राष्ट्रीय पर्वों पर विभिन्न राजनैतिक दलों के आचरण और वक्तव्यों में जिस सकारात्मकता की अपेक्षा पूरे देश को रहती है उसे पूरा होते हुये देखना एक बहुत बड़ी चुनौती हो गयी है। राजनीतिज्ञों के अमर्यादित और स्तरहीन व्यवहार से उत्पन्न कलह से उकताये नागरिकों को स्वतंत्रता दिवस और स्वाधीनता दिवस के दिन शांति, उत्साह और प्रसन्नता की आशा होती है जो उन्हें नहीं मिल पाती। राजनीति देशपरक न होकर व्यक्तिपरक हो चुकी है। हम किसी व्यक्ति को ईश्वर के रूप में पूजने के लिये लालायित क्यों रहते हैं? क्या ही अच्छा होता यदि सभी राजनैतिक दलों के नेतागण आज के दिन केवल देश के विकास और उसकी सुरक्षा की अविरोधी बातें करते। कम से कम राष्ट्रीय पर्वों के साल भर में आने वाले दो दिन कलहविहीन होने ही चाहिये। भारत को इस वैचारिक पराधीनता से मुक्ति कब मिलेगी?
नेहरू को भगवान की तरह और मोदी को
खूँखार खलनायक के रूप में प्रस्तुत करने की प्रतिस्पर्धा ने देश के नैतिक और राजनैतिक
चरित्र की धज्जियाँ उड़ा कर रख दी हैं। यदि हम इन्हें व्यक्ति के रूप में देख पाते तो
आज हम देश और समाज के लिए सही नीतियों का चयन कर पाने की स्थिति में खड़े होते।
भारत में प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस मनाया जाता है और केवल उसी दिन हिन्दी को उसका सम्मान दिलाने की बात की जाती है किंतु योजनाकारों के साथ-साथ लगभग पूरा देश “आज़ादी के अमृत महोत्सव का ज़श्न” मनाने का अभिनय कर रहा है। इस ज़श्न में मैं सम्मिलित नहीं हूँ, कभी हो भी नहीं सकता। मैं अपने देशवासियों के साथ “स्वतंत्रता का अमृत-महा-उत्सव” मनाना चाहता था किंतु मुझे यह उत्सव अकेले ही मनाना पड़ा। उधर भारत की राजधानी में “मीडिल क्लास और ग़रीब” बच्चों को अंग़्रेज़ीभाषी बनाने का अभियान बड़े गर्व के साथ चलाया जा रहा है। विदेशी भाषाओं पर गर्व करने की दासता से हमें मुक्ति कब मिलेगी?
पराधीन भारत कितना
क्या भारत सचमुच एक पराधीन देश था जिसे
15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिली थी?
मोतीहारी वाले मिसिर जी ने खिन्न भाव से
पूछा है – “15 अगस्त 1947 के दिन देशी रजवाड़े किस विदेशी पराधीनता से स्वतंत्र हुये
थे? भारत के
तत्कालीन 565 राज्यों के लिए स्वतंत्रता दिवस का अर्थ क्या है?”
“इन 565 राज्यों में से कई राज्यों ने
स्वेच्छा से अपनी पारम्परिक स्वतंत्रता और सम्प्रभुता का त्याग करके भारत संघ में अपने
राज्यों के विलय की स्वीकृति दी तो कुछ राजाओं और नवाबों ने कुछ विवशताओं के कारण अपने
राज्यों को भारत संघ में विलय की अनुमति प्रदान की। ऐसे सभी राज्यों के लिए भी 15 अगस्त
के स्वतंत्रता उत्सव का क्या अर्थ है? 15 अगस्त को
मिली स्वतंत्रता का उत्सव उन 21 राज्यों के लिए सचमुच महत्वपूर्ण है जिन्हें ब्रिटिश
पराधीनता से मुक्ति मिली।
1947 तक भारत में देशी राज्यों, देशी
रियासतों और प्रेसीडेंसी को मिलाकर कुल 579 राज्य हुआ करते थे जिनमें से अधिकांश
पूर्ण या आशिक रूप से स्वतंत्र राज्य थे। इनमें से केवल 21 राज्यों में ही ब्रिटिश
सरकार की सत्ता थी। राजकोट, नवानगर, ध्रोल, मोरबी, गोंडल, मकरान, खारान
और कलात जैसे कई देशी रजवाड़े ब्रिटिश दासता से पूरी तरह स्वतंत्र थे, जबकि हमें
आज भी पढ़ाया जाता है कि अंग्रेज़ों ने भारत पर 1947 तक शासन किया। हमें यह कभी नहीं
पढ़ाया जाता कि अंग्रेज़ों ने भारत के केवल 21 राज्यों में ही शासन किया और 15 अगस्त
1947 को ब्रिटिश दासता वाले राज्यों को ही स्वतंत्रता मिली थी पूरे भारत को नहीं क्योंकि
आज का सम्पूर्ण भारत कभी भी पूरी तरह कम्पनी सरकार या ब्रिटिश शासन के अंतर्गत रहा
ही नहीं।
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