टीवी ख़बरों के अनुसार कोरोना के सम्बंध में इस समय तीन
बातें प्रमुखता से चर्चित हो रही हैं जिससे आम जनता की चिंताओं में और इज़ाफ़ा हो
गया है ।
1- अभी तो इससे भी बुरा समय आना बाकी है – WHO
2- कोरोना के नहीं मिल रहे लक्षण किंतु टेस्ट निकल रहे पॉज़िटिव
–विभिन्न टीवी चैनल्स ।
3- कोरोना बदल रहा है अपना रूप, प्रकट हो रहे हैं नए-नए लक्षण –विभिन्न टीवी चैनल्स ।
पहली ख़बर WHO की ओर
से दी गई एक चेतावनी है । यह वही WHO है जिसने चीन के झूठ को छिपाने में चीन की मदद की, कोरोना संक्रमण को पैण्डेमिक घोषित करने में विलम्ब किया और कोरोना को
पूरी दुनिया में अपने पैर फैलाने का अवसर उपलब्ध करवाया । अब वही WHO पूरी दुनिया को डरवा रहा है । WHO की यह चेतावनी ऐसे
समय में आयी है जबकि भारत इस जंग में निरंतर जीत की ओर अग्रसर होता जा रहा है । स्वाइन
फ़्लू के आउटब्रेक के समय और अब कोरोना आउटब्रेक के समय WHO
का जो चरित्र दुनिया के सामने आया है वह निराश करने वाला है और हमें यह सोचने के
लिए विवश करता है कि कहीं यह भी तो एक चाल नहीं?
कोरोना संक्रमण से जहाँ लाखों लोग मर रहे हैं वहीं इस
संक्रमण से होने वाली मौतों की नींव पर बहुत बड़े उद्योग की रचना भी प्रारम्भ हो
चुकी है । यानी मौत का भय अब अगले कई सालों तक मेडिकल उद्योग में सोना बरसाने वाला
व्यापार बनने जा रहा है जिसमें वैक्सीन होंगे, दवाइयाँ
होंगी, इम्यूनिटी बढ़ाने वाली दवाइयाँ होंगी, टॉनिक्स होंगे, टेस्ट किट्स होंगी, वेंटीलेटर्स होंगे और होंगे एयर-प्यूरीफ़ायर्स ।
एण्टी कोरोना वैक्सीन पर दुनिया भर में रिसर्च शुरू हो चुकी
है, एण्टी कोरोना दवाइयों पर भी रिसर्च चल रही
है । इस सबमें कम से कम अठारह माह का समय लगेगा । तब तक कोरोना के भय को ज़िंदा
रखना व्यापारिक सिद्धांत का तक़ाज़ा है । यदि एण्टी-ऑक्सीडेण्ट्स के उपयोग से हमने
कोरोना को अपने पास फटकने से रोक दिया तो इन वैक्सीन्स और दवाइयों का क्या होगा जो
अठारह महीने बाद बाजार में आने वाली हैं! इसलिए सम्भव है कि WHO की चेतावनी टैमीफ़्लू के व्यापार की तरह किसी व्यापारिक साज़िश का एक हिस्सा
हो । लेकिन, हमें WHO द्वारा दी गयी चेतावनी
के वैज्ञानिक पक्ष पर भी विचार करना होगा ।
यूँ, यह सुस्थापित तथ्य है कि ट्रांज़ीशन
पीरियड्स माइक्रॉब्स के संक्रमण के लिए सर्वथा उपयुक्त अवसर हुआ करते हैं । भारत
के संदर्भ में देखें तो ग्रीष्म के बाद वर्षा ऋतु आने वाली है । इन दोनों ऋतुओं के
संधिकाल में हर तरह के वायरस, बैक्टीरिया और फ़ंगल इनफ़ेक्शन
की सम्भावनायें अन्य दिनों की अपेक्षा कई गुना अधिक बढ़ जाया करती हैं । पैथोजेनिक
माइक्रॉब्स के चरित्र के अनुसार यह एक सामान्य स्थिति है । आनेवाली ऋतुसंधि में
ग्रीष्म ऋतु के अंतिम चौदह दिन और वर्षाऋतु के प्रारम्भिक चौदह दिन का काल किसी भी
संक्रमण के लिए अधिक सुग्राही होगा अतः इस अवधि में हमें सावधान रहने की आवश्यकता
है । इस अवधि में यदि हम हर्बल एंटीऑक्सीडेण्ट्स का निरंतर सेवन करते रहें,
फ़्रिज़ में रखे खाद्य-पेय से दूर रहें, आइसक्रीम
जैसी चीजों का स्तेमाल न करें और साइंटिफ़िक अनटचेबिलिटी का पालन करते रहें तो हम न
