवं अधिकारियों को उनके आगे हाथ जोड़ कर मिन्नतें करने के लिए मज़बूर होना पड़ रहा है कि वे महामारी को रोकने में सामूहिक नमाज़ के लिए एक स्थान पर एकत्र न हों । मंत्री और अधिकारी उनके आगे हाथ जोड़ते हैं और वे उन पर हमले करते हैं । आख़िर केंद्र और राज्यों की सरकारें इतनी मज़बूर और भयभीत क्यों हैं कि उन्हें समाज के एक हिस्से के सामने नियम पालन करने के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता है ?
वैश्विक संकट की इस घड़ी में आइसिस समर्थक मुसलमान कोरोना के संक्रमण से ख़ुश हैं । उन्हें अपनी क़ौम के कुछ लोगों को फ़िदायीन वायरस बनकर क़ाफ़िरों पर हमले करने का दुर्भाग्यपूर्ण अवसर प्राप्त हो गया है । समाचार है कि बिहार मूल के भारतीय ज़ालिम मियाँ ने नेपाल से कोरोना संक्रमित चालीस से पचास लोगों को भारत में भेजने की तैयारी कर ली है । घातक हथियारों की तस्करी करने वाला, भारत मूल का ज़ालिम मियाँ भारत की तबाही के लिए नेपाल में बैठकर षड्यंत्र करते समय यह भूल जाता है कि कोई भी फ़िदायीन वायरस उस भीड़ को तबाह करेगा जिसमें सभी धर्मों के लोग शामिल हैं ।

भारत के प्राचीन कथानकों में राक्षस, दैत्य और दानव जैसे वैचारिक सम्प्रदाय के लोगों द्वारा ऋषियों-मुनियों की तपस्या में विघ्न उत्पन्न करते रहने की न जाने कितनी घटनाओं को हम सबने पढ़ा है । भारत में राक्षसों, दैत्यों और दानवों की परम्परा वाले लोगों की आज भी कमी नहीं है ।

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