वित्तमंत्री जी की घोषणा के अनुसार 9 से 14 वर्ष की बच्चियों को सर्वाइकल कैन्सर से बचाने के लिये एण्टी एच.पी.वी. टीका लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा येगा । निजी चिकित्सालयों में इस टीके की एक मात्रा के लिये चार हजार रुपये देने होते हैं । बच्ची को छह महीने के बाद एक मात्रा और लेनी होगी, यानी पूर्ण टीकाकरण के लिये आठ हजार रुपये । सरकार इस टीके को इम्म्यूनाइजेशन कार्यक्रम में सम्मिलित करेगी ।
टीकाकरण राजकाज का एक अंश है ।
यदि जीवन के सभी पक्षों से धर्म को अलग न किया गया होता तो आज इस राजकर्म की
आवश्यकता नहीं पड़ती । गाँव में आग लगने पर उसे बुझाने का काम शासन करता है, “गाँव में आग न लगे” ऐसी व्यवस्था करने का काम धर्म करता है ।
एण्टी एच.पी.वी. टीका पश्चिमी
समाज के लिये आवश्यक है जहाँ जीवनशैली और शिक्षा पर धर्म का कोई अंकुश नहीं होता ।
हम पश्चिमी देशों का अनुकरण
करते हैं इसलिये इन टीकों की आवश्यकता हमें भी होने लगी है । वास्तव में जो लोग
ह्यूमन पैपिलोमा वायरस से संक्रमित हो जाते हैं उन्हें बाद में सर्वाइकल कैंसर
होने की आशंकायें होती हैं । ह्यूमन पैपिलोमा वायरस का संक्रमण यौनसम्पर्कों से
एक-दूसरे में होता है । यदि हमारी जीवनशैली पर पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता के स्थान पर
सनातनधर्म का प्रभाव होता तो न तो हम ह्यूमन पैपिलोमा वायरस से संक्रमित होते और न
उसके कारण सर्वाइकल कैंसर होता । यह भी वैज्ञानिक सत्य है कि संक्रमण से होने वाले
रोगों को धर्मप्रेरित मर्यादापूर्ण जीवनशैली से सीमित किया जा सकना सम्भव है ...और
यही निरापद है ।
धार्मिक परम्परायें हमें
मर्यादापूर्ण जीवनशैली के लिये प्रेरित करती हैं जबकि धर्म-विरत राजकर्म हमें
दोषपूर्ण जीवनशैली के लिये शिथिलता का एक अवसर उपलब्ध करवाते हैं । नौ साल की
बच्चियों को नवरात्रि में दुर्गा का स्वरूप मानकर उनकी पूजा किये जाने वाले देश
में हमारे विकृत-यौन सम्बंधों के कारण अब उन्हें एण्टी-ह्यूमन-पैपिलोमा वायरस के
दो टीके लगवाने होंगे ।
क्या वैचारिक और अध्यात्मिक
दृष्टि से हम इतने विपन्न हो गये हैं कि अब अपनी जीवनशैली को भी विकृत-भोग से बचा
नहीं पा रहे हैं! यदि यह हमारा अध्यात्मिक और सामाजिक पतन है तो क्या इसे रोकने के
लिये हमारे पास टीकाकरण के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है? यह टीका हमारी बच्चियों को अधिकतम दस वर्ष तक ही सुरक्षाकवच
उपलब्ध करवा सकता है, फिर इसके बाद?
टीका तो वह जुगाड़ है जो आपतकाल
में समाधान के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, समस्या का स्थायी समाधान तो स्वयं हमें ही करना होगा । सिगरेट
पीने के बाद लौंग-इलायची मुँह में रख लेने से प्राप्त सुविधा हमें बारम्बार सिगरेट
पीने के लिये अवसर उपलब्ध करवाती है, सिगरेट से मुक्ति का उपाय नहीं । ह्यूमन-पैपिलोमा-वायरस का टीका
भी हमें स्वच्छंद यौनसम्बंधों के लिये बार-बार अवसर उपलब्ध करवाता है, उससे मुक्ति का अवसर नहीं ।
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