केवल कोरोना बल्कि किसी भी वायरल इनफ़ेक्शन के संक्रमण से स्वयं को बचा सकते हैं
।
कोरोना के Asymptometic स्वरूप को लेकर आम आदमी चिंतित है । इस स्थिति में कोरोना के लक्षण तो नहीं
मिलते लेकिन उस व्यक्ति का टेस्ट पॉज़िटिव मिलता है । इसका एक नकारात्मक पक्ष यह है
कि ऐसा व्यक्ति कैरियर बनकर दूसरों को संक्रमित कर सकता है, इस
नये संक्रमित व्यक्ति में कोरोना Asymptometic हो भी सकता है
और नहीं भी । यदि नये शिकार में यह Asymptometic न हुआ और
संक्रमित की इम्युनिटी कमज़ोर हुयी तो कोरोना अपने कई लक्षणों के साथ प्रकट होकर
मरीज़ के जीवन के लिए चैलेंजिंग साबित हो सकता है । वहीं इसका सकारात्मक पक्ष यह है
कि संक्रमित होने के बाद भी Asymptometic होना इस बात का
प्रमाण है कि कोरोना वायरस उस व्यक्ति के शरीर में पैथोलॉज़िकल प्रक्रिया शुरू कर
पाने में सक्षम नहीं हो पा रहा है । यह कोरोना की हार है और उस संक्रमित व्यक्ति
की जीत । सम्भव है कि आने वाली ग़र्मियों में कोरोना वायरस इतना एटेनुएट हो जाय कि
संक्रमण के बाद भी वह निष्क्रिय ही बना रहे । यद्यपि साइंटिस्ट्स में कोरोना वायरस
पर तापमान के प्रभाव को लेकर अभी मतभेद बना हुआ है किंतु कोरोना की संरचना से हम
एक सटीक अनुमान लगा सकते हैं ।
इस वायरस की आउटर सर्फ़ेस लिपिड की बनी एक दोहरी लेयर है
जिसके बीच में प्रोटीन की एक लेयर स्टफ़्ड है । भारत की ग़र्मी लिपिड की लेयर को
ऑक्सीडाइज़्ड करके वायरस को नष्ट कर सकती है । शेष बची प्रोटीन की लेयर भी इतनी
ग़र्मी में टूट कर वायरस के जेनेटिक मैटेरियल को एक्सपोज़ कर देगी जिससे वायरस नष्ट
हो जायेगा । ध्यान रहे कि वैदिक साइंस में अग्नि और सूर्य को माइक्रॉब्स के लिए घातक
माना जाता रहा है ।
चिंता का तीसरा विषय है कोरोना का बदला हुआ स्वरूप जिसमें
अभी तक पाये जाते रहे क्लासिकल लक्षणों के अलावा,
अथवा उन लक्षणों के साथ कुछ एकदम नए लक्षण भी प्रकट हो रहे हैं, जैसे पेट में दर्द, बॉवेल डिसऑर्डर, इनसिफ़ेलाइटिस जैसे लक्षण और पैर की उँगली में बैंगनी रंग की सूजन का होना
। मुझे लगता है कि अभी यह कहना ज़ल्दबाजी होगी कि ये लक्षण कोरोना वायरस की वज़ह से
ही हो रहे हैं । यह सब को-इंसीडेंट्ली भी हो सकता है । इन बातों पर विचार करते समय
हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति की इम्यूनिटी यदि कमज़ोर है
तो कोरोना उस व्यक्ति के शरीर में पहुँचकर इस कमज़ोर स्थिति का अपने तरीके से लाभ
उठाने का प्रयास करेगा साथ ही कुछ अन्य अपॉर्च्युनिस्ट माइक्रॉब्स भी ऐसे अवसर का
लाभ उठाने से नहीं चूकते । हमें यह भी स्मरण रखना होगा कि हर व्यक्ति की कोशिकायें
किसी भी फ़ॉरेन बॉडी के साथ अपने तरीके से रिएक्ट करती हैं, यह
रिएक्शन हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकता है, यहाँ तक कि रोग की
इंटेन्सिटी भी और उसकी अवधि भी । इस सबके बाद भी यह गम्भीर चिंता का विषय नहीं है क्योंकि
अंततः रोगी का इलाज़ तो उसमें प्रकट हुए लक्षणों के आधार पर ही किया जाना है न!
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